ग्लानी से गौरव की यात्रा
May 8, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

ग्लानी से गौरव की यात्रा

पांच सौ साल के इतिहास को मैं भारत की ग्लानि से गौरव की यात्रा के रूप में देखता हूं। पांच सौ साल पहले एक विदेशी आक्रांता ने युद्ध में यहां के राजाओं को हराया। युद्ध होगा तो हार-जीत होगी और हार-जीत होगी तो सीमाएं बदलेंगी, मानचित्र बदलेगा।

by चंपत राय
Jan 24, 2024, 07:03 am IST
in भारत, विश्लेषण, संघ, उत्तर प्रदेश, संस्कृति
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

अयोध्या में श्रीराम मंदिर को इसलिए तोड़ा गया था कि भरत भूमि के लोगों का मनोबल टूट जाए, उनका स्वाभिमान चूर-चूर हो जाए। इसलिए वहां भव्य मंदिर का बनना आवश्यक था। लेकिन यह खोए गौरव-भाव को पाने की दिशा में पहला पड़ाव है। इसका लक्ष्य भारत को दोबारा उन्नत और श्रेष्ठ बनाना है

चंपत राय महासचिव, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र

पांच सौ साल के इतिहास को मैं भारत की ग्लानि से गौरव की यात्रा के रूप में देखता हूं। पांच सौ साल पहले एक विदेशी आक्रांता ने युद्ध में यहां के राजाओं को हराया। युद्ध होगा तो हार-जीत होगी और हार-जीत होगी तो सीमाएं बदलेंगी, मानचित्र बदलेगा। ऐसा होता है, यहां भी हुआ। इसमें कोई अनूठी बात नहीं हुई। लेकिन जीते हुए राजा का कर्तव्य क्या होता है? शासन करना, जनता से कर लेना और उसकी भलाई के का­­­म करना। विदेशी आक्रांताओं ने भी ऐसा किया होता तो रीति-सम्मत होता।

लेकिन उन्होंने हमारे मंदिर तोड़े। क्यों? इसलिए कि उनकी मंशा कुछ और थी। मंदिर उसका एक माध्यम मात्र थे। वे इस भूमि के लोगों का मान-मर्दन करना चाहते थे। समाज का मनोबल तोड़ना चाहते थे, जिससे वह ग्लानि में चला जाए। लेकिन ऐसा करके उन्हें क्या मिलता? संभवत: इस भूमि को देखकर उनमें हीन भावना भर जाता रहा होगा और क्रोध इसी हीन भावना की अभिव्यक्ति था। इसी कारण उन्होंने यहां के अनगिनत मंदिरों को तोड़ा।

जब बाबर ने अयोध्या में श्रीराम के मंदिर को तोड़ा, तब से ही समाज उस टूटे हुए मंदिर की भूमि को प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा था। सदियों के इस प्रयास में यहां के समाज को सफलता तो मिली, लेकिन इस लक्ष्य तक पहुंचने में 492 वर्ष लग गए। मैं कह सकता हूं कि वर्ष 1528 हिंदुस्तान की ग्लानि का समय है तो 9 नवंबर, 2019 हिंदुस्तान की गौरव गाथा लिखने का दिन। इसलिए इस काल खंड को भारत की ग्लानि से गौरव की यात्रा कहना उचित होगा। इस यात्रा के दौरान यहां के समाज ने अपने खोए हुए आत्म सम्मान को पाया, राष्ट्र के गौरव को फिर से स्थापित किया।

1934 का वह खूनी संघर्ष

अयोध्या के संतों और नौजवानों ने जन्मस्थान के लिए अंतिम खूनी संघर्ष वर्ष 1934 में किया। तब हिंदुओं ने विवादित स्थल को बहुत क्षति पहुंचाई। इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने आर्थिक दंड लगाया और हिंदुओं ने वह राशि आपस में इकट्ठा करके सरकारी खजाने में जमा कर दी। उस संघर्ष का प्रभाव दोनों समुदायों पर पड़ा। एक ओर तो हिंदू शांत हो गए, दूसरी ओर मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया। देश के स्वतंत्र होने के बाद वर्ष 1949 में हिंदुओं ने ढांचे पर नियंत्रण करके वहां भगवान को रख दिया। यह बात थी 22/23 दिसंबर की मध्य रात्रि की। तब जिला फैजाबाद था और उसके डीएम थे केरल के के.के. नायर। उन्होंने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ढांचे पर ताला लगा दिया। इस ताले को खुलवाने के लिए हिंदू समाज ने 1950 के बाद अदालत में याचिकाएं डालनी शुरू कर दीं। फिर मुसलमानों ने भी 1962 में याचिका डाली। एक बात ध्यान देने की है। मुसलमानों ने तब कोई याचिका नहीं डाली जब 1949 में हिंदुओं ने उस ढांचे पर नियंत्रण कर लिया था। वे अदालत भी कब गए? 1962 में।

