भारत के विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर की काठमांडू यात्रा को लेकर नेपाल के राजनीतिक-सामाजिक गलियारों में एक ही एक सकारात्मक सरगर्मी नहीं दिख रही है, बल्कि हिमालय के उस पास कम्युनिस्ट चीन में भी सुगबुगाहट चरम पर है। नेपाल के प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक काठमांडू पोस्ट के अनुसार, जयशंकर गुरुवार यानी कल काठमांडू पहुंच रहे हैं। नेपाल में इस मौके पर भारत-नेपाल के बीच होने वाले प्रस्तावित समझौतों के माध्यम से नजदीकियां बढ़ने की उम्मीद है।
यह हो सकता है, यदि भारत और नेपाल के बीच कल नेपाल की राजधानी में होने जा रही महत्वपूर्ण बैठक के बाउ दोनों देशों के बीच एक ऊर्जा समझौते पर हस्ताक्षर हो जाते हैं तो। भारत के विदेश मंत्री की यह यात्रा इस मायने में बहुत मायने रखती है और नेपाल सरकार के अनेक मंत्री मानते हैं कि जयशंकर के इस दौरे से दोनों देशों के संबंधों को नया बल मिलेगा।
जयशंकर के साथ एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी नेपाल जाने वाला है। मुख्य एजेंडा काठमांडू में होने जा रही भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की सातवीं बैठक है। दोनों देशों के बीच यह एक उच्च स्तरीय व्यवस्था है, जो साझे हित के विषयों पर गौर करती है।
इधर कुछ वर्षों से हिमालयी देश नेपाल विस्तारवादी कम्युनिस्ट देश चीन के शिकंजे में जाता दिखा है, चीन वहां की विकास योजनाओं पर चीनी प्रभाव बढ़ाता देखा गया है। विश्लेषकों ने इस कम्युनिस्ट ड्रैगन की नेपाल को कब्जे में जकड़ने की वैसी ही चाल की तरह देखा है जिसके जरिए वह विश्व के अनेक देशों को अपने कर्ज के शिकंजे के जकड़कर उनकी अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला चुका है। श्रीलंका और पाकिस्तान इसके ताजा उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं।
भारत से नेपाल की नजदीकी न बढ़े और नेपाल में भारत की कैसी भी उपस्थिति न रहे, इसके लिए चीन ने काठमांडू में शासन के नजदीक के सभी कम्युनिस्ट नेताओं को अपने मोहपाश में कसने में कभी कोई कसर नहीं रखी है। प्रचंड सरकार के अधिकांश मंत्रियों और सांसदों को बीजिंग बुलाकर ‘ब्रीफ’ करने के घटनाक्रम किसी से छिपे नहीं हैं। ऐसे में चीन बिल्कुल नहीं चाहेगा कि भारत के साथ पूर्व हिन्दू राष्ट्र किसी प्रकार का कोई सरोकार रखे।
लेकिन चीन की ओर से ऐसे घुड़कियों के बावजूद नेपाल ने भारत के साथ लंबे समय तक चलने वाला ऊर्जा समझौता करने का मन बनाकर एक बड़ा कदम उठाया है। इसे नेपाल की राजनीति पर ‘मोदी प्रभाव’ के तौर पर देखा जा रहा है। यह कहा जा सकता है कि भारत में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और पड़ोसी देशों को विदेश नीति में विशेष महत्व देने की रीत ने इस बदलाव में बड़ा योगदान दिया है।
जयशंकर की कल होने जा रही है काठमांडू यात्रा को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। दोनों देशों के बीच बिजली के क्षेत्र में होने जा रहे समझौते पर भारत के विदेश मंत्री की उपस्थिति में हस्ताक्षर होना चीन के लिए एक बड़े संकेत का काम भी करेंगे। काफी दिनों से चर्चा में रहे ‘हाई इम्पैक्ट कम्युनिटी डेवलेपमेंट’ परियोजनाओं के लिए फंड में इजाफा करने के भारत द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर भी हस्ताक्षर होने हैं।
