राष्ट्र के उत्थान में अपनी विशिष्ट भागीदारी दर्ज कराने वाले देश के अति सामान्य स्तर के नागरिकों को पद्म सम्मान से विभूषित कर उनका गौरव बढ़ाया है।
आज से एक दशक पहले का वह समय याद कीजिये, जब समाज सेवा, चिकित्सा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, व्यापार, उद्योग, कला, साहित्य, शिक्षा, खेलकूद और सिविल सेवा आदि के क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवाओं के लिए दिये जाने वाले पद्म सम्मानों का दायरा काफी सीमित था। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 2014 के पहले ये सम्मान एक तरह से ‘विशिष्ट’ लोगों तक सीमित थे।
पहले प्रधानमंत्री और कुछ प्रभावशाली मंत्रियों के हाथ में अधिकार होता था कि ये सम्मान किन लोगों को दिए जाएं? लेकिन मोदी सरकार ने बीते दस वर्ष में ‘वीआइपी कल्चर’ की इस परंपरा को खत्म करते हुए राष्ट्र के उत्थान में अपनी विशिष्ट भागीदारी दर्ज कराने वाले देश के अति सामान्य स्तर के नागरिकों को पद्म सम्मान से विभूषित कर उनका गौरव बढ़ाया है।
इस वर्ष भी पद्म सम्मान से सम्मानित होने वालों में बड़ी संख्या में आम नागरिक शामिल हैं, जो किसी भी तरह के प्रचार-प्रसार से दूर, राष्ट्रहित में उल्लेखनीय काम कर रहे हैं। ऐसे ही कुछ अनजान नायक-नायिकाओं की ‘रील’ नहीं वरन् ‘रीयल स्टोरी’ आपके सामने प्रस्तुत है, जो समाजसेवा और पर्यावरण रक्षा के साथ भारत के धर्म, संस्कृति, परम्परा और धरोहर को संरक्षित कर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के पुनीत लक्ष्य में पूरी ईमानदारी से जुटे हुए हैं
पद्म पुरस्कार-2024
छात्र राजनीति से देश के उपराष्ट्रपति तक
देश के पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। श्री नायडू का जन्म 1 जुलाई, 1949 को आंध्र प्रदेश के एक छोटे-से गांव चावाटापलेम में हुआ था। उन्होंने नेल्लौर केवीआर कॉलेज से स्नातक के पश्चात विशाखापट्टनम के आंध्र विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री हासिल की। एक छात्र नेता और राजनीतिक व्यक्ति के तौर पर नायडू बेहद लोकप्रिय छवि वाले व्यक्ति हैं। वह प्रखर वक्ता के साथ ही किसानों, ग्रामीणों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों के मुद्दे उठाने के लिए जाने जाते हैं। कॉलेज के दिनों से ही वेंकैया नायडू आम आदमी के कल्याण में काफी दिलचस्पी रखते थे, विशेष तौर पर किसानों और समाज के दबे-कुचले वर्ग के मुद्दों को लेकर वह गहन चिंतन करते हैं। अपने तीन दशक के सार्वजनिक जीवन में अनेक पदों पर रहते हुए उन्होंने सदैव देश सेवा की है। साल 2017 से 2022 तक वह देश के उपराष्ट्रपति रहे।
सिनेमा के जरिए पाई ख्याति
वैजयंतीमाला बाली पहली ऐसी दक्षिण भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में सफलता के झंडे गाड़े। वे एक उत्कृष्ट शास्त्रीय नृत्यांगना हैं और उन्होंने हिन्दी फिल्मों में नृत्य को एक ऊंचा स्थान दिलाया। दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार के साथ उनकी जोड़ी काफी लोकप्रिय रही। वैजयंती माला ने पांच साल की उम्र में पहला स्टेज शो किया था। उन्होंने गुरु रामैया पिल्लै से भरतनाट्यम सीखा था। 13 साल की उम्र से ही उन्होंने स्टेज शो के माध्यम से भारतनाट्यम का प्रदर्शन कर शुरू कर दिया था। फिल्मों में काम करने के बाद वैजयंती माला ने राजनीति में भी सफलता हासिल की। वे अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं। वे पहली बार 1984 में लोकसभा सदस्य बनीं और बाद में राज्यसभा सदस्य भी बनीं।
