पश्चिमी मीडिया द संडे गॉर्जियन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर एक लेख प्रकाशित किया है। इसमें उसने दावा किया है कि अयोध्या में राम मंदिर बनवाने और उसकी प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक अपराजेय नेता के तौर पर उभर चुके हैं। उन्हें सनातन धर्म के बड़े चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अब अगर विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करता है तो ये सीधा सनातन धर्म पर हमले के तौर पर देखा जाता है।
लेख में दावा किया गया है कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया था, वो उनका अब तक का सबसे अच्छा भाषण माना जा रहा है। उन्होंने भगवान राम की जिस तरह से व्याख्या की उन्होंने हर सनातनी को सीधे तौर पर अपने से जोड़ लिया है। द संडे गॉर्जियन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि पीएम मोदी अब शंकराचार्यों से भी ऊपर नजर आएंगे। अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा को जो कुछ भी घटित हुआ, वो अपने आप में एक इतिहास रच गया। इसका असर दक्षिण भारत में भी देखने को मिल सकता है, क्योंकि भगवान राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। दक्षिण में भगवान विष्णु के अधिकांश मंदिर हैं।
इसके अलावा अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति दक्षिणी राज्यों के मंदिरों से काफी मिलती-जुलती है। अगर राम मंदिर का मुद्दा दक्षिण भारत के मतदाताओं पर असर डालता है तो पीएम मोदी के 400 पार के लक्ष्य को पूरा होने से विपक्ष नहीं रोक पाएगा। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जिस तरह से तमिलनाडु के नेताओं सनातन धर्म पर आघात किया और उसके खिलाफ बयानबाजी की थी, उसका सीधा फायदा पीएम मोदी को मिला। उनकी छवि सनातन धर्म के लीडर के तौर पर लगातार मजबूत होती जा रही है।
विपक्ष मुस्लिम तुष्टिकरण और जातिगत राजनीति में जुटा
द गॉर्जियन अपने लेख में कहता है कि कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष अभी भी जाति आधारित राजनीति कर रहा है। जबकि, राम मंदिर ही वो मुद्दा था, जिसने उत्तर भारत में जातिवादी राजनीति को धूल चटा दिया। विभिन्न जातिगत समूहों में बंटे लोग एकजुट हो रहे हैं। कांग्रेस, सपा, बसपा और आरजेडी जैसी पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं, जिसका खामियाजा 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भुगतना पड़ सकता है। इस चुनाव के बाद हो सकता है कि इनकी संख्या बिल्कुल नगण्य हो जाए।
जब 2014 में कांग्रेस हारी थी, तो उसने सॉफ्ट हिन्दुत्व का रास्ता अपनाने की कोशिश की, लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण वो कभी भी खुलकर ऐसा कर ही नहीं पाई। जिस राजस्थान में मुस्लिम वोटरों की संख्या केवल 5 फीसदी है, वहां भी कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की, जिसका सीधा फायदा भाजपा को हुआ। कांग्रेस को इतनी बार हार मिली, लेकिन उसने कभी इससे सबक नहीं सीखा। राहुल गांधी पूर्वोत्तर भारत में न्याय यात्रा निकाल रहे हैं, लेकिन कई राज्यों में खुद कांग्रेसी नेता ही उसके साथ नहीं दिखना चाह रहे हैं।
कांग्रेस के नेताओं को इस बात की चिंता सताए जा रही है कि वो सनातन धर्म का चेहरा बन चुके पीएम मोदी से कैसे मुकाबला करें। रही बात इंडि अलायंस की तो उसमें शामिल दल भी अब कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस पर सीधे-सीधे हिन्दू विरोधी टैग लग गया है। कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे तौर पर टक्कर लेने वाला कोई नेता है ही नहीं। द संडे गॉर्जियन अपनी रिपोर्ट में लिखता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी में सजावटी प्रमुख प्रतीत होते हैं। पार्टी में फैसले होने के बाद उन्हें पता चलता है कि अच्छा ये फैसला लिया गया है।
द संडे गॉर्जियन ये भी लिखता है कि राहुल गांधी, जो शायद हिंदू धर्म और उसके रीति-रिवाजों के बारे में भी नहीं जानते होंगे, उन्होंने केसी वेणुगोपाल, जयराम रमेश, सैम पित्रोदा जैसे सलाहकारों की सलाह पर इस समारोह को बार-बार भाजपा का कार्यक्रम करार दिया।
उन्हें उनके चाटुकार सलाहकारों ने आश्वस्त किया है कि कांग्रेस ईवीएम के कारण हार रही है। राहुल से कहा गया है कि उनकी मेहनत 2024 या 2029 में भी रंग लाएगी। जब तक कांग्रेस ऐसे चाटुकारों द्वारा चलाई जाएगी, बीजेपी को कम मेहनत में बड़ी जीत हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
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