पहली धर्मसंसद में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का प्रस्ताव पारित हो चुका था। उसके बाद श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति भी बन गई थी। अब आंदोलन को आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी। इस पृष्ठभूमि में पेजावर मठाधीश्वर स्वामी विश्वेशतीर्थ जी महाराज की प्रेरणा से उडुपी मठ में दूसरी धर्मसंसद का आयोजन हुआ।
वर्ष था 1985। इसी धर्म संसद में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि अगर 1986 की शिवरात्रि तक राम जन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खोला गया तो संत गिरफ्तारी देंगे। अगले वर्ष शिवरात्रि 8 मार्च को पड़ रही थी।
धर्म संसद में पारित हुए उस प्रस्ताव का प्रभाव यह हुआ कि उससे पहले ही राम जन्मभूमि का ताला खुल गया। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में भी स्वामी जी को शामिल करने का निर्णय हुआ था, लेकिन महाराज जी के परलोकगमन के बाद पेजावर मठ के नए स्वामी को न्यास में जगह मिली।
जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने जन्मभूमि मामले के समाधान की इच्छा से कर्नाटक के राज्यपाल कृष्णकांत को पेजावर स्वामी से बातचीत करने उडुपी भेजा था। कृष्णकांत से बातचीत के बाद स्वामी जी ने विहिप के अधिकारियों से दिल्ली आकर बातचीत की और फिर सरकार को प्रस्ताव दिया कि विवादित स्थल को राम जन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए।
विवादित ढांचे को जस का तस रखने की बात थी। सरकार ने बात मान ली। बात आगे बढ़ती, तब तक सरकार बदल गई। नए प्रधानमंत्री बने नरसिंह राव ने इस सहमति को मानने से इनकार कर दिया।
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