सागर मंथन में स्वास्थ्य पर एक सत्र था, जिसे नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के डीन (पी.एचडी.) डॉ. महेश व्यास और विश्व प्रसिद्ध आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. केयूर बुच ने संबोधित किया। प्रस्तुत हैं उनकी मुख्य-मुख्य बातें
भारतीय स्वास्थ्य पद्धति एक जीवंत पद्धति है। कवि कालिदास ने कहा है कि ‘शरीरं माध्यम खलु धर्म साधनं’ यानी आपका शरीर आपके काम को करने एक साधन मात्र है। यही हमारा भारतीय सूत्र है। उपनिषदों में शरीर की तुलना रथ से की गई है। जैसे रथ को आपको संभालना होता है उसी तरह से आपको अपने शरीर को संभालना होता है। लेकिन पश्चिम में हर चीज को बीमारी मान कर एक उद्योग बना लिया गया है। जैसे मोनोपॉज है।
महिलाओं के मासिक धर्म के बाद यह होता है और यह एक कुदरती व्यवस्था है। लेकिन इसे भी पश्चिमी देशों में एक बीमारी बनाकर दवाइयों का उद्योग खड़ा कर लिया गया है। आजकल गलत जीवनशैली से भी अनेक बीमारियां हो रही हैं। यदि आप एक साथ 20 मिनट से ज्यादा बैठते हैं तो आर्थराइटिस का शिकार हो सकते हैं। ज्यादा देर तक बैठना घातक होता है, लेकिन जाने-अंजाने लोग ऐसा करते हैं। यही कारण है कि जोड़ों से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं।
भारत में 20-30 फीसदी घुटनों का प्रत्यारोपण बिनी किसी कारण के ही होता है। अमेरिका की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं बीमा पर आधारित हैं। आयुष्मान भारत भी इसी तरह का है, जिसके तहत अब तक 50 लाख लोगों का इलाज किया जा चुका है। यह योजना उन लोगों के लिए बहुत बड़ा सहारा है, जो अपने खर्चे पर असाध्य बीमारियों का इलाज नहीं करा पाते हैं।
संस्कृति के सूत्र रखेंगे स्वस्थ — डॉ. महेश व्यास
आयुर्वेद का मुख्य सिद्धांत है कि हर व्यक्ति स्वस्थ रहे। यानी उसकी जीवनचर्या ऐसी हो कि वह बीमार ही न हो। आचार्य सुश्रुत कहते हैं कि अन्नप्राशन से लेकर मरने तक अगर आप आहार के नियमों का पालन करते हैं तो आप स्वस्थ रहेंगे।
कोरोना काल में आपने देखा होगा कि दुनिया का हर चिकित्सक मरीज को दवा के साथ ताजा खाना खाने की सलाह दे रहा था। समय पर खाइए, समय पर सोइए और समय पर व्यायाम कीजिए। जिन लोगों ने इस नियम का पालन किया, उन्हें अस्पताल जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
ऐसे लोग कोरोना से पीड़ित जरूर हुए थे, लेकिन इनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता इतनी मजबूत थी कि वे स्वस्थ बने रहे। स्वस्थ रहने के लिए आप नियमित शंख भी फूंक सकते हैं। कोरोना काल में देखा गया कि जो लोग शंख फूंकते थे, वे कोरोना को आसानी से झेल गए, क्योंकि उनके फेफड़े काफी मजबूत थे।
ऐसे लोगों के शरीर में आक्सीजन का स्तर कम नहीं हुआ। अगर हम अपनी संस्कृति के सूत्रों को अपनाते हैं तो कोरोना जैसी महामारियां भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती हैं। एक बात यह भी है कि अगर हम प्रतिदिन अपने घर का खाना खाते हैं तो किसी को अस्पताल जाने की आवश्यकता ही नहीं होगी। हम निश्चित रूप से समाज और परिवार को स्वस्थ रख पाएंगे। विश्व संगठन ने भी इस बात को माना है कि आयुर्वेद बहुत ही आवश्यक है।
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