श्रीराम मंदिर आंदोलन को जनांदोलन बनाने में जिन लोगों की विशेष भूमिका रही, उनमें ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शांतानंद सरस्वती प्रमुख थे।
अयोध्या आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए 1985 में विहिप के नई दिल्ली स्थित कार्यालय में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई थी। इसी बैठक में श्रीराम जन्मभूमि न्यास के गठन का निर्णय हुआ। राम मंदिर आंदोलन के शिल्पकार अशोक सिंहल का स्पष्ट मत था कि रामजी के इस काम में साधु-संतों की बड़ी भूमिका है और वे सब चाहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बने। इसके लिए सभी संत अपने-अपने तरीके से सक्रिय भी हैं। आवश्यकता इस बात की है कि सभी संगठित रूप से इसके लिए प्रयास करें।
इसी भावना के साथ अशोक सिंहल ने स्वामी शांतानंद सरस्वती से अनुरोध किया कि वे धर्मगुरुओं का मार्गदर्शन करें। इसके बाद शांतानंद जी ने हर संप्रदाय के संतों को इस आंदोलन से जोड़ने की पहल की। इसमें स्वामी जी के शिष्य वासुदेवानंद सरस्वती ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने राम मंदिर के लिए चातुर्मास के नियमों का भी उल्लंघन किया था।
उल्लेखनीय है कि चातुर्मास के दौरान किसी नदी को लांघा नहीं जाता है। लेकिन एक बार चातुर्मास के दौरान वह गंगा नदी को पारकर बद्रीनाथ पहुंचे। वहां उन्होंने राम मंदिर के लिए शिलापूजन किया। उनके साथ संघ के वरिष्ठ प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी भी थे। 1990 में स्वामी शांतानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती इस काम में लगे रहे। संत समाज ने जिस तरह एकजुट होकर राम मंदिर आंदोलन में भाग लिया, उसमें स्वामी शांतानंद सरस्वती की बड़ी भूमिका थी।
टिप्पणियाँ