जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने चुपचाप एक समझौता किया और उसके फलस्वरूप अनुच्छेद 370 अस्तित्व में आया। 5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने इस अनुच्छेद को समाप्त कर दिया। अब उस पर सर्वोच्च न्यायालय की भी मुहर लग गई है। यहां 370 की शुरुआत और अंत को बिंदुवार दिया जा रहा है-
- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर आरोप लगाया जाता है कि जब अनुच्छेद 370 केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रस्तुत किया गया तो उन्होंने उसका विरोध क्यों नहीं किया? यह एकदम निराधार तथ्य है। अनुच्छेद 370 पर मंत्रिमंडल में चर्चा तो दूर, वास्तव में उसे प्रस्तुत ही नहीं किया गया था।
- डॉ. मुखर्जी, जम्मू एवं कश्मीर के विषय पर सुरक्षा समिति की कुछ बैठकों में अवश्य शामिल हुए थे। उन्हें इन बैठकों में रसद आपूर्ति मंत्री के नाते आमंत्रित किया गया था। ये बैठकें भी अक्तूबर-दिसंबर, 1947 में हुईं और उस समय अनुच्छेद 370 जैसा कुछ प्रस्तावित नहीं था।
- डॉ. मुखर्जी सिर्फ संविधान सभा और अंतरिम सरकार का हिस्सा थे। अनुच्छेद 370 के शुरुआती सभी कागजात नेहरू, मौलाना आजाद, शेख और आयंगर के बीच में ही घूमते रहे। जब सरदार को इसकी आड़ में अलगाववाद की भनक लगी तो उन्होंने इसके प्रावधानों में फेरबदल करवा दिया था।
- इस प्रकार यह कांग्रेस और उसकी कार्यसमिति के कुछ गिने-चुने सदस्यों में ही चर्चा का विषय बना रहा, जिसकी बाहर की दुनिया को कोई जानकारी ही नहीं थी।
- अनुच्छेद 370 के मसौदों को पहली बार संविधान सभा के सदस्यों को 16 अक्तूबर, 1949 को बताया गया। अगले दिन इसे सभा में प्रस्तुत किया गया। अत: संविधान सभा को भी इसके प्रावधानों पर चर्चा करने का ठीक से मौका नहीं मिला।
- अक्तूबर, 1949 में संविधान निर्माण का काम पूरा हो चुका था। अब बस इसकी प्रस्तावना संबंधी जरूरी विषय बाकी रह गए थे। संविधान सभा 1946 से अस्तित्व में थी और जनवरी 1950 में संविधान देश में लागू होने वाला था। इसके अलावा संविधान का जो मूल ड्राफ्ट डॉ. भीम राव आंबेडकर ने तैयार किया था उसमें भी यह अनुच्छेद कभी शामिल ही नहीं था।
- इस प्रकार डॉ. मुखर्जी ही नहीं, बल्कि संविधान सभा के किसी भी सदस्य को इस बात की जानकारी नहीं थी कि अनुच्छेद 370 आखिर क्या है।
- इस अनुच्छेद की शुरुआत शेख अब्दुल्ला की एक चालाकी से हुई। शेख ने 3 जनवरी, 1949 को सरदार पटेल को एक पत्र भेजा और कहा, पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के मुसलमानों को पूर्ण स्वतंत्रता देने की पेशकश की है। साथ ही पाकिस्तान सरकार का कहना है कि हम उनके हस्तक्षेप के बिना जम्मू और कश्मीर का संविधान बना सकते हैं। इस पत्र में शेख ने आगे एक सुझाव दिया कि पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को बेअसर करने के लिए भारत सरकार को अब घोषणा करनी चाहिए कि वह जम्मू और कश्मीर को संवैधानिक स्वतंत्रता प्रदान करेगी।
- सरदार पटेल ने शेख के इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया और इसपर खास ध्यान भी नहीं दिया। इसके बाद शेख ने यही सुझाव नेहरू को भेजे। यह सब पढ़कर नेहरू घबरा गए और उन्होंने एक आपात बैठक बुला ली। इसमें नेहरू ने सिर्फ सरदार पटेल, आजाद और आयंगर को बुलाया। बैठक में नेहरू ने शेख की संवैधानिक पृथकता की मांग पर विचार करने को कहा, मगर सरदार पटेल ने दोबारा अपनी असहमति जता दी।
- अपने हाथ से बाजी निकलती देख शेख ने फिर से एक पैंतरा चला। शेख ने 14 अप्रैल, 1949 को स्कॉट्समैंन के पत्रकार माइकल डेविडसन को दिए एक साक्षात्कार में जम्मू और कश्मीर के विभाजन की मांग की।
