पुणे स्थित आलंदी में स्वामी गोविंददेव गिरी जी महाराज के 75वें जन्मोत्सव पर गीता भक्ति अमृत महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस विराट समागम में एक तरफ जहां विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ यज्ञ, भागवत कथा आदि भी श्रोता श्रवण कर रहे हैं।
इसी निमित्त आज एक सत्र में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान अमृत महोत्सव में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि यह उत्सव व्यक्ति, समाज और सार्वभौमिक रूप से राष्ट्र की चेतना और शक्ति को जागृत करने का उत्सव है। यह उत्सव ज्ञान का उत्सव है। भक्ति का उत्सव है। यह विराट उत्सव मानव जाति के कल्याण का ध्येय लेते हुए ज्ञान, भक्ति का जो मार्ग स्वामी गोविन्ददेव गिरी जी महाराज ने दिखाया है, उस मिशन की ध्येय यात्रा का समागम है। हमारी संतों की परंपरा क्या कहती है – “संतो भूमि तपसा धार्यन्ति” जिसका अर्थ है कि संत अपनी तपस्या और भक्ति के माध्यम से इस धरा को रहने योग्य बनाते हैं। यानी उसे धारण करते हैं। उनका पूरा जीवन समाज के लिए होता है। आद्य शंकराचार्य जी के एक श्लोक का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे संत हमारे बसंत ऋतु के बादलों जैसे हैं, जो लोकहित में इधर से उधर विचरण करके समाज का उद्धार करने का काम करते हैं। यह मनीषी स्वयं भी भव सागर को पार करते हैं और बिना किसी स्वार्थ के दूसरों को जन्म मृत्यु के इस भवसागर से पार करने में मदद करते हैं। इसलिए मैं संतों को हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
समरसता की भूमि है आलंदी
इस अवसर पर स्वामी श्री गोविंददेव गिरी जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि जन्मदिन मनाने का कोई भी शौक मुझे नहीं है। किसी भी प्रकार का उत्सव इस देह के जन्म को लेकर किया जाए, वास्तव में इसमें कोई रस नहीं है। लेकिन हमारे शुभचिंतकों ने कहा कि आलंदी में एक ऐसा आयोजन हो, जो सारे संसार की समन्वय भूमि है। इसलिए मैं कहता हूं कि सम्पूर्ण संसार यदि किसी की विचार धारा से एकत्रित हो सकता है, समरसता के साथ निर्वहन कर सकता है, तो वह सारे के सारे उदात्त विचार भगवान संत ज्ञानेश्वर जी महाराज में प्राप्त होंगे। इसलिए मेरी श्रद्धा का केंद्र आलंदी है।
वेदशास्त्र संवाद के महत्व पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि, “यह हमारी सदियों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा है, जिसने हमें ज्ञान और शास्त्रों तक पहुंच प्रदान की है। हमारे वेद, उपनिषद और भगवद गीता सहित अन्य प्राचीन ग्रंथ भारत के मूल विचार को प्रसारित करते हैं।
उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री विजयेंद्र सरस्वती जी महाराज, गीता मनीषी श्री ज्ञानानंदजी महाराज, श्री लोकेश मुनिजी महाराज, पूज्य स्वामी श्री विश्वेश्वरानंद गिरिजी महाराज, श्री सदानंदजी महाराज, पूज्य मारुति कुरेकर महाराज को परम पूज्य श्री गोविंद देव गिरी जी महाराज और राज्यपाल ने सम्मानित किया।
कुछ इस तरह से हुआ तीसरे दिन का शुभारंभ
समारोह के तीसरे दिन का शुभारंभ गीता परिवार द्वारा आयोजित 750 वारकरी छात्रों द्वारा संत ज्ञानेश्वर महाराज जी लिखित हरिपाठ के 28 मराठी अभंगों के साथ निर्धारित किया गया था। चिरंजीव पूजन के बाद, आध्यात्मिक गुरुओं को सम्मान अर्पित करने का एक समारोह संपन्न हुआ।
संतों का हुआ सम्मान
समागम में 40 संतों का संत पूजन समारोह हुआ, जहां श्रद्धेय आध्यात्मिक गुरुओं को आध्यात्मिक विकास और सामुदायिक कल्याण को बढ़ावा देने के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए सम्मानित किया गया। इसके अलावा कई वैदिक विद्वानों को भी सम्मानित किया गया, जिन्होंने अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को छुआ है।
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