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जन्म दिन विशेष : सरगम का दीप्त सुर “सुमन कल्याणपुर”

- आप सुमन के किसी भी युगल गीत का श्रवण करें तो अनुभूत करेंगे कि वो अपने सह-गायक/ गायिका के संग जिस स्वाभाविक रूप से सामंजस्य स्थापित करती चलती हैं वह उनके स्वर को अपने साथी गवैये के समानान्तर ला खड़ा करता है।

by डॉ. राजीव श्रीवास्तव
Jan 26, 2024, 04:25 pm IST
in विश्लेषण
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सुमन कल्याणपुर द्वारा गाए गए गीतों की सूची पर जब मैं अपनी एक विहंगम दृष्टि डालता हूँ तो अचरज के साथ-साथ कौतुहल से भी भर जाता हूँ। विविध प्रकृति के भाँति-भाँति के भावों से ओत-प्रोत गीतों में सुमन का स्वर-सौन्दर्य एक-एक गीत में निहित कथ्य को जिस सहजता से मुखर कर गया है वह उनकी गायन शैली, शब्द-अर्थ की समझ तथा भाव-प्रवणता को उद्घाटित करता है। हिन्दी सिने गीत-संगीत का स्वर्णिम युग अपने जिस सुरीले मधुर सुर का स्वर-सौन्दर्य वर्तमान में भी संगीत रसिकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है उसमें ढेरों गीतकारों के शब्द, संगीतकारों के सुर और गायक-गायिकाओं के स्वर की अपूर्व त्रिवेणी में एक वाणी उस गायिका की भी संजोए है जो पचास और साठ के दशक में सृजित स्वर्णिम कालजयी गीतों की धूरी रही हैं अर्थात् सुमन कल्याणपुर।

सिनेमाई गीतों के उस स्वर्ण काल में गीत-संगीत के श्रवण का माध्यम तब ‘विविध भारती’ से भी पहले रेडियो ‘सिलोन’ यानी ‘श्री लंका ब्रॉड्कास्टिंग कॉर्पोरेशन’ हुआ करता था। फ़िल्म ‘बात एक रात की’ (1962) का नारी स्वर में एकल गीत ‘न हम तुम्हें जाने न तुम हमें जानों, मगर लगता है कुछ ऐसा मेरा हमदम मिल गया’ की सुरीली गूँज रेडियो सिलोन पर साठ के दशक के पूर्वार्ध में प्रायः सुनाई देती थी। हिन्दुस्तान के घर-घर, गाँव, नगर-नगर, गली, मोहल्लों में इस गीत की शीर्ष लोकप्रियता ने सुमन कल्याणपुर को रातों-रात सभी संगीत प्रेमियों का हमदम बना दिया। सचिन देव बर्मन के संगीत में पगा यह गान पुरुष स्वर में संगीतकार-गायक हेमन्त कुमार के भी स्वर में है पर सुमन के कण्ठ से निकले इस गीत की लोकप्रियता ने लोगों को अचम्भित तो किया ही साथ ही इसने सुमन की असीम सम्भावनाओं की भी झलक दिखा दी। इस गीत की सुरीली तान से अभी लोग अचरज में पड़े ही हुए थे कि फ़िल्म ‘नूर महल’ (1965) का एकल गीत ‘मेरे महबूब न जा, आज की रात न जा, होने वाली है सहर, थोड़ी देर और ठहर’ ने राह चलते सभी को ठहरने पर विवश कर दिया। सुमन कल्याणपुर ने उस एक रात बस थोड़ी देर ही ठहरने का अनुरोध किया था पर उनकी सुरीली ध्वनि के सम्मोहन ने उन्हें सभी के हृदय में स्थाई रूप से सदा के लिए बसा दिया। जानी बाबू कव्वाल इसके संगीतकार थे। वही जानी बाबू जिन्होंने मनोज कुमार की फ़िल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1975) की प्रसिद्ध क़व्वाली ‘महंगाई मार गयी’ में गायक मुकेश, लता और चँचल के साथ अपना स्वर दिया था।

