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आखिरकार Pakistan के प्रधानमंत्री ने माना, Baluchistan चाहता है आजादी

बलूचिस्तान में असंतोष है, वहां छटपटाहट है पाकिस्तान से आजाद होने की। वहां के लोग पुलिस और सेना के दमन से परेशान हो चुके हैं

by WEB DESK
Jan 29, 2024, 12:15 pm IST
in विश्व
File Photo

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ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि जब प्रधानमंत्री के स्तर से इस बात को स्वीकारा गया है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के शासन तले त्रस्त है और आजाद होने को छटपटा रहा है। पड़ोसी इस्लामी देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री ने यह माना है कि बलूचिस्तान में हत्याओं और अपहरणों से त्रस्त हो चुके वहां के लोग अब पाकिस्तान से आजाद होना चाहते हैं। कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर ने आखिरकार एक साक्षात्कार में यह बात मानी है। पहले सरकार के स्तर पर कभी यह बात इस रूप में स्वीकारी नहीं गई थी।

लेकिन अपने ताजा साक्षात्कार में काकर ने माना है कि बलूचिस्तान में रहने वाले पाकिस्तान से बहुत असंतुष्ट हैं, वहां के लोग एक आजाद स्टेट की आवाज बुलंद कर रहे हैं। काकर ने यह बात तब कही जब उनसे बलूचिस्तान में एक लंबे समय से जारी अपहरणों और हत्याओं के दौर से त्रस्त लोगों के बारे में पूछा गया। इसके जवाब में काकर ने माना कि बलूचिस्तान के लोगों का सब्र जवाब दे रहा है और वे एक आजाद बलूची के नाते अपनी पहचान पाने को बेचैन हैं।

पड़ोसी इस्लामी देश के अब तक रहे नेता जानते रहे हैं कि बलूचिस्तान में असंतोष है, वहां छटपटाहट है पाकिस्तान से आजाद होने की। वहां के लोग पुलिस और सेना के दमन से परेशान हो चुके हैं। बुनियादी सुविधाओं की किल्लत ने उनका जीना मुहाल किया हुआ है। लेकिन तो भी इस्लामाबाद ने उस क्षेत्र के नागरिकों से सौतेला बर्ताव करना नहीं छोड़ा। लेकिन अब यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री स्तर के नेता ने बलूचिस्तान से उठ रही आजादी की मांग की बात स्वीकार की है।

कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल के बलूचिस्तान के संदर्भ में दिए इस बयान से वहां हलचल मचना भी स्वाभाविक ही है। यह मानना एक बड़े बदलाव जैसा है कि बलूचिस्तानी पाकिस्तान से संतुष्ट नहीं हैं, न ही वे अब इस्लामबाद के राज तले रहने को तैयार हैं। उन्हें वहां की हुकूमत से आजादी चाहिए।

कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर

क्या बलूचिस्तान के संदर्भ में आया प्रधानमंत्री काकर का यह बयान और बलूचों की आजादी के अभियान को अल्पसंख्यक समूह की चिंताओं की बात करना यहां की पिछली सरकारों की नीति से एक अलग नजरिया प्रस्तुत करता है? इस सवाल के पीछे कारण यह है कि पहले कभी किसी सरकार के अगुआ ने यह माना तक नहीं था कि वहां आजादी की कोई मांग उठती रही है।

इसके साथ ही काकर ने यह भी माना है कि बलूचिस्तान से लोग जबरन अगवा किए गए हैं, वे गायब हो रहे हैं। उनके अनुसार, ऐसे मामलों को सुलझाने में कई चुनौतियां हैं। काकर का कहना है कि अगवा या ‘लापता’ होने वालों को वापस लाने पर ध्यान देना होगा।

दरअसल बलूचिस्तान में असंतोष के मूल में है वहां के लोगों में बलूच के नाते एक अलग पहचान की चाहत। काकर ने कम से कम इस बात को स्वीकारा है, हालांकि पहले के किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह से इस मुद्दे को कभी स्वीकारा नहीं था।

Representational Image

क्या बलूचिस्तान के संदर्भ में आया प्रधानमंत्री काकर का यह बयान और बलूचों की आजादी के अभियान को अल्पसंख्यक समूह की चिंताओं की बात करना यहां की पिछली सरकारों की नीति से एक अलग नजरिया प्रस्तुत करता है? इस सवाल के पीछे कारण यह है कि पहले कभी किसी सरकार के अगुआ ने यह माना तक नहीं था कि वहां आजादी की कोई मांग उठती रही है।

हैरानी की बात है कि एक तरफ तो काकर यह स्वीकार रहे हैं कि बलूचिस्तान वाले पाकिस्तान के दमन से आहत हैं तो दूसरी तरफ बलूचिस्तान के राजनीतिक दलों और नेताओं का मानना है कि खुद काकर बलूच आंदोलन को कुचलने के कदमों में संलिप्त पाए गए हैं। उनका कहना है कि काकर ने तो खुद लापता या मारे गए बलूचों के परिजनों पर लाठियां चलाने के फरमान दिए थे।

लेकिन काकर के ताजा बयान के बाद, विशेषज्ञों के मन में कुछ सवाल हैं। क्या काकर अब गंभीरता से बलूचों की बात सुनेंगे? क्या वे सेना को बलूचों पर अत्याचार न करने के आदेश देंगे? क्या वे बलूचों की आजादी की मांग को बड़े मंच पर उठाएंगे, उस पर चर्चा करेंगे?

Topics: बलूचकाकरkakarपाकिस्तानkidnappingsPakistanmurdersislamabadbaluchistanarmybaluchindependenceबलूचिस्तान
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