ज्ञानवापी ढांचे के मामले में भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद ये सिद्ध हो गया है कि ज्ञानवापी परिसर कोई मस्जिद नहीं, बल्कि एक मंदिर है। एएसआई की रिपोर्ट को लेकर विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि एकत्र किए गए सबूतों से जो निष्कर्ष निकाला गया है, उसके बाद मंदिर के बारे में कोई संदेह नहीं रह गया है।
#WATCH | Following the Archaeological Survey of India's report on the Gyanvapi case, Vishva Hindu Parishad (VHP) International Working President, Alok Kumar says, "…With all the evidence that has been collected and the conclusion that has been drawn, there is no room of doubt… pic.twitter.com/KNsUuOiTj4
— ANI (@ANI) January 28, 2024
उन्होंने कहा कि अब विश्व हिन्दू परिषद की दो मांगे हैं। पहली ये कि ज्ञानवापी परिसर में वजूखाना क्षेत्र में पाए गए शिव लिंग की पूजा के लिए पेशकश शुरू होनी चाहिए और कोर्ट को हिन्दू समुदाय को इसके लिए अनुमति देनी चाहिए। दूसरी ये कि इंतजामिया समिति से आग्रह है कि नई रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए वो ज्ञानवापी मस्जिद को सम्मानपूर्वक किसी और स्थान पर स्थानांतरित करके मूल स्थल को हिन्दू समुदाय को सौंप दे।
विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहते हैं कि एएसआई ने कोर्ट में जो सबूत पेश किए हैं, उससे ये स्पष्ट है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र अस्तित्व में था। साथ ही वर्शिप एक्ट 1991 की धारा 4 के तहत इसे हिन्दू मंदिर घोषित किया जा सकता है।
क्या कहती है एएसआई की रिपोर्ट
उल्लेखनीय है कि पिछले साल 18 दिसंबर को एएसआई ने सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट को वाराणसी जिला कोर्ट में सबमिट किया था। इसे अब सार्वजनिक किया गया है। 839 पन्नों वाली इस रिपोर्ट में क्लियर मेंशन किया गया है कि 17वीं सदी में मंदिर को तोड़कर मुगल आक्रांताओं ने मस्जिद का निर्माण किया था।
इस मामले में गुरुवार को एएसआई की रिपोर्ट को पब्लिक किया गया, जिसके अनुसार मंदिर को तोड़कर वहां पर गुम्बद बनाया गया था। मंदिर के ऊपर बनाया गया गुम्बद करीब 350 वर्ष पुराना है, जबकि मंदिर की दीवार नागर शैली की हैं। नागर शैली सातवीं शताब्दी की है। यह शैली पल्लव काल में शुरू हुई थी और चोल काल में और अधिक विकसित हुई थी। एएसआई ने कहा है, “यह कहा जा सकता है कि गुम्बद के निर्माण के पहले एक हिन्दू मंदिर अस्तित्व में था।” एएसआई अपने सर्वे में इस नतीजे पर पहुंची है कि वहां पर मंदिर को तोड़कर गुम्बद बनाया गया था। अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया, “सर्वे रिपोर्ट का अभी अध्ययन किया जा रहा है। फिलहाल जानकारी के आधार पर पिछली दीवार पर ब्रह्म कमल, स्वास्तिक एवं मंदिर के अन्य प्रमाण एएसआई को मिले हैं।”
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