नई दिल्ली । उत्तराखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा कॉमन सिविल कोड बिल को विधान पटल पर रखा गया। जिसके बाद आज का दिन भारत और उत्तराखंड के इतिहास में दर्ज हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि दो दिन सत्र में इस पर चर्चा जारी रहेगी। वहीं धामी सरकार को स्पष्ट बहुमत होने से इस बिल का सदन में पारित होना तय माना जा रहा है।
अगर संवैधानिक जरूरत पड़ी तो इस कानून को लागू करने से पहले अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के भेजा जाएगा। लेकिन, वहां भी इसकी मंजूरी में कोई अड़चन नहीं आएगी। फिलहाल तमाम परिस्थितियां मुख्यमंत्री धामी की मंशा के अनुकूल हैं।
धामी सरकार की स्पष्ट सोच और मजबूत इरादे के चलते उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है जहां कॉमन सिविल कोड बिल को लागू करने की दिशा में ठोस पहल की गई है। यह बिल उत्तराखंड के मध्य एक प्रगतिवादी, लोकप्रिय एवं सर्व वर्ग ग्राही संहिता साबित होगा। साथ उत्तराखंड राज्य के विकास में एक मील का पत्थर साबित होगा। इस बिल में बहुविवाह और ‘हलाला’ जैसी प्रथाओं को आपराधिक कृत्य बनाने तथा ‘लिव-इन’ में रह रहे जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है।
जहां एक तरफ इस बिल के पेश होने के बाद जहां तमाम मौलवी और मौलाना बिना इसे समझे, इसे ‘गलत’ बताने पर तुले हुए हैं तो वहीं दूसरी उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष ने इस कॉमन सिविल कोड का पूरी मजबूती से समर्थन किया है।
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने ‘कॉमन सिविल कोड’ के पक्ष में बयान देते हुआ कहा है कि “मुसलमानों को इस बात का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जैसा नेतृत्व मिला है। उत्तराखंड में आज इतिहास रचा जा रहा है। ‘कॉमन सिविल कोड’ लाकर उत्तराखंड सरकार ने महिलाओं को समानता का अधिकार दिया है। सही मायने में बीजेपी इस्लाम के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार दिला रही है”।
क्या है ‘कॉमन सिविल कोड’ बिल में
202 पेज के इस “समान नागरिक संहिता अधिनियम 2024” का ड्राफ्ट हर पहलू पर विचार विमर्श करने के बाद तैयार किया गया है। इस के ड्राफ्ट में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामले शामिल हैं। इन विषयों, खासतौर पर विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्रावधान बनाए गए हैं। उनमें धर्म, मत, मजहब, अथवा पंथ की परम्पराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धार्मिक रीति-रिवाज जस के तस रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन सख्ती इस बात पर की गई है कि हर दम्पति को अनिवार्य रूप से अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करना पड़ेगा। अन्यथा वे सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित रहेंगे। तलाक के बगैर कोई व्यक्ति दूसरी शादी नहीं कर पाएगा। ऐसा करने पर उसे दण्ड या आर्थिक दण्ड या फिर दोनों भुगतने होंगे।
अधिनियम में जहां एक ओर विवाह, तलाक और विवाह की शून्यता के पंजीकरण के लिए सुगम एवं सरल प्रक्रिया बनाई गई है। सम्बंधित दम्पति और अधिकारियों की भी जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की गई है। यदि कोई नागरिक विवाह का पंजीकरण करने में अनदेखी करता है या नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके लिए अधिकतम 25000 के अर्थदण्ड का प्रावधान रखा गया है। साथ ही यदि उप निबंधक जानबूझकर संहिता में निहित कार्रवाई करने में विफल रहता है तो वह भी अधिकतम 25000 रुपये के अर्थदण्ड का अधिकारी होगा।
विवाह, तलाक एवं विवाह की शून्यता के पंजीकरण के लिए एक सरकारी तंत्र बनाया जाएगा। इसमें महा निबंधक सचिव स्तर, निबंधक उपजिलाधिकारी एवं उप निबंधक राज्य सरकार के अधिसूचित अधिकारी होंगे। नागरिकों के पास सूचना का अधिकार की तर्ज पर रजिस्ट्रेशन को लेकर अपील का अधिकार भी होगा। निबंधक एवं महा निबंधक दो अपीलीय स्तर के अधिकारी होंगे। साथ ही हर स्तर पर पंजिका का रखरखाव किया जाएगा। ताकि पारदर्शिता बनी रहे। अपील के लिए समयबद्ध समय सीमा भी तय की गई है, ताकि प्रक्रिया में अनावश्यक देरी न हो।
संहिता में दाम्पत्य अधिकारों को संरक्षित बनाने के हर संभव प्रावधान किए गए हैं। साथ ही जो महर, प्रभूत, स्त्रीधन या कोई अन्य सम्पत्ति जो पत्नी को उपहार स्वरूप दी गई है, वह भरण पोषण के दावे में सम्मिलित नहीं होकर अतिरिक्त होगी। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे की अभिरक्षा सामान्यतया माता के पास रहेगी। संहिता में बच्चों की अभिरक्षा के अन्तर्गत बच्चों का हित सर्वोत्तम एवं कल्याण सर्वोपरि होगा। कोई विवाद होने पर दम्पति के मेल मिलाप के लिए न्यायालय हरसंभव समुचित प्रयास करेंगे।
शून्य एवं शून्यीकरण विवाह के लिए नियम बनाए गए हैं। विवाह विच्छेद के लिए किसी भी पक्ष को मारकर्म, क्रूरता, कम से कम दो वर्ष तक बिना युक्तियुक्त कारण से अलगाव, कन्वर्जन, विकृत चित, निरन्तर मानसिक विकार, संचारी यौन रोग, लगातार 7 वर्ष तक किसी पक्ष के जीवित रहने की सूचना नहीं होने का आधार लिया गया है।
विवाह विच्छेदन की कार्यवाही अनुतोष एवं आपसी सहमति से ही जा सकेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि किसी भी प्रथा, रूढ़ि परम्परा या किसी पक्षकार को किसी व्यक्तिगत विधि या अधिनियम के अनुसार विवाह विच्छेदन (तलाक) नहीं हो सकेगा। इस कॉमन सिविल कोड बिल के लागू होने के बाद बिल में प्रावधानित प्रक्रिया के अनुसार ही विवाह विच्छेदन होगा। पुरुष-महिला को तलाक देने के समान अधिकार होंगे। लिव-इन रिलेशनशिप में डिक्लेयर करना जरूरी होगा। लिव इन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर 6 माह की सजा होगी। लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा।
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