स्वच्छता का जरिया बना सुलभ
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और स्वच्छता को प्रोत्साहित करने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई। अपने अथक समर्पण से उन्होंने अनगिनत लोगों के जीवन का उत्थान किया। 15 अगस्त, 2023 को उनका निधन हो गया। डॉ. बिंदेश्वर पाठक के मानवतावादी कार्यों ने भारत में हजारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन को बदल दिया है। सुलभ इंटरनेशनल के अलावा, उन्होंने दूसरे सामाजिक कार्यों में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई।
स्वाभिमान के साथ किया कारोबार
ताइवान स्थित हाई टेक्नोलॉजी ग्रुप फॉक्सकॉन के 66 वर्षीय अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) यंग लियू को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। चीन के साथ तनाव बढ़ने के बाद उन्होंने अपना उत्पादन आधार भारत कर दिया है। यंग लियू को उद्योगजगत का चार दशक से अधिक का अनुभव है। उल्लेखनीय है कि फॉक्सकॉन महत्वपूर्ण निवेश और उद्यमों की एक श्रृंखला के साथ, भारत में तेजी से अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रही है। फॉक्सकॉन करीब 70 फीसदी आईफोन बनाती है। उसकी आंध्रप्रदेश स्थित इकाई में 40,000 से अधिक लोग कार्यरत हैं। फॉक्सकॉन की भारत में 1.6 अरब डॉलर से अधिक का निवेश करने की योजना है। साल 2023 में दक्षिण भारत में कंपनी ने तेजी से अपना कारोबार फैलाया है। कंपनी की योजना अप्रैल 2024 तक भारत में आईफोन बनाने की है। लियू का कहना है कि भविष्य में मैन्युफैक्चरिंग के लिए भारत बहुत महत्वपूर्ण देश होगा।
पद्मा को मिला पद्म सम्मान
पद्मा सुब्रह्मण्यम भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं। भारत के साथ विदेशों में भी उनकी काफी ख्याति है। पद्मा सुब्रह्मण्यम कोरियोग्राफर, संगीतकार, गायिका, शिक्षिका होने के साथ ही एक लेखिका भी हैं। वे इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की ट्रस्टी भी हैं। उनके पिता एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे और मां मीनाक्षी संगीतकार और संस्कृत की गीतकार थीं। पद्मा सुब्रह्मण्यम ने वजुवूर बी. रामैया पिल्लै से नृत्य सीखा था। उन्होंने अपने पिता के नृत्य स्कूल में 14 वर्ष की उम्र से ही नृत्य सिखाना शुरू कर दिया। उनके सम्मान में जापान, आस्ट्रेलिया और रूस जैसे देशों में कई फिल्में और वृत्तचित्र बनाए गए हैं। डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने चोल साम्राज्य में सत्ता हस्तांरण के प्रतीक रहे ‘सेंगोल’ के बारे में एक लेख के हवाले से जानकारी दी थी। इसके बाद, नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित करने के बारे में सरकार ने विचार किया और उसे संसद भवन में स्थापित किया गया।
मेहनत और लगन से पाया सर्वोच्च स्थान
श्रीमती एम. फातिमा बीवी सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला जज थीं। भारत सरकार ने उन्हें मराणोपरांत पद्म भूषण सम्मान देने की घोषणा की है। वे सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला जज ही नहीं थीं, बार काउंसिल में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने 1950 में एडवोकेट के तौर पर केरल में करियर की शुरुआत की। 1974 में वे जिला एवं सत्र न्यायालय में न्यायाधीश बनीं और फिर 1983 में उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनीं। 1989 में वे सर्वोच्च न्यायालय में पहली महिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुईं और इतिहास रचा। वे 29 अप्रैल, 1992 तक सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहीं। बाद में वे तमिलनाडु की राज्यपाल भी रहीं।
