प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली श्री अयोध्या जी में रामलला का भव्य मंदिर का निर्माण जोरों से चल रहा है। यहां मंदिर के शिल्पकार (श्रमिक और अभियंता) कई शिफ्टों में लगातार काम कर रहे है। अयोध्या निवासी भी प्रभु श्री राम के स्वागतम की तैयारियों में जुट गए हैं। आगामी 22 जनवरी को श्री रामलला के श्री विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में की जाएगी। इसी के चलते अयोध्या वासी कोई कोर-कसर छोड़ना नहीं चाहते है। वहीं शुभ अवसर पर “श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट” ने बलिदानी कारसेवकों के परिवारों को भी आयोजन में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा है।
पाञ्चजन्य की टीम इस वक्त अयोध्या में है पूरी नगरी में भक्तिभाव से हर्ष और उल्लास का माहौल बना हुआ है। इस अवसर पर कारसेवा के दौरान बलिदान हुए अयोध्या निवासी रामभक्तों के परिवार से टीम पाञ्चजन्य ने मुलाकात की उनसे उनका हाल-चाल जानकर उस समय को याद किया जब समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते हजारों निहथ्ते रामभक्तों पर गोलियां चलवाईं। जिसका शिकार होकर कई परिवार बर्बाद हो गए।
ऐसा ही एक बलिदानी परिवार है रमेश कुमार पांडेय जी का जो कि अयोध्या में हनुमानगढ़ी मंदिर से थोड़ी दूरी पर रानी बाजार क्षेत्र में रहता है। जिस समय अयोध्या में देशभर के रामभक्त कारसेवा के लिए जुटे हुए थे। उस समय उनकी सेवा के लिए रमेश कुमार पांडेय लगे हुए थे। दिनांक 2 नवंबर, 1990 को मुलायम सिंह यादव सरकार द्वारा जब रामभक्तों पर गोली चलने का आदेश दिया गया तो एक गोली रमेश कुमार पांडेय को लगी। जिसमे वह मौके पर ही बलिदान हो गए।
टीम पाञ्चजन्य जब उनके घर पहुंची तो मुलाकात उनके छोटे बेटे सुरेश से हुई। सुरेश ने बताया कि बलिदान के समय उनके पिता अपने पीछे 1 पत्नी 2 पुत्री और 2 पुत्र का परिवार छोड़ कर गए थे। उस समय उनकी मां (रमेश पांडेय की पत्नी) की उम्र महज 35 वर्ष थी।
40 सालों से किराए पर रह रहा परिवार
रमेश पांडेय के पुत्र सुरेश ने हमें अपना घर दिखाया, बेहद ही साधारण और वर्षों पुराना सा दिखने वाला यह मकान उन्होंने किराए पर लिया हुआ है। उन्होंने बताया की यह मकान उनके पिता के समय से ही किराए पर है लगभग 40 वर्षों से हमारा परिवार इसी मकान में रह रहा है यह मकान अयोध्या के “राजपरिवार” की संपत्ति है। घर में एक नजर दौड़ाने पर हमें उसमे जरूरी रोजमर्रा की जरूरत के सामानों का अभाव दिखा।
पिता के देहांत के बाद माँ ने संभाला परिवार
अपने बचपन की याद दिलाते हुए सुरेश ने बताया कि 1990 में बलिदान के समय उनके पिता की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी। उनके बलिदान होने के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनकी मां के ऊपर आ गई उन्होंने ने पूरे परिवार को पाला-पोषा। उन्होंने ही मेहनत कर के सभी बेटी-बेटों की शादियाँ की।
टीम पाञ्चजन्य से बात करते हुए सुरेश ने बताया की अब तो मेरे भी बाल-बच्चे हैं, और एक छोटी सी दुकान चला कर जैसे तैसे अपने परिवार का गुजारा चला रहा हूँ , और अपनी माता जी के साथ रह रहा हूँ।
रमेश के सिर में लगी थी गोली