अपने ढेरों एकल गीतों के साथ ही सुमन कल्याणपुर के युगल गानों की लड़ियाँ कालजयी सिने गीतों में इस तरह से पिरोई गयी हैं कि उसकी सुरीली राग-रागिनी से आज भी सरगम के तार झंकृत हैं। साठ के दशक की सिने गीतों की सूची में सुमन के गाए गानों की फ़िल्मों की सँख्या दीर्ध है जिनमें ‘दिल एक मन्दिर’, ‘सूरज’, ‘दिल ही तो है’, ‘ब्रह्मचारी’, ‘जब जब फूल खिले’, ‘बरसात की रात’, ’शगुन’, ‘जहांआरा’, ‘साँझ और सवेरा’, ‘साथी’, ‘दिल ने फिर याद किया’, ‘बूँद जो बन गयी मोती’, ‘विश्वास’, ‘गीत’, ‘पहचान’ जैसे महत्वपूर्ण नाम सम्मिलित हैं। वास्तव में सुमन की गायिकी में निहित शास्त्रियता का आधार, वाणी का सहज लचीलापन, भाव सम्प्रेषण का कौशल तथा उच्चारण की शुद्धता उनके गाए गीतों को स्वतः ही विशिष्ट बनाता है। मध्य सप्तक में रह कर गीतों को प्रस्तुत करना उनके लिए जहाँ सर्वाधिक सुविधाजनक रहा है वहीं मंद्र एवं तार सप्तक को साधने में भी वो सक्षम रही हैं। सुमन के गीतों को सुनते हुए यह आभास होता है जैसे वो अपनी ही गायिकी को आनन्दित हो कर गा रही हैं तथा उसमें गहरे उतर कर वह सब बाहर उलीच रही हैं जो गीत के शब्द-शब्द में पैठा है। प्रवाह के संग वाँछित शब्द पर ठहराव और सह-गायक/ गायिका के संग तारतम्य स्थापित करने की स्वाभाविक वृत्ति सुमन के गायन को जीवन्त बनाती है। किसी भी संगीतकार के साथ एक गायक-गायिका का सुविधाजनक स्थिति में होना गीत की प्रस्तुति में आवश्यक तो होता ही है पर इसके विपरीत जब संगीतकार गायक/ गायिका की प्रतिभा, गुणवत्ता एवं सहज प्रस्तुति के प्रति आश्वस्त होता है तो यह एक आदर्श स्थिति कही जाती है। सुमन कल्याणपुर इसी आदर्श स्थिति की गायिका हैं।

शंकर-जयकिशन के संगीत में फ़िल्म ‘साँझ और सवेरा’ (1964) का गीत ‘अजहू न आए बालमा, सावन बीता जाए’ सुमन कल्याणपुर द्वारा मु. रफ़ी के साथ गाया गया शास्त्रीय बंदिश का एक ऐसा कालजयी गान है जिसमें सुमन इसमें प्रयुक्त राग-रागिनियों संग अपने स्वर को जिस सहजता से साधा है वह अद्भुत है। शंकर-जयकिशन की धुन से सजा यह गीत स्केल डी (Scale D), ताल कहरवा में सृजित एक ऐसी शास्त्रीय रचना है जो राग ‘सिंधु भैरवी’ की बंदिश जैसी प्रतीत होती है। इस गीत के उत्तरार्द्ध में राग किरवानी भी अपनी उपस्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है। वास्तव में सिंधु भैरवी, आसावरी थाट का एक ऐसा राग है जिसमें ग, ध, नि के कोमल स्वरूप स्पष्ट रूप से परिलक्षित हैं, परन्तु ‘रे’ तथा ‘नि’ के शुद्ध रूप का भी प्रयोग होने के कारण यह दोनों स्वर, शुद्ध एवं कोमल दोनों ही रूपों में उपस्थित