काठमांडू की जयशंकर के इस दौरे में उनके साथ भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा, संयुक्त सचिव (उत्तर, नेपाल, प्रीाारी—भूटान) अनुराग श्रीवास्तव तथा सीमा प्रबंधन से जुड़े विषयों पर काम कर रहे विदेश विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जाने वाले हैं। स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से विवाद का विषय रहे सीमा के कुछ मुद्दों पर भी गहन चर्चा होगी।
जयशंकर की काठमांडू यात्रा के मौके पर संयुक्त आयोग सीमा, वाणिज्य, कारोबार, आर्थिक क्षेत्र में सहयोग तथा बिजली के लेन—देन जैसे विषयों पर चर्चा प्रस्तावित है। काठमांडू पोस्ट ने नेपाल के विदेश मंत्री सऊद के हवाले से बताया है कि एजेंडा लगभग तय हो गया है। बैठक से कोई ठोस नतीजा निकलने के पर्याप्त आसार हैं।
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि भारत के विदेश मंत्री कल सुबह काठमांडू पहुंच रहे हैं। उनके साथ द्विपक्षीय आयोग की बैठक में नेपाल के विदेश मंत्री एन.पी. सऊद होंगे। नेपाल से मिले संकेतों के अनुसार, इस मौके पर दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। नेपाली ऊर्जा विभाग के सूत्रों के अनुसार, नेपाल की ओर से पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना की रिपोर्ट पर काफी काम किया जा रहा हे। लेकिन राजनीतिक स्तर पर कुछ मतभेद दूर हो जाते हैं, तो संभवत: नेपाल के प्रधानमंत्री, ऊर्जा मंत्री तथा विदेश मंत्री जयशंकर के वहां रहते हुए ही पंचेश्वर परियोजना पर आगे बढ़ सकते हैं।
जयशंकर की काठमांडू यात्रा के मौके पर संयुक्त आयोग सीमा, वाणिज्य, कारोबार, आर्थिक क्षेत्र में सहयोग तथा बिजली के लेन—देन जैसे विषयों पर चर्चा प्रस्तावित है। काठमांडू पोस्ट ने नेपाल के विदेश मंत्री सऊद के हवाले से बताया है कि एजेंडा लगभग तय हो गया है। बैठक से कोई ठोस नतीजा निकलने के पर्याप्त आसार हैं।
गत वर्ष मई—जून में जब प्रधानमंत्री प्रचंड भारत आए थे तब दोनों देशों ने ऊर्जा पर लंबे समय के लिए एक समझौते को लेकर सहमति व्यक्त की थी। इसके अनुसार, भारत नेपाल से अगले दस साल में 10,000 मेगावाट बिजली लेगा। अभी कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री प्रचंड ने एक कार्यक्रम में कहा भी था कि नेपाल भारत से एक ऊर्जा समझौता करने वाला है।
प्रधानमंत्री प्रचंड के साथ नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता की थी; उसमें मोदी ने घोषणा की थी कि भारत नेपाल से आने वाले 10 साल में 10,000 मेगावाट बिजली खरीदने जा रहा है।
लेकिन मोदी की उस घोषणा के बाद से ही चीन की ओर से कसमसाहट के संकेत मिलने लगे थे। उसने भारत-नेपाल के बीच प्रस्तावित ऊर्जा समझौते का विरोध किया। सितंबर 2023 में नेपाल में चीन के राजदूत चेन सांग ने इस समझौते को लेकर खूब उल्टी-सीधी बात की थी। सांग ने नेपाल के मन में भारत के प्रति नफरत रोपने की अपनी पुरानी रीत को दोहराया था और कहा था कि भारत नेपाल को लेकर कोई दोस्ती वाला रुख नहीं रखता। भारत के साथ नेपाल का समझौता किसी तरह हिमालयी देश के लिए लाभप्रद नहीं रहने वाला है। चीनी राजदूत ने तो नेापल को एक तरह से ‘हिदायत’ दी थी नेपाल चीन के साथ संबंध को महत्व दे और भारत को लेकर सतर्क रहे।
लेकिन चीनी राजदूत और बीजिंग की तमाम घुड़कियों के बाद यदि नेपाल सरकार भारत के साथ महत्वपूर्ण करारों की राह पर आगे बढ़ रही है तो यह एक सकारात्मक पहल ही है। दोनों देशों के बीच रहे ऐतिहासिक संबंधों की बुनियाद पर अगर नजदीकियां बढ़ती हैं तो यह दोनों देशों के लोगों के लिए सुखकर ही होगा।
टिप्पणियाँ