श्रीराम की प्रतिष्ठा से अलोकित होने का पर्व

Published by
WEB DESK

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविन्द गिरी ने अपने संबोधन में बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवनिर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए किस प्रकार कठिन व्रत रखा

ॐ आपदामपहर्तारं दातारं सर्व सम्पदाम्
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।

आज अंत:करण उल्लास और कृतज्ञता से भरा हुआ है। संपूर्ण राष्ट्र और विश्व में आज भगवान श्रीराम की प्रतिष्ठा से आलोकित होने का पर्व प्रारंभ हो चुका है। यह केवल एक मंदिर में एक मूर्ति की प्रतिष्ठा नहीं है। यह इस देश की अस्मिता, स्वाभिमान और आत्मविश्वास है। 500 वर्षों की प्रतीक्षा के पश्चात यह संभव हो सका। इसके अनेक कारण हैं। अनेक कारण मिलते-मिलते जब एक विशिष्ट स्तर तक पहुंच जाते हैं, तो उस स्तर पर हमें कोई महापुरुष प्राप्त होता है।

उस विभूति के कारण युग परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए अपने जीवन को साधना पड़ता है और इस प्रकार जीवन साधने वाले, इस देश की परंपरा के अनेक महान रत्नों में हम लोगों को समय की आवश्यकता, युग की आवश्यकता और सनातन की अंत:करण की आवश्यकता के रूप में सम्मानीय प्रधानमंत्री जी प्राप्त हुए हैं। यह केवल इस देश का ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व का सौभाग्य है कि ऐसा राजर्षि हम लोगों को प्राप्त हुआ है।

आज हमें ऐसे ही महापुरुष प्राप्त हुए हैं, जिन्हें भगवती जगदम्बा ने स्वयं हिमालय से लौटा कर भेज दिया कि जाओ, भारतमाता की सेवा करो। शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास स्वामी महाराज ने कहा था- निश्चयाचा महामेरू। बहुत जनासी आधारू। अखंडस्थितीचा निर्धारु। श्रीमंत योगी, श्रीमंत योगी। हमें आज एक श्रीमंत योगी प्राप्त हुआ है।

लगभग 20 दिन पहले मुझे एक आश्चर्यजनक समाचार मिला। पीएमओ से इसकी नियमावली मांगी गई थी कि प्राण-प्रतिष्ठा के लिए प्रधानमंत्री जी को क्या-क्या अनुष्ठान करके स्वयं को सिद्ध करना चाहिए। इस प्रकार की भावना कहां होती है? भगवान श्रीराम की प्रतिष्ठा करनी है। भगवान श्रीराम भारतीय आदर्शों के सर्वोच्च आदर्श हैं और उन समस्त जीवन आदर्शों की प्रतिष्ठा करने के समान ही यहां की प्रतिष्ठा रही है। इसलिए एक महान विभूति को ऐसा लगा कि मैं स्वयं को भी साधूं। कर्मणा-मनसा-वाचा अर्थात् कर्म से, मन से और वाणी से स्वयं को इस प्रयोजन के लिए शुद्ध बनाऊं, सिद्ध बनाऊं

आज मुझे यह बताते हुए अंत:करण गद्गद होने की अनुभूति हो रही है। हम लोगों ने महापुरुषों से परामर्श करके आप (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) से कहा था कि आपको केवल तीन दिन का उपवास करना है। आपने 11 दिन का संपूर्ण उपोषण (निराहार व्रत) किया। महाभारत में कहा गया है कि अनशन सबसे बड़ा तप है। ऐसा तपस्वी राष्ट्रीय नेता प्राप्त होना, सामान्य बात नहीं है। हमने कहा था कि आपको (प्रधानमंत्री) विदेश प्रवास नहीं करना चाहिए, तो सांसारिक दोषों की संभावना के कारण आपने विदेश प्रवास टाल दिया और दिव्य देशों का प्रवास किया। नासिक से आरंभ किया, गुरुवायुर गए, श्रीरंगम गए, रामेश्वरम् गए, इन सारे स्थानों पर जाकर वहां के परमाणुओं को लेकर और भारतमाता के हर कोनों में जाकर मानो वे निमंत्रण दे रहे थे-आइए, दिव्य आत्माओं, अयोध्या पधारिए और हमारे राष्ट्र को महान बनाने के लिए आशीर्वाद दीजिए। हमने कहा था कि आपको केवल तीन दिन तक भूमि पर शयन करना चाहिए, लेकिन आप 11 दिन तक भूमि पर शयन करते रहे। इस कड़कड़ाती ठंड में इस प्रकार का भूमि शयन करना!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 दिन का संपूर्ण उपोषण (निराहार व्रत) किया। महाभारत में कहा गया है कि अनशन सबसे बड़ा तप है

जब भी मैं अपने पूज्य गुरुदेव के गुरुदेव से मिलता था, वह एक ही बात कहते थे-तपश्चर्य। आज तप की कमी हो गई है और उस तप को हमने आप में साकार देखा। इस परंपरा को देखते हुए केवल एक राजा की याद आती है, जिसमें यह सब कुछ था, वह थे छत्रपति शिवाजी महाराज। जब वे मल्लिकार्जुन के दर्शन के लिए श्रीशैलम गए, उन्होंने तीन दिन का उपवास किया और तीन दिन शिव मंदिर में रहे। शिवाजी महाराज ने कहा कि मुझे राज नहीं करना है। मुझे संन्यास लेना है। मैं शिव जी की आराधना के लिए जन्मा हूं। उनके सारे ज्येष्ठ मंत्रियों ने उन्हें समझाया कि राजकार्य भी भगवद् सेवा ही है।

आज हमें ऐसे ही महापुरुष प्राप्त हुए हैं, जिन्हें भगवती जगदम्बा ने स्वयं हिमालय से लौटा कर भेज दिया कि जाओ, भारतमाता की सेवा करो। शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास स्वामी महाराज ने कहा था- निश्चयाचा महामेरू। बहुत जनासी आधारू। अखंडस्थितीचा निर्धारु। श्रीमंत योगी, श्रीमंत योगी। हमें आज एक श्रीमंत योगी प्राप्त हुआ है।

Share
Leave a Comment