पछुवा देहरादून में मुस्लिम आबादी कैसे जमीनों पर कब्जा करने में हुई कामयाब, आखिर क्यों धामी सरकार को चलाने पड़े बुलडोजर

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दिनेश मानसेरा

देहरादून : हिमाचल और यूपी सीमा के बीच बसा हुआ पश्चिम देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवा दून भी कहते हैं। यहां डेमोग्राफी चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यूपी से आई मुस्लिम जनसंख्या ने यहां की सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसावट करती जा रही है, ग्राम सभा की जमीनों पर मुस्लिम आबादी को बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों, प्रधान पतियों की भूमिका सामने आई है।

बाहर से आई मुस्लिम आबादी ने पछुवा दून की नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए हैं और अब इनके आधार कार्ड, वोटर लिस्ट में नाम दर्ज किए जा रहे हैं और इनमें ग्राम प्रधानों और जिला पंचायत सदस्यों की भूमिका भी संदेह के घेरे में है।

पछुवा देहरादून के गांव के गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए हैं। आबादी की घुसपैठ का ये खेल हरीश रावत कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो अब तक बराबर चल रहा है। इन ग्रामों में मुस्लिम प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं।

यूपी, बिहार, असम, बंगाल, यहां तक की बंग्लादेशी, म्यामार के रोहिग्या मुस्लिम आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई ? ये बड़ा सवाल है।

देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमांचल पोंटा साहिब तक जाने वाली शिमला बाईपास, चकराता रोड के आसपास के इलाकों में देवभूमि उत्तराखंड का सामाजिक, आर्थिक धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्गों पर फड़ खोकों के कब्जे हैं और उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस चुकी है। सरकारी जमीनों पर सौ से ज्यादा मस्जिदों, मदरसों की ऊंची मीनारें दिखाई देती हैं।

आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालों में ये इलाका एकदम बदल गया और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होते चले गए और मुस्लिम आबादी ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया।

उत्तराखंड के क्या लचर भू-कानून की वजह से ऐसा हुआ ?  ये सवाल भी उत्तर खोज रहा है।

जानकारी के अनुसार उत्तराखंड यूपी की सीमा वाला ये क्षेत्र हिमाचल से लगता है, हिमाचल ने सख्त भू-कानून की वजह से कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां जमीन नहीं खरीद सकता और न ही कब्जे कर सकता है। मुस्लिम आबादी वहां बाग बगीचे में कारोबार करने जाती है और अस्थाई रूप से रहती है और वापिस चली जाती है। किंतु उत्तराखंड में ऐसा नहीं है जिसका फायदा उठाते हुए बाहरी राज्यों के मुस्लिमों ने इस क्षेत्र में अपनी अवैध बसावट कर ली और जहां मौका मिला वहां जमीनों पर कब्जे कर लिए।

पहले कुछ मुस्लिम यहां हिंदू बाहुल्य गांवों में आकर बसे धीरे-धीरे वो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाकर बसाने लगे फिर वो धन-बल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले गए और उन्होंने ग्रामसभा की सरकारी जमीनों पर अपने और मुस्लिम रिश्तेदारों को लाकर बसाना शुरू कर दिया, ताकि उनका वोट बैंक और मजबूत होता जाए, यहीं मस्जिदें बनी और मदरसे खुलते चले गए। यानि सरकारी जमीनों को कब्जाने का षड्यंत्र रचा गया जो आज भी जारी है।

अवैध कब्जे करने का खेल सरकार की सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर भी धन बल और वोट बैंक की राजनीति के दमखम पर आज भी चल रहा है और इसमें सत्ता पक्ष विपक्ष के नेताओ का संरक्षण भी मिलता रहा है।

राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध अवैध खनन है जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओ को धन बल की आपूर्ति करते है।

उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनो की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई ? कहां ठिकाने लगा दी गई?

ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने दो चरणों में ये अतिक्रमण भी ध्वस्त किए और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाएं। उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन उन्हें तारबाड़ से सुरक्षित नहीं की, अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने हैं, तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां सात सौ से ज्यादा मकान ध्वस्त किए लेकिन यहां रहने वाली आबादी उत्तराखंड छोड़कर नहीं गई वो आसपास ही मुस्लिम नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे कर रही है और इस बार वो पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर बस रही है।

इसी तरह सहसपुर, जीवनगढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा आदि ग्रामों की हालत है जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है।

प्रधानों के फर्जी दस्तावेज

ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कार्रवाई में लटके हुए हैं। इन्हें किसका संरक्षण मिला ये सवाल भी उठने लाजमी है ?

दिल्ली और देवबंद से चलता है धार्मिक संरक्षण का खेल

जानकार बताते है कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से यहां हो रहा है और इसके पीछे राजनीतिक शक्तियां ही नही धार्मिक शक्तियां भी काम कर रहीं हैं। दिल्ली देवबंद की इस्लामिक संस्थाएं यहां पूरी तरह से मस्जिदों, मदरसों में सक्रिय हैं और जमात के जरिए यहां मुस्लिम समुदाय को संचालित किया जा रहा है। मुस्लिम सेवा संगठन और अन्य संगठनों के माध्यम से राजनीति, धार्मिक, ताकत को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। ग्राम सभाओं पर इनका नियंत्रण हो चुका है आगे जिला पंचायत,फिर विधानसभा सीटों में इनका असर दिखाई देगा।

ऐसे ही नहीं यहां मुस्लिम राजनीतिक पार्टी या मुस्लिम यूनिवर्सिटी की आवाज पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सुनाई दी थी। इसके पीछे बहुत बड़ी साजिश दिखलाई देती है।

वन विभाग के अधिकारी खामोश

पछुवा देहरादून में नदियों के किनारे अवैध रूप से बसाए गए लोगों को हटाने के आदेश कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय से दिए गए, किंतु इसका असर क्षेत्र के डीएफओ, वन निगम के अधिकारियों में नहीं दिखाई दिया, कभी फोर्स न होने देने का बहाना तो कभी वीआईपी ड्यूटी के बहाने देकर ये अभियान ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं। विभागीय लापरवाही का आलम ये है कि अभी तक सरकारी विभागों ने इन अवैध कब्जेदारों को नोटिस तक जारी करने की जहमत नहीं उठाई।

हिंदू समुदाय पर हमले 

इसी इलाके में राशिद पहलवान और उसके साथियों ने कांवड़ियों पर पथराव किया था, राशिद पर गैंगस्टर लगी और उसकी जमानत भी हो गई, जमानत होने के बाद जिस तरह से क्षेत्र में जुलूस निकाला गया। उसके पीछे मंशा, हिंदू समुदाय को अपना दबदबा दिखाने की थी। राशिद पहलवान, मुस्लिम सेवा संगठन का संयोजक है और यहां कथित रूप से अवैधखनन, सरकारी भूमि कब्जाने जैसे मामले में वो सक्रिय रहता आया है।

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