है। गीतकार हसरत जयपुरी का लिखा यह गीत ठुमरी शैली की एक अद्भुत रचना है। सिनेमा में प्रयुक्त शास्त्रीय गीत का गायन एवं इसकी प्रस्तुति पारम्परिक रूप से रची गयी शास्त्रीय रचनाओं की तुलना में कठिन होता है। ऐसा इसलिए कि इसकी धुन बनाते समय प्रायः संगीतकार कई-कई राग का समावेश एक ही गीत में करते हैं जिस कारण गायक-गायिका को इन मिश्रित रागों को उनकी प्रकृति के अनुसार साधना पड़ता है जो अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होता है। सुमन कल्याणपुर इस गीत को जिस सहजता से निभा गयी हैं उससे उनकी शास्त्रीय शिक्षण-प्रशिक्षण का भान तो होता ही है साथ ही उनकी अपूर्व दक्षता तथा सुर-कौशल का भी परिचय मिलता है। इसी क्रम में फ़िल्म ‘बरसात की रात’ का रोशन के संगीत में सजा गीत ‘गरजत बरसत सावन आयो रे’ शास्त्रीय रंग में रंगा सुमन की एक और उत्कृष्ट प्रस्तुति है।

फ़िल्म ‘तुम हसीं मैं जवाँ’ का गीत ‘कामदेव जैसी तेरी सुरतिया’ आत्मिक प्रेम, शृंगार एवं परिणय के भाव को अत्यन्त ही कोमल, मनोरम और समर्पित भंगिमा संग प्रस्तुत किया है। उषा खन्ना के संगीत में फ़िल्म ‘मुनीम जी’ का एकल गान ‘पानी में जले मेरा गोरा बदन’ में व्याप्त अकुलाहट का भाव इस गीत को जिस दैहिक आकर्षण से शृंगारित कर गया है उसकी छटा तो अनुपम है। फ़िल्म ‘जहाँ प्यार मिले’ में शंकर-जयकिशन की रचना ‘चले जा चले जा चले जा जहाँ प्यार मिले’ में व्याप्त प्रेम अन्वेषण की व्यग्रता है तो कल्याणजी-आनन्दजी के संगीत में फ़िल्म ‘गीत’ का गान ‘बाँसुरी बनाई के’ अपने भीतर कृष्ण सदृश्य प्रेमी पिया का सम्मोहन है और उषा खन्ना के संगीत में फ़िल्म ‘सबक़’ का गीत ‘वो जिधर देख रहे हैं सब उधर देख रहे हैं’ में कुछ ईर्ष्या मिश्रित चाहत है तो प्रेम में एकाधिकार की कोमल चेष्टा भी है। ‘मन मेरा तुझको माँगे, दूर दूर तू भागे’ (गीत: इन्दीवर, संगीत: कल्याणजी-आनन्दजी, फ़िल्म: पारस) गीत में सुमन अपने कण्ठ से चुम्बक का एक ऐसा महीन कण उत्सर्जित करती सरगम के पथ पर आगे बढ़ती जाती हैं जो श्रवण करते सभी रसिकों को अनायास ही अपने आकर्षण में बाँधती जाती है। अपने प्रेम पर अधिकार जताने का उनका यह प्रयोजन आज भी मन को लुभाता है। फ़िल्म ‘मुहब्बत इसको कहते हैं’ के लिए मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे और खय्याम का संगीतबद्ध ‘जो हमपे गुजरती है तन्हा किसे समझाएँ, तुम भी तो नहीं मिलते जाएँ तो किधर जाएँ’ गीत में सुमन ने हौले-हौले विरह की उदास पीड़ा को जिस गहराई में डूब कर सम्प्रेषित किया है वह किसी के भी हृदय को मर्माहत करने के लिए पर्याप्त है। माँ-बेटी के नेह-स्नेह को उजागर करता सुमन की वाणी से झरता वात्सल्य रस से भीगा आशीष की बूँदों का पान फ़िल्म ‘दिल एक मन्दिर’ के लिए शैलेन्द्र के लिखे और शंकर-जयकिशन