आंदोलन में विहिप का आना

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) वर्ष 1984 में अयोध्या आंदोलन में शामिल हुई। तब उसने यह अनुभव किया कि श्रीराम के जिस जन्मस्थान के लिए साधु-संत और समाज का एक भाग सदियों से लड़ाई लड़ रहा था, आम लोगों में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की थी, जिन्हें यह पता ही नहीं था कि अयोध्या में हमारा कोई मंदिर था जिसे बाबर ने तोड़ा था। इसलिए विहिप ने जागरुकता फैलाने का बीड़ा उठाया और इसी के लिए ‘राम जानकी यात्रा’ शुरू की। इसके साथ ही ताला खुलवाने का लक्ष्य भी रखा। आंदोलन व्यापक होता गया और फिर ताला खुल गया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश के. एम. पांडे ने 1 फरवरी, 1986 को ताला खोलने का निर्णय सुनाया और इससे पहले उन्होंने फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडे और एसपी कर्मवीर सिंह से कानून-व्यवस्था के हालात पर चर्चा भी की।

पहले से जुड़ाव

जब श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन चल रहा था, मैं गाजियाबाद में था। तब मैं विहिप में नहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में था और एक आम आदमी के नाते आंदोलन से जुड़ा हुआ था। यह आंदोलन ऐसा था जिसमें हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा के अनुसार सक्रिय था। राम के प्रति श्रद्धा-भक्ति तो करोड़ों-करोड़ लोगों की है। लेकिन सबके परिवार की स्थितियां अलग होती हैं, उनकी प्रकृति अलग होती है। कुछ लोगों की प्रकृति होती है अस्थायी काम करने की तो कुछ की स्थायी काम करने की। कुछ की प्रकृति होती है जोश में काम करना। कुछ की प्रकृति होती है अनुकूलता में आगे बढ़ना, प्रतिकूलता में पीछे हट जाना। किसी की आदत होती है पढ़ने की, किसी की होती है भाषण करने की। मैं भी अपने तरीके से इस आंदोलन का भाग बना।

देश के कोने-कोने से योगदान

समाज का संकल्प था कि पांच सौ साल पहले एक विदेशी आक्रांता ने जो हमारा अपमान किया था, उसे धोना है। पहले अयोध्या के लोग, साधु-संत और 1984 के बाद तो पूरा देश इस अपमान को मिटाने की साध के साथ संघर्ष में जुट गया। यही कारण है कि जब मंदिर बनना शुरू भी नहीं हुआ था, तब तक 11 करोड़ से अधिक लोग इस कार्य के लिए योगदान कर चुके थे। इस कार्य्रक्रम को हमने ‘निधि समर्पण’ कहा क्योंकि इसे दान कहना अनुचित होता।

हम भगवान के सामने अर्पण करते हैं, समर्पण करते हैं। उन्हें दान नहीं देते। बड़ी संख्या में मुसलमानों ने भी मंदिर निर्माण में योगदान दिया है। इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं। पिछले पांच सौ सालों के दौरान कुछ लोगों ने किन्हीं परिस्थितियों में अपनी उपासना पद्धति बदल ली। मस्जिदों को अपने पूजा स्थल और मोहम्मद साहब को ईश्वर के रूप में स्वीकार किया। लेकिन ऐसा करने से उनके पूर्वज तो नहीं बदल गए! उपासना पद्धति में बदलाव से पहले इनके पूर्वज तो भगवान राम के ही उपासक थे। ऐसे लोग जो अपने पूर्वजों की उपासना पद्धति का सम्मान करते हैं, इस देश की संस्कृति को सिर माथे रखते हैं, उन्होंने राम मंदिर के निर्माण के लिए अपना योगदान दिया।

