जिन्होंने दक्षिण एशिया में अयूब खान से लेकर जिया उल हक जैसे तानाशाहों को पाला-पोसा, उन्हें अब लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई बांग्लादेश की प्रधानमंत्री में कमी दिखाई दे रही है। पश्चिमी देश बांग्लादेश की कट्टरपंथी-रूढ़िवादी ताकतों के उस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं, जिसे वहां का सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक करार दे चुका है
बांग्लादेश में आम चुनाव एक जंजाल बन गए हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना को उम्मीद है कि उनकी पार्टी अवामी लीग इस चुनाव में जीत दर्ज करेगी। अवामी लीग 2009 से सत्ता में है। वहीं, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर अनिश्चित थी, इसलिए उसने आम चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया। अपनी कमजोर स्थिति का अहसास होने के बाद बीएनपी कैडर भी देश में जारी हिंसा में शामिल हो गया। दुर्भाग्य से पिछले डेढ़ दशक में बांग्लादेश की बड़ी उपलब्धियों और उसके संविधान के प्रावधानों से बेखबर कुछ पश्चिमी देश बीएनपी के रुख का समर्थन करते दिखे।
पिछले 15 वर्ष के दौरान शेख हसीना के गतिशील नेतृत्व में बांग्लादेश ने जबरदस्त प्रगति की है। इस दौरान वह न केवल पूरे दक्षिण एशिया, बल्कि व्यापक इस्लामी जगत में भी चमकते सितारे के रूप में उभरा है। इस अवधि में बांग्लादेश की परंपरागत रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था अब सेवाओं और उद्योग पर अत्यधिक निर्भर अर्थव्यवस्था में बदल गई है। हालांकि वह बमुश्किल ही कपास का उत्पादन करता है, लेकिन कपड़ों के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा है।
इसकी जीडीपी दक्षिण एशिया की औसत विकास दर से भी अधिक तेज दर से बढ़ी है। अपनी मुक्ति के समय बांग्लादेश दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक था, लेकिन अनुमान है कि 2026 तक यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे कम विकसित देशों की सूची से बाहर हो जाएगा। यह प्रगति इस दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश न केवल जलवायु की दृष्टि से दुनिया के सबसे नाजुक देशों में से एक है, बल्कि सबसे घनी आबादी वाला बड़ा देश भी है। अपने शानदार आर्थिक विकास के अलावा बांग्लादेश ने लगभग सभी सामाजिक संकेतकों पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।
अमेरिका ने यहां तक घोषणा कर दी कि लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को कमजोर करने वाले लोगों को वीजा प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। ऐसा लगता है कि ये देश शायद बीएनपी को सत्ता में लाना चाहते हैं, जो जमात द्वारा समर्थित एक रूढ़िवादी राजनीतिक शक्ति है और जिसका जन्म व पालन-पोषण छावनियों में हुआ। इसने बांग्लादेश के निर्माण का विरोध तो किया ही था, अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों के साथ भी इसके घनिष्ठ संबंध रहे हैं। इन कट्टरपंथी-रूढ़िवादी शक्तियों ने चुनावों के लिए कार्यवाहक सरकार नियुक्त करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया, जिसे बांग्लादेश सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक करार दिया है।
2010 में इसकी गरीबी की दर 11.5 प्रतिशत थी, जो 2022 में घटकर पांच प्रतिशत से भी कम हो गई। आय असमानता में काफी कमी आई है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं में काफी सुधार हुआ। इसके परिणामस्वरूप इसका मानव विकास सूचकांक ऐसे स्तर तक पहुंच गया है, जो न केवल दक्षिण एशियाई औसत से अधिक है, बल्कि भारत से भी ऊपर है। इसके अलावा, इसकी जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी आई है। 1985 में बांग्लादेश में प्रजनन दर 5.85 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 1.92 प्रतिशत पर आ गई है।
शेख हसीना सरकार से पहले देश के युवाओं में बढ़ते कट्टरपंथ को लेकर कई जानकारों ने कहा था कि बांग्लादेश अब दूसरा अफगानिस्तान बनने की राह पर है। आलम यह था कि 2005 में एक ही दिन देश भर में 300 स्थानों पर 500 बम विस्फोट हुए थे। इससे यह पता चलता है कि देश में आतंकी संगठनों ने अपनी पहुंच कितनी बढ़ा ली थी। 1 जुलाई, 2016 को इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकियों ने राजनयिक निवास के पास होली आर्टिसन बेकरी पर हमला किया था, जिसमें 22 लोग मारे गए थे। इनमें अधिकांश विदेशी नागरिक और दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। तब से सरकार ने कट्टरपंथी संगठनों पर नकेल कसी है और उन्हें खत्म करने में उसे काफी हद तक सफलता भी मिली है।
