अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार आने के बाद मुस्लिम महिलाओं की स्थिति क्या है, अब इसके विषय में सब स्पष्ट हो ही गया है। और ऐसा लग रहा था कि जैसे अब महिलाओं की स्थिति इससे नीचे नहीं जाएगी। ऐसा लग रहा था कि मुस्लिम महिलाओं को घर में बैठाकर और लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा कर यह सफर समाप्त हो गया होगा। ऐसा लगा था कि अब लड़कियां यह सोचेंगी कि एक नया फरमान उनके लिए लागू नहीं होगा। और समूचा विश्व, जो कि इस बात के बाद कि तालिबान शासन में लड़कियां मदरसों में पढ़ सकेंगी, कहीं न कहीं निश्चिन्त हो चला होगा कि अब कम से कम लड़कियां और कुछ सांस लेंगी। मगर यह सारी आस एक क्षण में टूटने लगी हैं क्योंकि मुस्लिम महिलाओं के लिए एक और फरमान तालिबान सरकार द्वारा जारी किया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि “हिजाब सही से नहीं पहनने वाली महिलाओं को जेल भेजा जाएगा!”
मजेदार बात यह है कि हिजाब में भी गुड और बैड हिजाब की बात करने वालों ने इन दोनों की परिभाषा नहीं बताई है। मीडिया के अनुसार अब तालिबान ने उन महिलाओं को गिरफ्तार करके अज्ञात स्थानों पर भेजना शुरू कर दिया है, जो उसके अनुसार खराब हिजाब पहने हुए हैं। ड्रेस कोड को लेकर तालिबान का यह पहला ऐसा अभियान है। अभी तक महिलाओं को लेकर नियम और क़ानून बनाए गए थे, मगर अब कदम उठाए जा रहे हैं। मुस्लिम महिलाओं को घरों में वैसे ही कैद कर लिया गया था, मगर अब उन्हें वास्तव में जेल भेजा जा रहा है और वह यह सब शरिया के नाम पर कर रहा है।
वर्ष 2021 में सत्ता में वापसी के बाद से ही मुस्लिम महिलाओं के लिए ज़िन्दगी वहां पर जहन्नुम का नाम बन गयी है, जिनके लिए घरों से बाहर निकलना बंद हो गया है और अभी हाल ही में यह भी समाचार था कि महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए जेलों में आश्रयस्थल बनाए गए हैं और यदि किसी मुस्लिम महिला पर कोई आदमी बुरी नजर डालता है तो उसकी रक्षा के लिए उसे जेल में बने आश्रयस्थलों में भेजा जाएगा।
इस पर भी बहुत हंगामा हुआ था, मगर तालिबान ने दो टूक कह दिया था कि वह पश्चिम के अनुसार आश्रय स्थल नहीं बना सकता है। इसके साथ ही हाल ही में एक और खबर आई थी और जिसने अफगानिस्तान में महिलाओं की बुरी स्थिति की ओर ध्यान दिलाया था, जिसमें यह था कि अफगानिस्तान में हर दो घंटे में एक गर्भवती महिला की मौत हो रही है। हालांकि इसे लेकर भी सरकारी रुख स्पष्ट नहीं था। वही सरकारी रुख इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं है कि आखिर बैड हिजाब क्या है? गुड हिजाब क्या है? और यह भी स्पष्ट नहीं है कि आखिर इन महिलाओं के साथ क्या होगा और इन्हें कहाँ ले जाया जा रहा है?
अफगानिस्तान में महिलाओं को लेकर उठाया गया यह कदम कहीं न कहीं उसके पड़ोसी देश ईरान में महिलाओं की दुर्दशा और उनके संघर्षों का दोहराव है। वहां पर भी लगातार महिलाओं पर मोरल पोलिसिंग का पहरा रहता है और आए दिन महिलाओं और लड़कियों पर किए जा रहे अत्याचार सामने आते रहते हैं। हालांकि, वहां पर महिलाओं की पढ़ाई और बाहर जाने पर उतनी पाबंदियां नहीं हैं, जितनी अफगानिस्तान में हैं।
X पर यह समाचार वायरल है और इसके साथ ही वह तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं, जिसमें तालिबान द्वारा इन लड़कियों को उठाकर ले जाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि जो गिरफ्तार की गयी हैं, उनमें अधिकतर किशोरी और विद्यार्थी हैं। काबुल में पिछले तीन दिनों से यह अभियान चलाया जा रहा है।
अफगानिस्तान में मानवाधिकार स्थिति पर यूएन स्पेशल दूत रिचर्ड बेनेट ने एक्स पर ही लिखा कि काबुल में तालिबान द्वारा “बैड हिजाब” पहनने वाली लड़कियों की गिरफ्तारी की पुष्टि कर दी गए है और यह महिलाओं की अभिव्यक्ति की आजादी को और भी प्रतिबंधित करती है, उन्हें तत्काल प्रभाव से बिना शर्त रिहा किया जाना चाहिए।
मगर ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र एक दंत रहित संगठन है, क्योंकि उसकी बात कोई भी इस्लामिक देश नहीं सुनता है। ईरान में लड़कियों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है, लड़कियां वहां पर अपनी मूलभूत आजादी के लिए संघर्ष कर रही हैं, मर रही हैं, मगर एक सन्नाटा है। इसी प्रकार अफगानिस्तान में वही हो रहा है। एक और यूजर ने लिखा कि गजनी प्रांत में भी ऐसी लड़कियों की रिपोर्ट की जांच की जानी चाहिए, जिन्हें इसी कारण हिरासत में ले लिया गया है।
अभी तक सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि कितनी महिलाओं को बैड हिजाब के कारण हिरासत में लिया गया है। मई 2022 में तालिबान ने एक फरमान जारी किया था कि महिलाओं को केवल अपनी आँखें ही दिखानी चाहिए और उन्हें सिर से पैर तक बुर्के में रहना चाहिए।
यह देखना और भी अफसोसजनक है कि भारत में जो एक बहुत बड़ा वर्ग जिसमें कम्युनिस्ट लेखक, फेमिनिस्ट एवं कम्युनिस्ट तथा मजहबी कट्टरपंथी सोच रखने वाले पत्रकार भी थे, व भी अफगानी महिलाओं की इस स्थिति पर मौन हैं। वे लोग जो तालिबान को क्रांतिकारी बताकर भारत में सत्ता पलटने की आकांक्षा को लेकर उत्साहित हो गए थे, वह पूरा का पूरा वर्ग अफगानी महिलाओं के इस सुनियोजित एवं चरणबद्ध रूप से सार्वजनिक परिदृश्य से गायब होने को लेकर मौन साध गया है।
सबसे दुखद होता है अन्याय को देखकर उसपर आँखें मूँद लेना और ईरान, अफगानिस्तान सहित कई अन्य मजहबी कट्टरपंथी मुल्कों में मुस्लिम महिलाओं की आजादी पर फेमिनिस्ट वर्ग ने पूरी तरह से आँखें मूँद ली हैं।
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