सुर सजा भूषण
संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दर्जनों फिल्मों में कर्णप्रिय संगीत दिया है। वे एक समय हिन्दी फिल्मों के सबसे लोकप्रिय और व्यस्त संगीतकार थे। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने सात बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। प्यारेलाल देश के सर्वश्रेष्ठ वायलिन वादकों में से एक हैं। फिल्म ‘शोर’ के कालजयी गाने ‘एक प्यार का नगमा है’ में उनकी वायलिन की धुन आज भी लोगों की आंखों में पानी ला देती है। देश के लगभग सभी बड़े फिल्मकारों ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से अपनी फिल्मों के लिए गाने संगीतबद्ध करवाए हैं। अब प्यारेलाल को पद्म भूषण सम्मान से विभूषित किया गया है।
साहित्य-सेवा को सम्मान
होर्मुसजी एन कामा को इस वर्ष साहित्य और शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण देने की घोषणा की गई है। होर्मूसजी नुसरवानजी कामा मुंबई समाचार के प्रबंध निदेशक हैं और बॉम्बे एसोसिएटेड न्यूजपेपर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक भी हैं। अनुभवी पत्रकार होर्मूसजी कामा ने वर्ष 2018-2019 में आडिट ब्यूरो आफ सर्कुलेशन (एबीसी) के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे दो बार इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के अध्यक्ष भी रहे। समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) और मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे। कामा परिवार लंबे समय से मीडिया व्यवसाय से जुड़ा है और 1933 से मुंबई समाचार का प्रकाशक है।
सेवा है यज्ञ कुंड समिधा सम हम जलें
डॉ. सीताराम जिंदल जिंदल एल्युमीनियम लिमिटेड (जेएएल) के संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक हैं, जो भारत में एल्युमीनियम एक्स्टेक्शन की सबसे बड़ी कंपनी है। वे अकेले घरेलू बाजार के 25 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति करता है और पिछले कई दशकों से लगातार उद्योग में अग्रणी बना हुआ है। डॉ. सीताराम जिंदल का जन्म 1932 में हरियाणा के नलवा में हुआ था। उन्होंने नेचुरोपैथी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। वे सामाजिक कार्यों को लेकर बहुत प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में धर्मार्थ संस्थाओं की स्थापना भी की।
दिल के रोगों को लेते हर
अश्विन बालाचंद मेहता भारत के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उन्हें इस क्षेत्र में पांच दशक से भी ज्यादा का अनुभव प्राप्त है। वे भारत में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के अग्रणियों में से एक हैं। वे मुंबई के जसलोक अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग के निदेशक हैं। उन्होंने 1973 में भारत में नवजात शिशुओं में पहली कार्डियेक कैथीटेराइजेशन और एंजियोग्राफी की थी। उसी वर्ष उन्होंने देश में बंडल इलेक्ट्रोग्राफी की शुरुआत भी की। उन्हें 35,000 से अधिक एंजियोप्लास्टी और 75,000 से अधिक एंजियोग्राफी करने और सुपरविजन करने का अनुभव है।
अध्यात्म के रास्ते की प्राणियों की सेवा
तोगदान रिनपोछे तिब्बती बौद्ध परंपरा के एक प्रख्यात योगी और विद्वान थे, जो लद्दाख में रहते थे। उन्होंने अपनी अनंत करुणा और प्रबुद्ध गतिविधियों से अनेक प्राणियों की मदद की। उन्हें मरणोपरांत अध्यात्म के क्षेत्र में पद्मभूषण दिया गया है। तोगदान रिनपोछे बौद्ध अनुयायियों के बीच काफी प्रसिद्ध रहे हैं। लद्दाख के अलावा अन्य राज्यों और देशों में भी उनके अनुयायी हैं। उनका निधन मई 2023 में लेह में हुआ।
