अयोध्या में परंपरागत पद्धति से बनने वाला भव्य राम मंदिर 1,000 से 2,500 वर्ष तक सुरक्षित रहेगा। इसकी अपनी सीवरेज, जलापूर्ति और बिजली व्यवस्था होगी
अयोध्या में 2025 तक श्रीराम मंदिर निर्माण पूरा हो जाएगा। मंदिर का भूतल लगभग तैयार है, जहां आगामी 22 जनवरी को श्री रामलला विराजमान होंगे। मंदिर के दक्षिण की तरफ 70 एकड़ भूमि के 25 प्रतिशत हिस्से में ही निर्माण होगा, शेष 75 प्रतिशत हिस्से में हरियाली होगी। परिसर में भगवान राम के जीवन काल से जुड़े सात मंदिरों के साथ महर्षि वाल्मीकि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी एवं माता अहिल्या के मंदिर भी होंगे। भव्य राम मंदिर 1,000 से 2,500 वर्ष तक सुरक्षित रहेगा।
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि अभियंताओं की कड़ी मेहनत और कठिन प्रयास से ही मंदिर का स्वरूप सभी के सामने आया है। कोरोना काल में जब मंदिर निर्माण कार्य शुरू हुआ, तो एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई। अभियंताओं का कहना था कि जहां मंदिर का गर्भगृह बनना है, वहां की मिट्टी बड़ी संरचना के लिए उपयुक्त नहीं है।
इसके बाद आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी चेन्नै, केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी सूरत और राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के विशेषज्ञों के साथ कई बैठकें की गईं। फिर यह तय हुआ कि 6 एकड़ में 15 मीटर नीचे तक खुदाई कर रेत हटाने के बाद उसमें कंक्रीट भरा जाए।
खास बात यह कि कंक्रीट में मात्र 2.5 प्रतिशत सीमेंट प्रयुक्त हुआ है। मोरंग की जगह फ्लाई ऐश का प्रयोग कर रोलर कॉम्पैक्टेड कंक्रीट (आरसीसी) बनाई गई। इस तरह, 15 मीटर गहराई तक 56 परतों की एक कृत्रिम चट्टान तैयार कर उस पर मंदिर निर्माण शुरू हुआ। मंदिर की दीवारों पर सीलन न आए, इसलिए कुर्सी क्षेत्र में ग्रेनाइट का प्रयोग किया गया है।
‘साकार हो रहा कारसेवकों का सपना’
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से 1985 से जुड़ाव है। उन्होंने बताया कि एक समय जब भगवान श्रीराम के मंदिर में ताला बंद रहता था, तब हिंदू हृदय सम्राट अशोक सिंघल और अन्य लोगों ने राम भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर खुलवाने को लेकर आंदोलन किया। यात्रा निकाली गई, जिसका नारा था- ‘आगे बढ़ो जोर से बोलो, राम मंदिर का ताला खोलो।’ बहरहाल, काफी जद्दोजहद और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मंदिर का ताला खुला और राम भक्तों को अपने आराध्य के दर्शन का अवसर मिलने लगा। लेकिन यह काफी नहीं था।
मंदिर निर्माण के लिए लगातार आंदोलन चला। उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कहा था, ‘‘कारसेवक तो क्या, अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।’’ लेकिन हम सभी राम भक्तों ने हनुमान जी की कृपा से उस चुनौती को स्वीकार किया। लाठी खाईऔर जेल गए। फिर 30 अक्तूबर, 1990 को कारसेवकों ने मंदिर तोड़कर बनाए गए विवादित ढांचे पर चढ़कर भगवा ध्वज लहराया।
उन्होंने कहा, ‘‘एक कारसेवक होने के नाते मैंने कारसेवकों के साथ उस समय की सरकार का क्रूर व्यवहार देखा है। राम भक्तों पर गोलियां चलाई गईं, जिसमें कुछ राम भक्त बलिदान हो गए। अशोक सिंघल जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। आखिरकार 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा ढह गया। उस समय चार राज्यों में भाजपा की सरकार थी, जिन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। आज वह बलिदान सफल हो रहा है। कारसेवकों का सपना साकार हो रहा है। मन अत्यंत प्रसन्न और आह्लादित है।