- शेख को अच्छे से पता था कि नेहरू इस मांग से परेशान हो जाएंगे और इसके बदले अनुच्छेद 370 के लिए मोलभाव एकदम आसान हो जाएगा। आखिरकार ऐसा ही हुआ और नेहरू ने शेख को दो दिन बाद दिल्ली बुला लिया। इसी बैठक ने शेख ने अनुच्छेद 370 को भारत की संविधान सभा में पारित करवाने पर जोर दिया।
- अगले दिन 17 अप्रैल को नेहरू ने सरदार पटेल को पत्र लिखकर शेख की मनमानी को स्वीकार करने का दबाव बनाया। हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर संविधान में बदलाव का कोई हवाला नहीं दिया, लेकिन शेख को लेकर थोड़ा नरम रुख अपनाने को कहा।
- सरदार पटेल के निवास पर 15-16 मई, 1949 को एक बैठक हुई। यहां शेख की मांगों पर विचार किया गया, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। अत: नेहरू अकेले मई महीने के आखिरी दिनों में शेख से मिलने श्रीनगर पहुंच गए और उन्होंने वहां शेख के साथ कई समझौते कर लिए।
- नेहरू और शेख के बीच क्या बातचीत हुई, उसकी जानकारी सरदार पटेल को नहीं थी। इस प्रकार नेहरू और शेख ने मिलकर संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा कर ली और किसी को इसकी भनक भी नहीं होने दी। इस नए संवैधानिक प्रावधान यानी अनुच्छेद 370 को तैयार करने की जिम्मेदारी आयंगर और शेख को दी गई।
- वी. शंकर (सरदार पटेल के सहयोगी) अपनी किताब ‘माय रेमिनिसेंस आफ सरदार पटेल’ में लिखते हैं, ‘‘संविधान सभा की सामान्य छवि को सबसे ज्यादा खतरा उस प्रस्ताव (अनुच्छेद 370) से हुआ, जो जम्मू-कश्मीर से संबंधित था।’’ वी.शंकर लिखते हैं, ‘‘शेख जब जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने लगे तो गोपालस्वामी आयंगर ने जवाहरलाल नेहरू से इस पर विस्तार से चर्चा की। इसके बाद एक मसौदा अनुच्छेद 370 तैयार किया गया, जिसे भारत की संविधान सभा के समक्ष कांग्रेस द्वारा रखा गया।’’
- अनुच्छेद 370 के कई ड्राफ्ट्स तैयार किए गए। शुरुआती ड्राफ्ट्स आयंगर और शेख ने मिलकर तैयार किए थे। जब सरदार को इसके बारे में जानकारी दी गयी तो उन्होंने ड्राफ्ट को स्वीकार करने से मना कर दिया।
- सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद अनुच्छेद 370 का एक अन्य मसौदा 12 अक्तूबर, 1949 को तैयार किया गया, जिसे शेख ने नामंजूर कर दिया और एक वैकल्पिक मसौदा बनाकर भेज दिया।
- आयंगर ने कुछ परिवर्तनों (शेख के मुताबिक) के साथ 15 अक्तूूबर, 1949 को दूसरा मसौदा शेख को भेजा। उस समय वे दिल्ली में ही थे और इस बार भी सरदार पटेल ने उसे नकार दिया।
- सरदार पटेल का रुख साफ था। जितना संभव हुआ उन्होंने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया। इसलिए शेख ने भी सरदार पटेल को दरकिनार करने के लिए पूरा अभियान छेड़ दिया।
- अत: सरदार पटेल ने इस पूरे मामले से अपने आप को पीछे करते हुए आयंगर को 16 अक्तूबर को पत्र लिखकर कहा कि इन परिस्थितियों में मेरी सहमति का कोई प्रश्न नहीं बनता। आपको लगता है है कि ऐसा करना ही ठीक है तो आप वही कीजिए।
- शेख की वास्तविक मांग थी कि भारतीय संंसद को राज्य के लिए कानून बनाने और अधिमिलन पत्र में उल्लिखित तीन विषयों-सुरक्षा, वैदेशिक मामले और संचार-से सीधे संबंधित संवैधानिक प्रावधान के लिए प्रतिबंधित किया जाए। वे राज्य की संविधान सभा को संंविधान बनाने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता चाहते थे।