अतुलनीय योगदान विशिष्ट सम्मान
कुंदन व्यास को साहित्य और शिक्षा-पत्रकारिता के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। गुजराती साहित्य में उनका उत्कृष्ट योगदान है। उन्होंने अपनी निर्भीक पत्रकारिता से नई पीढ़ी का मार्गदर्शन किया है। कुन्दन व्यास 9 जून, 1934 को स्थापित जन्मभूमि अखबार के मुख्य संपादक हैं। वह इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) के अध्यक्ष पद का दायित्व भी निभा चुके हैं।
संघर्ष, सफलता और अब सम्मान
गौरांग चक्रवर्ती उर्फ प्रख्यात सिने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने अपनी पहली ही फिल्म ‘मृगया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1977) जीता था। ‘मृगया’ के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने के बाद भी उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि उनका रूप-रंग पारंपरिक नायकों जैसा नहीं था। इसके चलते उन्हें फिल्म जगत में कई बार अस्वीकार तक किया गया। सांवला होने के चलते उस समय की शीर्ष नायिकाएं उनके संग काम नहीं करना चाहती थीं। ऐसे में जीनत अमान ने मिथुन के साथ फिल्म करने की स्वीकृति देकर उनकी मदद की। दोनों ने एक साथ कई हिट फिल्में दीं। इसके बाद मिथुन दा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1982 में बी. सुभाष निर्देशित फिल्म ‘डिस्को डांसर’ ने मिथुन चक्रवर्ती को स्टार बना दिया। उन्होंने एक लंबी पारी खेली। वे उत्कृष्ट अभिनय के लिए जाने जाते हैं। न्होंने तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते हैं।
महावत की महारथ
पार्बती बरुआ भारत की पहली महिला महावत हैं। असम की 67 वर्षीया पार्बती ने परंपरागत रूप से इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया। वे पूरी प्रतिबद्धता के साथ वैज्ञानिक उपायों के जरिये मनुष्य और हाथी के संघर्ष को कम करने के लिए कार्य कर रही हैं। उन्होंने जंगली हाथियों को पकड़ने और उनसे निपटने में तीन राज्य सरकारों की सहायता की है। उन्हें यह कौशल अपने पिता से विरासत में मिला है। वे 14 वर्ष की उम्र से यह काम कर रही हैं और पिछले चार दशक में कई बिगड़ैल हाथियों के जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक संपन्न पृष्ठभूमि से आने के बावजूद उन्होंने एक साधारण जीवन चुना।
समाज कल्याण के लिए समर्पित जीवन
जागेश्वर यादव छत्तीसगढ़ स्थित जशपुर के वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने हाशिये पर पड़े बिरहोर और पहाड़ी कोरबा लोगों (पीवीटीजी यानी ‘विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह’) की बेहतरी और कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने जशपुर में शिविर लगाकर निरक्षरता उन्मूलन तथा स्वास्थ्य सेवा मानकों को बेहतर करने के लिए काम किया। वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान उन्होंने टीकाकरण शिविर लगवाए। आर्थिक तंगी के बावजूद, सामाजिक बदलाव लाने का उनका जुनून कायम है।
हजारों जिंदगियों में लाए उजियारा
