गत 28 जनवरी को ‘पाञ्चजन्य’ के सहयोगी संपादक और देश के जाने-माने पत्रकार श्री ज्ञानेंद्र बरतरिया का निधन हो गया। लगभग 15 दिन पहले उन्हें हृदयाघात हुआ था। चिकित्सकों ने उनकी ‘ओपन हार्ट सर्जरी’ की। लेकिन बाद में कुछ ऐसी स्थितियां बनीं कि उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया। काफी चिकित्सकीय प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनका अंतिम संस्कार उसी दिन निगम बोध घाट पर किया गया। उनके पुत्र अरुष बरतरिया ने जब उन्हें मुखाग्नि दी तब वहां उपस्थित हर व्यक्ति की आंखें नम हो गईं।
ज्ञानेंद्र जी पिछले लगभग एक साल से ‘पाञ्चजन्य’ में सहयोगी संपादक का दायित्व निभा रहे थे। इससे पहले भी वे ‘पाञ्चजन्य’ के लिए लेख लिखते रहे थे। सदैव हंसकर बात करने वाले ज्ञानेंद्र जी गंभीर विषयों को भी बहुत ही सरलता के साथ पाठकों के सामने रखते थे।
उनका जन्म 1 अक्तूबर, 1966 को भोपाल में हुआ था। छात्र जीवन में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भोपाल और ग्वालियर में पत्रकारिता की। इसके बाद वे दिल्ली आ गए। यहां उन्होंने देश के प्राय: सभी बड़े प्रमुख हिंदी समाचार चैनलों और अखबारों में अपनी सेवाएं दीं।
कुछ समय उन्होंने प्रसार भारती में भी कार्य किया। वे विदेश और रक्षा मामलों के गहन जानकार थे। पत्रकारिता की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद वे नई-नई पुस्तकों का अध्ययन करते थे। ऐसे विद्वान साथी के असमय निधन से पूरा पाञ्चजन्य परिवार शोक-संतप्त है। प्रभु उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें। ऊं शांति: शांति:।
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