- अनुच्छेद 370 को भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को प्रस्तावित किया गया था। उससे पहले आखिरी समय में भी एक परिवर्तन किया गया था। शेख उस दिन संविधान सभा में मौजूद थे, क्योंकि उन्हें वह बदलाव रास नहीं आया। उन्होंने स्थिति को अपने अनुकूल बनाने के लिए बाहर आकर आयंगर को पत्र लिखा और संविधान सभा से त्यागपत्र देने की धमकी दी।
- संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर के अनुसार, वहां स्थिति असामान्य हैं। इसलिए इस अनुच्छेद को संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
- जब एक सदस्य ने पूछा कि यह भेदभाव किसलिए किया जा रहा है? इस पर आयंगर ने जवाब दिया कि जम्मू कश्मीर अभी अधिमिलन के लिए परिपक्व नहीं है, लेकिन जल्दी ही यह अन्य रियासतों की तरह भारत का हिस्सा होगा।
- पहले ड्राफ्ट में सभी संवैधानिक शक्तियां शेख अब्दुल्ला की सरकार के पास थीं। इसमें सरदार पटेल ने बदलाव करवा कर उसमें शेख की अंतरिम सरकार के स्थान पर यूनियन आफ इंडिया जोड़ दिया गया।
- इसके बाद फिर एक और ड्राफ्ट तैयार किया गया, जोकि शेख और आयंगर ने मिलकर तैयार किया था।
- सरदार पटेल के प्रयासों से उस ड्राफ्ट में एक और बदलाव हुआ, जिसने 2019 में इस अनुच्छेद को हटाने का रास्ता साफ कर दिया।
- लोकसभा में हरि विष्णु कामथ (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी), बिशनचंद्र सेठ (हिंदू महासभा), भीष्म प्रसाद यादव (कांग्रेस), बी.के. धाओं (कांग्रेस), यशपाल सिंह (कांग्रेस आई.), दीवान चंद शर्मा (कांग्रेस), सिद्धेश्वर प्रसाद (कांग्रेस), प्रफुल्ल चंद्र बरुआ (कांग्रेस) और प्रकाशवीर शास्त्री (निर्दलीय) ने मिलकर एक सवाल पूछा, जम्मू और कश्मीर राज्य के भारतीय संघ के साथ घनिष्ठ एकीकरण के लिए आगामी कदम किस प्रकार लिए गए हैं अथवा लिए जा रहे हैं?
- इसी क्रम में यशपाल सिंह ने अनुच्छेद 370 को इस दिशा में अड़चन बताया और सवाल किया कि इसे हटाने में अभी और कितना समय लगेगा?
- कांग्रेस के सदस्य एम.सी. छागला ने सुरक्षा परिषद से संबंधित लोकसभा की चर्चा में कहा, मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही अनुच्छेद 370 संविधान से विलुप्त हो जाएगा।
- कुछ दिनों बाद कामथ, यशपाल और बरुआ ने फिर से भारत सरकार (गृहमंत्री) से सदन में प्रश्न किया, क्या उन्हें इसकी जानकारी है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने स्वयं इस पक्ष में वक्तव्य दिया है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त अथवा समाप्त करके भारतीय संघ के साथ राज्य का पूर्ण अधिमिलन होना चाहिए।
- बिजनौर के सांसद प्रकाशवीर शास्त्री ने 11 सितंबर,1949 को अनुच्छेद 370 पर संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया।
- भारत सरकार ने जवाब में इसे राज्य सरकार पर टालते हुए कहा कि वहां से ऐसा कोई सुझाव नहीं आया है।
- प्रकाशवीर ने 20 नवंबर,1949 को एक बार फिर से उस विधेयक को प्रस्तुत किया, लेकिन बिना किसी निर्णय के लोकसभा को अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया गया। -इसके बाद 4 दिसंबर को एक और कोशिश की गयी लेकिन सरकार ने नामंजूर कर दी।
- आखिरकार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त, 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 प्रस्तुत किया, जिसमें जम्मू- कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया। इसे संसद के दोनों सदनों ने बहुमत के साथ स्वीकार कर लिया।
- सरकार के इस निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी 11 दिसंबर, 2023 को अपनी मुहर लगा दी।
(सौजन्य – पाञ्चजन्य आर्काइव)
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