छत्तीसगढ़ स्थित नारायणपुर जिले के निवासी वैद्य हेमचंद मांझी ने अपना पूरा जीवन जड़ी-बूटियों की खोज में समर्पित कर दिया है। उन्होंने लगभग पांच दशक में हजारों लोगों का सफल उपचार किया है। वे 15 साल की आयु से यह काम कर रहे हैं। उन्हें ‘वैद्यराज मांझी’ के नाम से भी जाना जाता है। वे अबूझमाड़ के सुदूर जंगलों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों के विशेष ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। वह मरीजों से नाममात्र का शुल्क लेते हैं। नक्सलियों द्वारा बार-बार धमकियां मिलने के बावजूद, उन्होंने ईमानदारी और उत्साह के साथ लोगों की सेवा का कार्य जारी रखा है।
पारंपरिक किस्मों का किया संरक्षण
केरल के कासरगोड के चावल किसान सत्यनारायण बेलेरी 2008 से मुख्य रूप से केरल और कर्नाटक की 650 से ज्यादा पारंपरिक किस्मों का संरक्षण कर रहे हैं। उन्हें सीडिंग सत्य के नाम से भी जाना जाता है। बेलेरी ने पॉलीबैग में धान उगाकर संरक्षण की एक नई तकनीक विकसित की है। इसके अतिरिक्त वे सुपारी, जायफल, काली मिर्च की अहम पारंपरिक किस्मों को भी संरक्षित कर रहे हैं। बेलेरी ने अनुसंधान केंद्रों को चावल की 50 किस्में उपलब्ध कराई हैं और किसानों को नि:शुल्क चावल के बीज बांटे हैं, इससे अनुसंधान और संरक्षण को बढ़ावा मिला है।
समाज का काम मिला अद्भुत इनाम
मिजोरम के संगथंकिमा मिजोरम में सबसे बड़ा अनाथालय चलाते हैं। वे तीन दशकों से बच्चों के कल्याण और नशामुक्ति के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही, एचआईवी-एड्स को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। वे शिक्षा और अन्य सामाजिक मुद्दों को लेकर भी अनवरत काम कर रहे हैं। संगथंकिमा अनाथों, दिव्यांगजन और नशे के आदी लोगों के पुनर्वास लिए काम करते हुए उन्हें आश्रय उपलब्ध करा रहे हैं। असम के चार जिलों में अपने पुनर्वास केंद्रों के माध्यम से वह उत्तर-पूर्वी समुदायों के लोगों के बीच यह कार्यरत हैं।
त्रासदी को अवसर में बदल दिव्यांगों की बने आशा
हरियाणा स्थित सिरसा के सामाजिक कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह अनाथ और दिव्यांगों के लिए आशा की किरण हैं। उन्होंने अपना जीवन बेघर निराश्रितों,अनाथों, दिव्यांगजन और महिलाओं की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया है। अपने अटूट समर्पण के साथ उन्होंने ‘बाल गोपाल धाम’ नामक बाल देखभाल संस्थान की स्थापना करके 300 बच्चों के सपनों को पोषित किया है। उन्होंने दुर्घटना के शिकार 6,000 से अधिक व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को नि:शुल्क एम्बुलेंस सेवा प्रदान की है। ट्रक की चपेट में आने के बाद गुरविंदर सिंह का कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था और वे जीवन भर के लिए व्हीलचेयर तक ही सीमित हो गए, लेकिन उन्होंने हताश होने की बजाय अपनी निजी त्रासदी को दूसरों की सेवा के अवसर में तब्दील कर दिया।
जड़ी बूटियों की रानी ने गढ़ी नई कहानी
यानुंग जमोह लेगो अरुणाचल प्रदेश की एक हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। उन्हें ‘जड़ी-बूटियों की आदि रानी’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के आदि समुदाय की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को पुनर्जीवित करने का काम किया है। अरुणाचल के पूर्वी सियांग की हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ यानुंग जमोह लेगो ने 10,000 से अधिक लोगों को चिकित्सा देखभाल प्रदान की है। उन्होंने एक लाख लोगों को औषधीय जड़ी-बूटियों के बारे में शिक्षित किया, साथ ही स्वयं सहायता समूहों को भी औषधीय जड़ी-बूटियों के प्रयोग के बारे में प्रशिक्षित किया है। उन्होंने प्रतिवर्ष 5,000 से अधिक औषधीय पौधे लगाए और जिले के हर घर में हर्बल किचन गार्डन बनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया है।