के संगीत से सजे ‘जूही की कली मेरी लाडली’ में सहज ही किया जा सकता है। रक्षा बन्धन में भाई-बहन के पवित्र सम्बन्ध को अपने भावपूर्ण स्वर में ‘बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है’ (गीत: इन्दीवर, संगीत: शंकर-जयकिशन, फ़िल्म: रेशम की डोरी) गीत में सुमन कल्याणपुर ने जिस आत्मीयता से प्रगट किया है वह भावनाओं के ज्वार को शीर्ष पर ले जा कर सम्पूर्ण तन्मयता के संग जैसे मन के पोर-पोर में उडेल देता है। फ़िल्म ‘दिल ही तो है’ में रोशन के संगीत में साहिर का लिखा ‘यूँ ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना, तेरी याद तो बन गयी एक बहाना’ गीत में जिस पीर की नीर को लिए सुमन दर्द के सरगम पर व्याकुलता का राग छेड़ती हैं उसकी अनुगूँज तो अन्तहीन है।

अपने युगल गीतों में सुमन कल्याणपुर गायन के अपने समस्त शाश्वत तत्वों के साथ विद्यमान हैं पर एक अतिरिक्त पक्ष जो इन युगल और समूह गान में परिलक्षित होता है वह है सह-गायक/ गायिका के सापेक्ष अपने स्वर को प्रतिक्रियावादी एवं तत्क्षण प्रत्युत्तर के रूप में प्रस्तुत करने का कौशल। आप सुमन के किसी भी युगल गीत का श्रवण करें तो अनुभूत करेंगे कि वो अपने सह-गायक/ गायिका के संग जिस स्वाभाविक रूप से सामंजस्य स्थापित करती चलती हैं वह उनके स्वर को अपने साथी गवैये के समानान्तर ला खड़ा करता है। लता मंगेशकर के संग सुमन कल्याणपुर का एकमात्र युगल गीत ‘कभी आज कभी कल कभी परसों, ऐसे ही बीते बरसों, हमारी सुनते ही नहीं साजना’ (गीत: शैलेन्द्र, संगीत: हेमन्त कुमार, स्वर: सुमन कल्याणपुर-लता मंगेशकर, फ़िल्म: चाँद) शास्त्रीय राग-रागिनी की संगत में सुमन के द्वारा सुर, स्वर, भाव, प्रस्तुति तथा कौशल के स्तर पर इतने सधे हुए रूप में प्रस्तुत किया गया है कि इसका श्रवण करते हुए आज भी लता के सापेक्ष किसी भी प्रकार का कोई भी भेद कर पाना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव है। शास्त्रियता के साँचे में ही ढला एक और युगल गीत सुमन कल्याणपुर ने गीता दत्त के संग फ़िल्म ‘हम भी इन्सान हैं’ में गाया है। हेमन्त कुमार के संगीत में शैलेन्द्र का लिखा ‘फुलवा बन महके देखो लहके डाली डाली’ की प्रस्तुति मनभावन तथा परस्पर सामंजस्य एवं सुरीलेपन का एक सुन्दर रूपक बन पड़ा है। फ़िल्म ‘हीरा मोती’ में प्रेम धवन का लिखा और रोशन का संगीतबद्ध गीत ‘कौने रंग मुँगवा कवन रंग मोतिया हो कौने रंग ननदी तोरे बिरना’ सुमन के संग मिल कर सुधा मल्होत्रा ने गाया है। भोजपुरी-अवधी के मिश्रित बोली से सजे इस युगल गीत में सुमन के सुर का प्रवाह, उच्चारण तथा शब्द-शब्द पर स्वर में प्रयुक्त सुरीला लोच विशिष्ट बन पड़ा है। सुमन के अविस्मर्णीय युगल गीतों में गायक तलत महमूद, मन्ना डे, किशोर कुमार, महेन्द्र कपूर के साथ ही जिन अन्य