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सरकारी पैसे पर ‘नवाबी’

आर्कोट के नवाब मोहम्मद अब्दुल अली को अपने महल के रखरखाव के लिए तमिलनाडु सरकार प्रतिवर्ष 2.74 करोड़ रुपए देती है। सरकारी पैसे के इस दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया गया है

by अरुण कुमार सिंह
Jan 20, 2024, 11:31 am IST
in भारत, तमिलनाडु
आर्कोट का ‘आमीर महल’ और प्रकोष्ठ में मोहम्मद अब्दुल अली

आर्कोट का ‘आमीर महल’ और प्रकोष्ठ में मोहम्मद अब्दुल अली

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एक व्यक्ति ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है। इसमें मांग की गई है कि मोहम्मद अब्दुल अली को दिए जा रहे पैसे पर रोक लगे और उनकी नवाबी पदवी भी खत्म हो। उनकी याचिका पर सुनवाई करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 5 जनवरी को नवाब मोहम्मद अब्दुल अली, तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।

भारत सरकार ने 26वें संविधान संशोधन के जरिए 7 सितंबर, 1979 को प्रिवि पर्स (राजाओं और नवाबों को मिलने वाली पेंशन और अनुदान) को समाप्त कर दिया है। इसके बावजूद तमिलनाडु सरकार एक नवाब को प्रतिवर्ष 2.74 करोड़ रुपए देती है। उन नवाब का नाम है मोहम्मद अब्दुल अली। ये आर्कोट के नवाब हैं। यह जगह तमिलनाडु में रानीपेट जिले में है। राज्य सरकार से मिले पैसे से वे अपने महल की मरम्मत कराते हैं। इसे कुछ लोगों ने सरकारी पैसे का दुरुपयोग माना है।

इस पर रोक लगाने के लिए एस. कुमारवेलु नामक एक व्यक्ति ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है। इसमें मांग की गई है कि मोहम्मद अब्दुल अली को दिए जा रहे पैसे पर रोक लगे और उनकी नवाबी पदवी भी खत्म हो। उनकी याचिका पर सुनवाई करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 5 जनवरी को नवाब मोहम्मद अब्दुल अली, तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ के समक्ष अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने दलीलें प्रस्तुत कीं। उन्होंने पीठ के सामने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-18 में सेना या अकादमिक उपाधियों को छोड़कर बाकी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है। इसके बावजूद 1952 में मोहम्मद अब्दुल अली को नवाब की उपाधि सरकार की ओर से दी गई। इसके साथ ही उन्हें उनके महल के रखरखाव के लिए भी राज्य सरकार पैसे देती है।

सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। विष्णु शंकर जैन के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत में एक पत्र जारी कर किसी परिवार या व्यक्ति को उपाधि दी जाती थी, लेकिन भारत में संविधान लागू होने के बाद ऐसा नहीं किया जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि अंग्रेजी हुकूमत ने 2 अगस्त, 1870 को आर्कोट के नवाब को उपाधि देने के लिए पत्र जारी किया था।

उन्होंने यह भी कहा कि देश के स्वतंत्र होने और भारतीय संविधान लागू होने के बावजूद आर्कोट के नवाब को वंशानुगत उपाधि दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है। उनके महल के रखरखाव पर सालाना 2.74 करोड़ रुपए से ज्यादा सरकारी धन खर्च किया जाना भी गैरकानूनी है। इसके बाद सर्वोच्च न्ययालय ने नवाब मोहम्मद अब्दुल अली, तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है।

इससे पहले इस मामले को एस.कुमारवेलु ने मद्रास उच्चन्यायालय में उठाया था, लेकिन वहां उनकी याचिका खारिज हो गई थी। इसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। विष्णु शंकर जैन के अनुसार अंग्रेजी हुकूमत में एक पत्र जारी कर किसी परिवार या व्यक्ति को उपाधि दी जाती थी, लेकिन भारत में संविधान लागू होने के बाद ऐसा नहीं किया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि अंग्रेजी हुकूमत ने 2 अगस्त, 1870 को आर्कोट के नवाब को उपाधि देने के लिए पत्र जारी किया था। संविधान लागू होने के बाद किसी को इस तरह की पदवी नहीं दी जा सकती है। अब आगे यह मामला इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार, तमिलनाडु सरकार और खुद आर्कोट के नवाब क्या उत्तर देते हैं। उत्तर चाहे जो कुछ भी हो, लेकिन यह मामला चर्चा में है। इसकी जितनी चर्चा होगी, शायद उसी से इसकी समाप्ति का रास्ता भी निकलेगा।

Topics: एस.कुमारवेलुसर्वोच्च न्ययालयS.KumaraveluNawab Mohammed Abdul AliSupreme Courtतमिलनाडु सरकारGovernment of Tamil Naduनवाब मोहम्मद अब्दुल अली
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