परंपरागत नागर शैली में बनने वाला यह मंदिर आद्य शंकराचार्य की पंचायतन अवधारणा से प्रेरित है। पंचायतन मंदिर निर्माण की एक विशिष्ट शैली है, जिसमें मुख्य देवी या देवता के चारों चारों ओर निर्मित गौण मंदिरों में चार अनुचर देवता स्थापित किए जाते हैं। गर्भगृह भूतल में रहेगा, जहां रामलला विराजमान होंगे। इनके चारों ओर गणपति, सूर्य, शिव और आदि शक्ति के मंदिर होंगे।
गर्भगृह के दक्षिण में हनुमान और उत्तर में मां अन्नपूर्णा मंदिर निर्माणाधीन है। चूंकि भगवान श्रीराम बाल स्वरूप में विराजमान होंगे, इसलिए गर्भगृह में माता सीता की प्रतिमा स्थापित नहीं होगी। प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा, जिसमें भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न एवं हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। भूतल, प्रथम तल और द्वितीय तल पर मंदिर होंगे। भूतल के सभी 14 दरवाजे सोने से मढ़े हैं।
वृद्ध जनों और दिव्यांगों को किसी प्रकार की असुविधा न हो, इसके लिए प्रवेश द्वार पर दो रैम्प बनाए गए हैं। उनके लिए लिफ्ट भी लगाई जाएगी। मंदिर में प्रवेश सिर्फ पूरब की ओर से होगा, जबकि निकास द्वार दक्षिण की ओर होगा। चंपत राय ने बताया कि अभियंताओं ने एक-एक पत्थर को कसौटी पर कसने के बाद ही उसे मंदिर में लगाया है। मंदिर निर्माण में योगदान देने वाले सभी अभियंता और वैज्ञानिक भारतीय हैं। इनमें ऐसा कोई नहीं है, जो विदेश में बसा हो। खास बात यह है कि मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया जा रहा है कि रामनवमी के दिन भगवान श्रीराम के मस्तक पर ढाई से पौने तीन मिनट तक सूर्य किरणें रहेंगी।
मंदिर के संरचना एवं डिजाइन प्रबंधक गिरीश सहस्रभोजनी के अनुसार, मंदिर भूकंपरोधी है। इसमें आधुनिक तकनीक का प्रयोग नहीं किया गया है। हम चाहते थे कि मंदिर की आयु 1,000 वर्ष से अधिक हो, लेकिन आधुनिक तकनीक से ऐसा मंदिर बनाना संभव नहीं था। दक्षिण के प्राचीनतम मंदिर आज भी सुरक्षित हैं, क्योंकि उनमें केवल पत्थ प्रयुक्त हुए हैं।
तंजौर मंदिर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यही नहीं, मंदिर निर्माण से पहले सरयू नदी का सर्वेक्षण कराया गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि भविष्य में नदी का कटाव मंदिर की ओर तो नहीं होगा। हालांकि सरयू का कटाव मंदिर की विपरीत दिशा में हो रहा है,फिर भी सुरक्षा के लिए सरयू की गहराई तक यानी 12 मीटर गहरी दीवार बनाई गई है, जिससे भविष्य में कटाव हुआ तो मंदिर पर इसका असर नहीं पड़ेगा।
मंदिर की अपनी पेयजल, सीवरेज और विद्युत आपूर्ति व्यवस्था होगी। परिसर में दो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट, पीने के पानी के लिए 400 फीट गहरी बोरिंग और एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया गया है, ताकि नगर निगम पर निर्भरता नहीं रहे। परिसर में आरओ मशीनें नहीं लगेंगी, क्योंकि 50 प्रतिशत पानी फिल्टर करने में ही व्यर्थ बह जाता है। इसके अलावा, फायर ब्रिगेड के लिए मंदिर के किनारे भूमिगत पानी की व्यवस्था की गई है।
परिसर में 100 शौचालय, 100 स्नानागार और यात्री सुविधा केंद्र है, जहां एक साथ 25,000 श्रद्धालु जूते-चप्पल और मोबाइल फोन रख सकेंगे। यात्री सुविधा केंद्रों पर योग्य चिकित्सकों द्वारा चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी। इन केंद्रों पर सभी सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध कराई जाएंगी। परिसर में आपात स्थिति के लिए सड़कें भी बनाई गई हैं।
टिप्पणियाँ