गायकों के संग उनके गीतों ने अत्यधिक धूम मचाई उनमें गायक मुकेश और मु. रफ़ी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मु. रफ़ी के संग सुमन कल्याणपुर के युगल गीतों की दीर्ध सूची में एक से बढ़ कर एक सुरीले गीत हैं जो आज भी उसी चाव के साथ सुने और गाए जाते हैं। सुमन-रफ़ी के प्रमुख युगल गीतों में दिल एक मन्दिर है (फ़िल्म: दिल एक मन्दिर है), आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़ुबान पर (फ़िल्म: ब्रह्मचारी), तुमने पुकारा और हम चले आए (फ़िल्म: राजकुमार), तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा मैंने (फ़िल्म: छोटी सी मुलाक़ात), अगर तेरी जलवा नुमाई न होती फ़िल्म: बेटी बेटे), अजहूँ न आए बालमा, सावन बीता जाए (फ़िल्म: साँझ और सवेरा), ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे (फ़िल्म: जब जब फूल खिले), ठहरिए होश में आ लूँ (फ़िल्म: मुहब्बत इसको कहते हैं), के जां चली जाए जिया नहीं जाए (फ़िल्म: अनजाना), बाद मुद्दत के ये घड़ी आई है (फ़िल्म: जहांआरा) , इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राज़दार (फ़िल्म: सूरज), तुमसे ओ हसीना कभी मुहब्बत न मैंने करनी थी (फ़िल्म: फ़र्ज़), दिल की किताब कोरी है (फ़िल्म: यार मेरा), पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है (फ़िल्म: शगुन), तू जंगल की मोरनी (फ़िल्म: राजा साब) जैसे और भी कई गीत हैं तो दूसरी ओर गायक मुकेश के संग सुमन कल्याणपुर के युगल गीतों की लड़ी में जो सुरीले मोती हैं वो आज भी सदाबहार हैं। मेरा प्यार भी तू है ये बहार भी तू है (फ़िल्म: साथी), ये किसने गीत छेड़ा दिल मेरा नाचे तिरक तिरक (फ़िल्म: मेरी सूरत तेरी आँखें), चुरा ले न तुमको ये मौसम सुहाना खुली वादियों में अकेली न जाना (फ़िल्म: दिल ही तो है), ये मौसम रंगीन समां, ठहर ज़रा ओ जाने जां (फ़िल्म: मॉडर्न गर्ल), अँखियों का नूर है तू अँखियों से दूर है तू (फ़िल्म: जौहर महमूद इन गोवा), हाँ मैंने भी प्यार किया प्यार से कब इन्कार किया (फ़िल्म: बूँद जो बन गई मोती), आया न हमको प्यार जताना प्यार तभी से तुझे करते हैं (फ़िल्म: पहचान), वो परी कहाँ से लाऊँ तेरी दुल्हन जिसे बनाऊँ (फ़िल्म: पहचान), शमां से कोई कह दे के तेरे रहते रहते (फ़िल्म: जय भवानी), दिल ने फिर याद किया (फ़िल्म: दिल ने फिर याद किया), कृष्ण अगर तुम राधा होते मैं होती घनश्याम (फ़िल्म: मेरा नाम जौहर), ऐ दिलरुबा कल की बात कल के साथ गयी (फ़िल्म: अंजाम), तू सबसे हसीं है दिलरुबा दिल तेरे बिना है बेक़रार (फ़िल्म: रामू तो दीवाना है), चमके चाँद पूनम का छलके प्यार शबनम का (फ़िल्म: महासती बेहुला) जैसे ढेरों गीत हैं जो आज कालजयी की श्रेणी में आते हैं।

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