‘गोदना के गौरव’ ने किया गौरवान्वित
बिहार निवासी दंपती शिवन पासवान और शांति देवी पासवान की यह गोदना चित्रकार जोड़ी सामाजिक दंशों की पीड़ा झेलने के बावजूद, वैश्विक स्तर पर मधुबनी पेंटिंग का प्रमुख चेहरा बन गई। इनके आर्ट वर्क को अमेरिका,जापान,हांगकांग समेत कई देशों में ख्याति मिली है। इस दंपती ने इस विरासत को संरक्षित करने के लिए 20 हजार महिलाओं को प्रशिक्षित किया है। शांति देवी ने भारत में संपन्न हुए ‘जी 20 शिखर सम्मेलन’ जैसे वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद शिवन पासवान ने पेंटिंग करना और युवाओं को कौशल प्रदान करना जारी रखा। ये ‘गोदना के गौरव’ माने जाते हैं।
कला कौशल से प्रतिमाओं में भर देते जान
पारंपरिक कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में पांच दशक से अधिक का अनुभव रखने वाले प्रतिष्ठित मूर्तिकार सनातन रुद्र पाल को ‘सबेकी दुर्गा प्रतिमाएं’ बनाने में महारत हासिल है। उनके द्वारा बनाई गईं मां दुर्गा की प्रतिमाएं पश्चिम बंगाल में वार्षिक दुर्गा पूजा समारोह का अभिन्न हिस्सा बन गई हैं। उनकी मिट्टी की मूर्तियां हर वर्ष 30 से अधिक पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं। वे 1,500 से अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं। अपनी अद्भुत मूर्तियों के लिए उन्हें यूनेस्को द्वारा भी मान्यता मिली है। वे मूर्ति निर्माताओं के परिवार से आते हैं। उन्होंने अपनी एक अनोखी शैली निर्मित की है। उनके द्वारा बनाई गई मूर्तियों में आंखें अत्यंत आकर्षक, दीप्तिमान और प्रभावशाली होती हैं।
वनवासी समाज को जागरूक कर विधर्मी होने से बचाया
‘पद्मश्री’ से सम्मानित त्रिपुरा के शांति काली आश्रम के संचालक चित्तरंजन देबबर्मा क्षेत्र के आम लोगों के बीच ‘चित्त महाराज’ के नाम से जाने जाते हैं। चित्त यानी अंतस को परिवर्तित करने की क्षमता रखने वाले आध्यात्मिक धर्म गुरु। 22 जनवरी 1962 को बार्थाकल (त्रिपुरा) में जन्मे 62 साल के चित्त महाराज को यह पद्म सम्मान वनवासी बहुल क्षेत्रों में हाशिए पर रहने वाले लोगों को सुशिक्षित व सुसंस्कारी बनाने में उनके विशिष्ट योगदान के लिये दिया गया है। बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के चित्त महाराज ने औपचारिक शिक्षा पूरी कर पंचायत सचिव के रूप में गांववासियों को अपनी सेवाएं देनी शुरू कर दी थीं। उसी दौरान उनकी भेंट शांतिकाली आश्रम के प्रमुख स्वामी काली से हुई थी। तभी से उनका पूरा जीवन बदल गया। स्वामी काली को गुरु रूप में स्वीकार कर बहुत कम उम्र में घर त्याग कर उनकी प्रेरणा से वे शिक्षा व विकास से अछूते जनजातीय समाज के जनजागरण में जुट गये। उसी दौरान अतिवादियों द्वारा स्वामी काली की हत्या कर दी गई। उसके बाद चित्त महाराज ने गुरु आश्रम का कार्यभार पूरी तरह संभाल लिया और अपना पूरा जीवन वनवासी समाज के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने न सिर्फ बड़ी संख्या में वनवासियों को शिक्षित किया, उन्हें स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी बनाया। जैविक कृषि सिखाकर स्वावलंबी बनाया जिससे उनके जीवन को बदलने में बहुत मदद मिली। उन्होंने वनवासियों को सनातन धर्म की वैज्ञानिकता तथा परम्पराओं का ज्ञान देकर विधर्मी होने से भी बचाया।
जंगल की शेरनी चामी मुर्मू
