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‘‘हर राम विरोधी को सत्ता से हटना पड़ा है’’- रज्जू भैया

by WEB DESK
Jan 25, 2024, 02:33 pm IST
in संघ, साक्षात्कार
रज्जू भैया

रज्जू भैया

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अयोध्या में 6 दिसम्बर, 1992 को बाबरी ढांचा टूटा। इसके बाद 10 दिसम्बर को रा.स्व.संघ, विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। इस प्रतिबंध और उस समय की परिस्थितियों पर 11 दिसम्बर,1992 को दिल्ली स्थित संघ कार्यालय ‘केशव कुंज’ में संघ के तत्कालीन सह-सरकार्यवाह श्री रज्जू भैया से पाञ्चजन्य ने बातचीत की। उनका यह साक्षात्कार पाञ्चजन्य (20 दिसम्बर, 1992) में प्रकाशित हुआ था। उसका संपादित स्वरूप यहां पुन: प्रकाशित किया जा रहा है-

विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा बजरंग दल के साथ-साथ दो मुस्लिम संगठनों पर भी प्रतिबंध लगा है। इसके बारे में आपकी क्या टिप्पणी है?
यह बहुत ही घबराहट में की गई कार्रवाई है, यह कोई सोच-समझ कर बुद्धिमानी से लिया गया निर्णय नहीं है। मुसलमानों के दोनों संगठन तो बहुत छोटे संगठन हैं, एक केरल में तो दूसरा कश्मीर में सीमित है। परंतु विश्व हिन्दू परिषद् और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे देश में फैले हुए जबरदस्त संगठन हैं, जिनकी अनेक गतिविधियों से समाज बहुत प्रभावित है। अयोध्या में जो घटना हुई उसमें इन संगठनों का कितना हाथ है, उससे कितना संबंध है यह जाने बिना इन पर प्रतिबंध लगाना बहुत बड़ी अन्याय की बात है।

ऐसा क्यों हुआ कि आजादी के बाद अब तीसरी बार रा.स्व.संघ पर प्रतिबंध की घोषणा सरकार ने की? और तीनों बार ऐसा कांग्रेस शासन में ही हुआ?
मुझे लगता है कि पहले दो बार तो संघ की बढ़ती लोकप्रियता और संघ ने समाज में जो कार्य किया उससे हिन्दू समाज में उसके बढ़ते हुए असर से घबराकर प्रतिबंध लगाया होगा और इस बार ये जानते हुए कि अब संघ का असर और प्रभाव क्षेत्र बहुत बड़ा हो गया है। गलती से वामपंथी दलों और वीपी सिंह आदि के दबाव में आकर प्रतिबंध घोषित किया है, परंतु बहुत बड़ी भूल है यह।

संघ और विश्व हिन्दू परिषद पर दंगे भड़काने का जो आरोप लगाया जा रहा है, उसके बारे में आप क्या कहेंगे?
असल में आरोप तो सरकार पर लगाया जाना चाहिए। वह कोई ‘मस्जिद’ नहीं थी, वह तो एक बड़ा जर्जर ढांचा था जिसे वास्तव में विश्व हिन्दू परिषद को और राम जन्मभूमि न्यास को देने की चर्चा चल रही थी। उसको ‘मस्जिद’ कहने और उसके बारे में उनके द्वारा इस प्रकार के उद्गार निकलने के कारण दंगे भड़के हैं। हर राम विरोधी को सत्ता से हटना पड़ा है।

क्या ऐसे जर्जर ढांचे के ऊपर इतनी हिंसक प्रतिक्रिया होना न्यायोचित है?
यह प्रतिक्रिया तो इसलिए हुई, क्योंकि कुछ राजनीतिक लोगों ने इस घटना को बेहद तूल दिया। जैसे किसी ने कहा दिया कि यह गांधी जी की हत्या के बाद दूसरी सबसे बड़ी शर्मनाक साम्प्रदायिक घटना है। विडम्बना है कि इन नेताओं को कश्मीर में तोड़े गए सैकड़ों मंदिर एवं हजारों हिन्दुओं की हत्या, विशेष घटना नजर नहीं आती।

इस घटना पर देश के सेकुलर प्रचार माध्यम जिस ढंग से ‘शोक’ मना रहे हैं, उसके पीछे क्या कारण है?
बस और कुछ नहीं, उन लोगों का सोचने का जो एकतरफा ढंग है, उसी का यह फल है। हालांकि मैं भी मानता हूं कि यह ठीक नहीं हुआ, इससे विश्वसनीयता घटती है। परंतु यह भी देखना चाहिए कि कारसेवक भी इंसान हैं, उन्हें भी गुस्सा आ सकता है। यह कैसे हो सकता है कि एक ओर तो कुछ लोग मंदिर तोड़ते और लोगों को मारते घूमें और दूसरी ओर किसी को गुस्सा भी न आए।

Topics: विश्व हिन्दू परिषद्राम जन्मभूमि न्यासRam Janmabhoomi Trustराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघRashtriya Swayamsevak SanghBajrang DalAyodhyaVishwa Hindu Parishadअयोध्याबजरंग दल
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