हालांकि, गुपचुप तरीके से इस्लामिस्ट लगातार अपनी पैठ बना रहे हैं और कभी-कभार अपना चेहरा भी दिखाते रहते हैं, लेकिन सरकार इस खतरे से निपटने में काफी हद तक ईमानदार रही है। इसी तरह, जिन अल्पसंख्यकों को पिछली सरकार में निशाना बनाया और सताया जा रहा था, वे अब बिना किसी बाधा के अपने दैनंदिन काम कर रहे हैं। सो संसद और जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व काफी बढ़ा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बांग्लादेश ने न केवल संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के लिए सबसे बड़ी संख्या में सैनिकों का योगदान दिया है, बल्कि समग्र विकास और समृद्धि के लिए पड़ोस के देशों के साथ सहयोग भी किया है। इसने क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के साथ उन सभी पनाहगाहों को खत्म कर दिया है, जो पिछली सरकार द्वारा सीमा पार आतंकवाद में लिप्त देश विरोधी शक्तियों को प्रदान की गई थीं। सरकार ने वैश्विक आतंकी संगठनों को खत्म करके और पड़ोसी देश म्यांमार से बड़ी संख्या में आए रोहिंग्याओं को शरण देकर वैश्विक शांति और व्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में कुछ पश्चिमी देश बांग्लादेश सरकार के खिलाफ बयान दे रहे हैं और चुनावों के निष्पक्ष न होने की बातें कर रहे हैं। अमेरिका ने यहां तक घोषणा कर दी कि लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को कमजोर करने वाले लोगों को वीजा प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। ऐसा लगता है कि ये देश शायद बीएनपी को सत्ता में लाना चाहते हैं, जो जमात द्वारा समर्थित एक रूढ़िवादी राजनीतिक शक्ति है और जिसका जन्म व पालन-पोषण छावनियों में हुआ। इसने बांग्लादेश के निर्माण का विरोध तो किया ही था, अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों के साथ भी इसके घनिष्ठ संबंध रहे हैं। इन कट्टरपंथी-रूढ़िवादी शक्तियों ने चुनावों के लिए कार्यवाहक सरकार नियुक्त करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया, जिसे बांग्लादेश सर्वोच्च न्यायालय असंवैधानिक करार दिया है।
अजीब बात है कि जिन लोगों ने दक्षिण एशिया में अयूब खान से लेकर जिया उल हक तक, हर तरह के तानाशाहों को पाला-पोसा, उन्हें अब बांग्लादेश की विधिवत निर्वाचित प्रधानमंत्री में लोकतांत्रिक कमी दिखाई दी है।
बांग्लादेश की परंपरागत रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था अब सेवाओं और उद्योग पर अत्यधिक निर्भर अर्थव्यवस्था में बदल गई है। हालांकि वह बमुश्किल ही कपास का उत्पादन करता है, लेकिन कपड़ों के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा है। इसकी जीडीपी दक्षिण एशिया की औसत विकास दर से भी अधिक तेज दर से बढ़ी है। अपनी मुक्ति के समय बांग्लादेश दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक था, लेकिन अनुमान है कि 2026 तक यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे कम विकसित देशों की सूची से बाहर हो जाएगा। यह प्रगति इस दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश न केवल जलवायु की दृष्टि से दुनिया के सबसे नाजुक देशों में से एक है, बल्कि सबसे घनी आबादी वाला बड़ा देश भी है।
सच्चाई यह है कि इनमें से किसी भी देश ने पाकिस्तान के बारे में कभी कोई चिंता व्यक्त नहीं की है, जहां एक सैन्य समर्थित कार्यवाहक सरकार सभी संवैधानिक मानदंडों का घोर उल्लंघन करते हुए शासन करना जारी रखती है और प्रमुख नीतिगत निर्णय भी लेती है, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित लाखों अफगान शरणार्थियों को तालिबान के तहत अमानवीय अस्तित्व में धकेलना शामिल है। पाकिस्तान में चल रही चुनावी प्रक्रिया विकृत है, जिसका एकमात्र उद्देश्य संभवत: पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी को ‘समान अवसर’ से वंचित करना है।
पश्चिमी दुनिया को यह समझना चाहिए कि बांग्लादेश में चुनाव ‘पूर्णता के पश्चिमी मानकों’ को पूरा नहीं कर सकते, लेकिन बांग्लादेश के नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों और अपनी सरकार चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। यह उस तर्क को खारिज करता है कि जो देश मध्य पूर्व में निरंकुश और रूढ़िवादी शासन के साथ जुड़ने को तैयार हैं और लाखों अनिच्छुक नागरिकों को एक घृणित शासन के अंतर्गत धकेलने वाले तालिबान के साथ बातचीत करते हैं, वे लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई उस नेता के साथ जुड़ने को तैयार नहीं हैं, जो अपने देश को अभूतपूर्व विकास और स्थिरता के पथ पर ले गई है।
(लेखक इंडिया फाउंडेशन के निदेशक हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)
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