जंगल की शेरनी के नाम से विख्यात झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के बाघरायसाई गांव की रहने वाली 52 वर्षीया चामी मुर्मू को जंगलों को कटने से बचाने और 500 से अधिक गांवों में 30 लाख पेड़ लगाने के अप्रतिम योगदान के लिए पद्मश्री से अलंकृत किया गया है। जंगल की अवैध कटाई करने वाले माफिया चामी मुर्मू नाम से ही खौफ खाते हैं। जनजातीय पर्यावरणविद् होने के साथ चामी मुर्मू की स्थानीय पहचान एक प्रखर समाजसेवी की भी है। स्वयं सहायता समूह बनाकर वे न केवल निर्धन महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में जुटी हुई हैं वरन् सुरक्षित मातृत्व, एनीमिया और कुपोषण रोकने के साथ किशोरियों की शिक्षा की दिशा में लगातार जागरूकता फैला रही हैं।
प्रकृति के पुजारी
पौधे रोपने के अपने गहरे जूनून के बल पर पद्मश्री जैसा सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान हासिल करने वाले 78 वर्षीय दुखू माझी आज अपने गांव व जिले में ही नहीं अपितु पूरे राज्य में गौरव का विषय बने हुए हैं। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के सिंदरी गांव के रहने वाले वनवासी समाज के पर्यावरणविद् दुखू माझी को यह पद्म सम्मान पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया गया है। क्षेत्र के लोग उन्हें प्यार से ‘गाछ दादू’ भी पुकारते हैं। अब तक वे मीलों चलकर पश्चिम बंगाल व झारखंड की खाली पड़ी बंजर जमीन में बरगद, आम और जामुन के पांच हजार से ज्यादा पौधे रोप चुके हैं।
पीड़ितों को देतीं नया जीवन
अब तक 25000 लोगों की निशुल्क बर्न प्लास्टिक सर्जरी करने वाली बेंगलुरु निवासी 72 वर्षीया डॉ. प्रेमा धनराज को बर्न सर्जरी की दिशा में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म पुरस्कार के लिए चुना गया है। महज आठ साल की छोटी सी उम्र में रसोई स्टोव फटने से गंभीर रूप से झुलसने के कारण उनका चेहरा, गर्दन और शरीर लगभग 50 प्रतिशत जल गया था। उनकी सर्जरी 12 घंटे चली। सर्जरी के बाद जब अपनी आंखें खोलीं तो मां ने कहा, तुम्हें डाक्टर ही बनना है। प्रेमा की खुद की 14 से ज्यादा सर्जरी हुई थीं। जलने की पीड़ा कितनी तकलीफदेह होती है, इसे उन्होंने खुद भोगा था; इस कारण उन्होंने अपना पूरा जीवन ऐसे लोगों की सेवा में लगा दिया। गौरतलब है कि वर्ष 1999 में डॉ. प्रेमा ने बहन चित्रा के साथ मिलकर कम आय वाले लोगों के एक गैर सरकारी संगठन ‘अग्नि रक्षा’ की स्थापना की जिसमें अब तक 25,000 बर्न पीड़ितों की मुफ्त सर्जरी की जा चुकी है।
हरि कथा गाकर करती हैं मंत्रमुग्ध
आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले की उमा माहेश्वरी डी को संस्कृत भाषा में हरिकथा को लोकप्रिय बनाने के बहुमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री का गौरव मिला है। वे देश की ऐसी पहली महिला कथाकार हैं जो तेलुगू और संस्कृत की मर्मज्ञ विद्वान होने के साथ शास्त्रीय संगीत में भी निष्णात हैं। जब वे शुभपंतुवराली, केदारम, कल्याणी आदि शास्त्रीय रागों से सजी देवभाषा में श्री हरि महिमा का गुणगान करती हैं तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनकी प्रेरणा से बड़ी संख्या में किशोरी और युवा लड़कियां सामाजिक रूढ़ियों और मार्ग की बाधाओं को तोड़ते हुए संस्कृत कथाकार बनने की दिशा में आगे बढ़ी हैं। बता दें कि वे अब तक रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत और कालिदास के कथानकों पर आधारित संस्कृत में 500 और तेलुगू में हरिकथा की 800 से अधिक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं।
-साथ में सुनील राय, पूनम नेगी, संजीव कुमार एवं रितेश कश्यप
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