चर्चा के दौरान जब पाञ्चजन्य ने उस काले दिन के बारे में पूछा तो सुरेश पांडेय 2 नवंबर, 1990 की उस घटना को याद करते हुए भावुक हो गए और बताया की 30 अक्टूबर, 1990 को गोलीकांड के बाद तत्कालीन मुलायम सरकार इस भ्रम में थी कि उन्होंने रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को कुचल दिया है।
लेकिन अयोध्या में मौजूद रामभक्तों का जत्था भगवान राम के दर्शन के लिए जन्मभूमि की तरफ कूच कर चूका था। इस जत्थे में देशभर के रामभक्तों के साथ अयोध्या के रामभक्त भी मौजूद थे। रामभक्तों के इस जथ्ते को रामजन्मभूमि की और बढ़ते देख इस जत्थे की घेराबंदी की गई और आदेश मिलते ही रामभक्तों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी गईं। जिसमे जथ्ते के आगे चल रहे पिता जी (रमेश पांडेय) के सिर में गोली लगी और वह जमीन पर गिर पड़े और मौके पर ही बलिदान हो गए।
शव लेने के लिए करनी पड़ी मशक्कत
सुरेश ने बताया कि पिता के बलिदान के समय हम सभी भाई बहनों की उम्र बहुत कम थी तो उस समय माता जी पिता जी का शव लेने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी। पहले तो कोई भी प्रशासनिक अधिकारी यह बताने को तैयार नहीं था कि आखिर हुआ क्या है।जब अधिकारीयों से कोई जानकारी नहीं मिली तो माता जी ने उस जत्थे के लोगों से संपर्क किया जिस जथ्ते के साथ पिताजी चल रहे थे। तब जत्थे में साथ चल रहे लोगों ने बताया कि उनके पिताजी को भी गोली लगी है और उनका देहांत हो गया है।
सुरेश ने आगे बताया कि जानकारी मिलने के बाद उनकी माँ ने कई जगहों पर मिन्नत की और अन्न-जल त्याग कर वह पार्थिव शरीर को लेने के लिए दौड़ती रहीं। कई जगह निराशा हाथ लगी लेकिन अंततः आखिरकार तमाम शवों के बीच उन्हें पिता जी (रमेश पांडेय) की भी डेड बॉडी मिली।
सुरेश ने बताया कि अंतिम संस्कार के समय भी पूरी अयोध्या पुलिस छावनी बनी थी और शव यात्रा में शामिल लोग भी बंदूकों के साये में रहे थे। सभी कानूनी औपचारिकताओं के बाद ही अंतिम संस्कार हो पाया।
सरकारी मदद और सम्मान को मोहताज रहा परिवार
सुरेश ने बताया कि पिता जी के देहांत के बाद जब उनकी माँ परिवार पालने के लिए संघर्ष कर रहीं थीं तब उन्हें कहीं से भी कोई मदद प्राप्त नहीं हुई। इतना जरुर था की स्थानीय प्रशासन की तरफ से उनके जख्मों को ढकने के लिए 1 लाख रुपए दिए गए थे जो इस परिवार के भरण-पोषण के लिए नाकाफी थे।
हालाँकि सुरेश को आशा है कि आज के बदले माहौल में हिन्दू समाज के लोग और सरकार उनके घर की सुध लेगी। सुरेश को यह भी उम्मीद है कि उनके बलिदानी पिता की याद में वर्तमान सरकार अयोध्या में स्मारक भी बनवाएगी जो वर्तमान और भविष्य के रामभक्तों की प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
बलिदानियों को दिया मंदिर निर्माण का श्रेय
जब हमने मंदिर के भव्य निर्माण को लेकर सवाल किया तो उन्होंने बताया कि मंदिर के भव्य निर्माण से केवल उनका परिवार ही नहीं बल्कि प्रत्येक कारसेवक का परिवार खुश है। उन्होंने कहा जिस तरह आज मंदिर निर्माण को देखकर मेरे पिता की आत्मा को शन्ति मिलती होगी ठीक उसी तरह उन सभी आत्माओं को भी शांति मिल रही होगी जो मंदिर निर्माण के लिए बलिदान हो गए।
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