सबके राम

राम मंदिर के लिए आगे बढ़कर योगदान करने वालों में जैन, बौद्ध, सिख जैसी अलग-अलग उपासना पद्धति को मानने वाले लोग रहे। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक देश के कोने-कोने से योगदान आया। इसका कारण यह है कि राम केवल उन्हीं के नहीं हैं जो उनकी पूजा करते हैं। जो शंकर की पूजा करते हैं, उनके लिए भी राम पूजनीय हैं क्योंकि शंकर राम को आराध्य मानते हैं। जो विष्णु की आराधना करते हैं, राम उनके लिए भी हैं क्योंकि राम विष्णु के ही अवतार हैं। भारत में एक ऐसा वर्ग भी है जो राम को भगवान नहीं, महापुरुष मानता है। वह इसलिए राम को पूजता है कि श्रीराम ने जीवन के हर क्षेत्र में मर्यादाएं स्थापित कीं। इसी कारण हम कहते हैं- राम सबके हैं, राम सबमें हैं।

विष्णु हरि शिलालेख

6 दिसंबर, 1992 को स्वत: स्फूर्त तरीके से वह अपमानजनक ढांचा गिरा दिया जाता है। उस ढांचे और बाद में हुई खुदाई में वहां बाबर से पहले मंदिर होने के ठोस प्रमाण मिले। इन्ही में एक है विष्णु हरि शिलालेख। यह शिलालेख उस ढांचे की दीवारों से प्राप्त हुआ। जो ढांचा गिराया गया, उसकी दीवारें बहुत मोटी थीं। लेकिन वे बीच में खाली थीं। उनमें मलबा भरा हुआ था। यह शिलालेख ऐसी ही एक दीवार के भीतर से निकला। उस शिलालेख पर संस्कृत में 20 पंक्तियां लिखी गई हैं। उसमें छंदों की रचना है। वह संस्कृत 12वीं शताब्दी की है और उस काल की संस्कृत को समझने-पढ़ने की क्षमता वाला अब कोई विरला ही हो। जिन्होंने उस शिलालेख पर उकेरी गई पंक्तियों को पढ़ा, वे उस काल की संस्कृत का ज्ञान रखने वाले योग्यतम लोग थे।

शिलालेख की पहली पंक्ति है- ऊँ नम: शिवाय। उसमें विष्णु हरि मंदिर का उल्लेख किया गया है। इसपर लिखा गया है -वह विष्णु हरि मंदिर, जो सोने के कलश वाला है। विष्णु हरि वो हैं, जिन्होंने दशानन का मान-मर्दन किया। इसके साथ उसमें अयोध्या के सौंदर्य का वर्णन है और उस परिवार के बारे में जिसने उसे बनवाया। इतिहासकारों का कहना है कि वह परिवार 1154 ईस्वी में कन्नौज के गहड़वाल वंश से संबंधित है। मंदिर निर्माण के लिए जब मलबे का हटाया गया तो भी मंदिर के ढेरों अवशेष निकले।

गौरव यात्रा अभी अधूरी

विदेशी आक्रांता ने मंदिर को तोड़ दिया, हमने उस भूमि को पा लिया। वहां राष्ट्र की अपेक्षाओं के अनुकूल मंदिर में रामलला का विराजमान हो जाना ही क्या भारत की ग्लानि से गौरव की यात्रा का पूरा हो जाना है? क्या समाज ने इसी स्थूल प्रतीक के लिए सदियों तक संघर्ष किया और लाखों-लाख लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी? नहीं, बिल्कुल नहीं! मंदिर की भूमि को पाने का आंदोलन पूरा हुआ है, वह मंदिर जिस भाव का प्रतीक है, उसे पाने का काम तब भी अधूरा रहेगा। अयोध्या में पूरी भव्यता, दिव्यता और आध्यात्मिकता के साथ हजारों साल तक अडिग रहने वाले श्रीराम मंदिर का निर्माण राष्ट्र की गौरव यात्रा का एक चरण मात्र है। राम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से राष्ट्र ने उस गौरव यात्रा के एक पड़ाव को पाया है। यह आंदोलन देश को शिखर पर ले जाने का आंदोलन है। इसलिए यात्रा अभी जारी है।

