अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को समाप्त करने की मांग काफी लंबे समय सो हो रही है। लगभग सौ वर्ष पुराना यह संस्थान अपने इसी दर्जे को बचाने के लिए अदालत की शरण में पहुंचा था। लेकिन खुद इस संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट में ने भी सवाल उठा दिए है।
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश शर्मा की बेंच ने विश्वविद्यालय प्रशासन से पूछा है कि वह अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा साबित करे।
बता दें कि यूनिवर्सिटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पैरवी कर रहे थे। अदालत ने राजीव धवन का ध्यान AMU की गवर्निंग काउंसिल की संरचना की ओर आकर्षित कराया, जिसे AMU Act के तहत ‘विश्वविद्यालय का न्यायालय’ कहा जाता है, और पूछा कि क्या इसकी गैर-मुस्लिम प्रकृति यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान (MEI) होने के दावे को कमजोर कर सकता है?
जानिए क्या क्या हुआ अदालत में ?
– सुप्रीम कोर्ट ने AMU प्रशासन के अल्पसंख्यक चरित्र पर सवाल उठाया। अदालत ने विश्वविद्यालय की गवर्निंग काउंसिल की संरचना पर ध्यान आकर्षित किया, जिसमें कुल 180 सदस्यों में से केवल 37 मुस्लिम सदस्य थे। इसने इस बारे में चिंता जताई कि क्या प्रशासन की गैर-मुस्लिम काउंसिल विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के रूप में स्थिति को कमजोर करेगी।
– चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या 180 में से 37 सदस्यों के सामान्य रूप से मुस्लिम होने की आवश्यकता अल्पसंख्यक संस्थान के लिए प्रशासन परीक्षण को पूरा करेगी। उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रशासन को एक बहु-सदस्यीय निकाय को देना पर्याप्त था, जहां अल्पसंख्यक उपस्थिति मौजूद थी, या क्या इसे पूरी तरह से अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा नियंत्रित किया जाना था।
– AMU के वकील ने तर्क दिया कि जब तक संस्था की स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई थी और इसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय की सेवा करना था, तब तक उसे अपने अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बनाए रखने के लिए प्रशासन पर 100% नियंत्रण रखने की आवश्यकता नहीं थी।
– AMU के वकील ने धवन ने ये भी तर्क दिया और कहा, “एएमयू की स्थापना के बाद से ही इसके सभी कुलपति मुस्लिम रहे हैं। इसलिए, यह वास्तव में अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा प्रशासित ही कहा जाएगा। एएमयू की अन्य विशेषताओं की प्रकृति भी इस्लामिक हैं। केवल इसलिए कि प्रशासन में सरकार का दखल है, इसलिए विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक चरित्र को खारिज नहीं कर सकते। खासकर वैसे संस्थान को जिसे मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए स्थापित किया गया था।”
– केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि AMU किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही ऐसा हो सकता है क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है। बता दें कि केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया है।
जानिए क्या होता है ‘अल्पसंख्यक दर्जा’?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 30(1) में सभी धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थान खोलने और चलाने का अधिकार दिया गया है। ये प्रावधान सरकार की तरफ से अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को बढ़ावा देने के लिए किए गए हैं। इससे उन्हें शैक्षिक संस्थान या विश्वविद्यालय चलाने की स्वतंत्रता मिलती है। और ये भरोसा भी कि सरकार ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ होने की वजह से उसे आर्थिक सहायता में कोई भेदभाव नहीं करेगी।
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