मानस के मोती – श्रीरामचरितमानस: यह बर मागउँ कृपानिकेता। बसहु हृदयँ श्री अनुज समेता॥

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ते तुम्ह सकल लोकपति साईं। पूँछेहु मोहि मनुज की नाईं॥
यह बर मागउँ कृपानिकेता। बसहु हृदयँ श्री अनुज समेता॥

भावार्थ

उन्हीं आपने समस्त लोकपालों के स्वामी होकर भी मुझसे मनुष्य की तरह प्रश्न किया। हे कृपा के धाम ! मैं तो यह वर मांगता हूं कि आप श्रीसीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित मेरे हृदय में (सदा) निवास कीजिए।

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