उन्नत भारत, श्रेष्ठ भारत

‘भारत माता की जय!’ इसका उद्घोष हम सब करते हैं। क्या इस बात का विचार करते हैं कि जिसकी आकांक्षा कर रहे हैं, उसका अर्थ क्या है? इसका सीधा सा अर्थ है कि दुनिया में भारत माता की जयजयकार होनी चाहिए। क्या अयोध्या में राम मंदिर बन जाने मात्र से भारत माता की जयजयकार हो जाएगी? अगर भारत गरीब रहेगा तो क्या भारत माता की जयजयकार हो पाएगी? अगर भारत अनपढ़ लोगों का देश रहेगा तो क्या भारत माता की जयजयकार हो पाएगी?

अगर भारत को अपना पेट भरने के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाना पड़े तो क्या भारत माता की जयजयकार होगी? अगर इस देश का किसान भूखा पेट सोएगा तो क्या भारत माता की जयजयकार होगी? अगर इस देश के लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध न हों तो क्या भारत माता की जयजयकार होगी? भारत रक्षा-प्रतिरक्षा के लिए दूसरी शक्तियों का मुंह जोहे तो क्या भारत माता की जयजयकार होगी? प्रश्न कई हैं, लेकिन उत्तर एक है- नहीं।

भारत माता की जयजयकार तभी होगी जब यह राष्ट्र सभी क्षेत्रों में उत्तम स्थिति में हो। राष्ट्र उस स्थिति में हो कि अपनी भौगोलिक सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए अपने नागरिकों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सके। लोगों के लिए ऐसा वातावरण तैयार कर सके कि वे निश्चिंत होकर अपने अच्छे भविष्य की बगिया सजा सकें। तभी हम ‘भारत माता की जय!’के नारे को साकार कर सकेंगे। अयोध्या आंदोलन के माध्यम से समाज उसी सपने को साकार करने का प्रयास करता रहा है।

Topics: रामलला का विराजमानEveryone's RamVishnu Hari inscriptionVHP in movementRamlala's throneश्रीरामShri Rammanasसबके रामविष्णु हरि शिलालेखआंदोलन में विहिप
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

उत्तराखंड : नंदप्रयाग में मुरारी बापू की राम कथा में पहुंचे CM धामी, सनातन संस्कृति पर कही बड़ी बात

श्रीराम लला का सूर्यतिलक

राम लला का सूर्याभिषेक, साक्षी बना अखिल ब्रह्मांड

सुनैना

भारत हमारे पूर्वजों की भूमि, भारतीयों ने ही सूरीनाम को बसाया, सुनैना ने बताया Suriname का मतलब, श्रीराम से कनेक्शन 

भगवान राम का सूर्य तिलक

अयोध्या:  जन्मभूमि में 6 अप्रैल को मनाया जाएगा भगवान राम का जन्मोत्सव, ठीक 12 बजे रामलला का होगा ‘सूर्य तिलक’

सनातन दर्शन की प्रेरणास्रोत है पुण्य नगरी अयोध्या

बाली द्वीप के एक भित्ति चित्र में राम और सीता

जित देखें तित राम

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

पाकिस्तान को भारत का मुंहतोड़ जवाब : हवा में ही मार गिराए लड़ाकू विमान, AWACS को भी किया ढेर

पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर से लेकर राजस्थान तक दागी मिसाइलें, नागरिक क्षेत्रों पर भी किया हमला, भारत ने किया नाकाम

‘ऑपरेशन सिंदूर’ से तिलमिलाए पाकिस्तानी कलाकार : शब्दों से बहा रहे आतंकियों के लिए आंसू, हानिया-माहिरा-फवाद हुए बेनकाब

राफेल पर मजाक उड़ाना पड़ा भारी : सेना का मजाक उड़ाने पर कांग्रेस नेता अजय राय FIR

घुसपैठ और कन्वर्जन के विरोध में लोगों के साथ सड़क पर उतरे चंपई सोरेन

घर वापसी का जोर, चर्च कमजोर

‘आतंकी जनाजों में लहराते झंडे सब कुछ कह जाते हैं’ : पाकिस्तान फिर बेनकाब, भारत ने सबूत सहित बताया आतंकी गठजोड़ का सच

पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

Live Press Briefing on Operation Sindoor by Ministry of External Affairs: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies