जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के श्रीमंचदशनाम जूना अखाड़ा की आचार्यपीठ पर पदस्थापना के 25 वर्ष पूरे होने पर हरिद्वार में 24-26 दिसंबर तक आध्यात्मिक महोत्सव का आयोजन किया गया
जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा की आचार्यपीठ पर पदस्थापना के 25 वर्ष पूरे होने पर हरिद्वार में कनखल स्थित श्री हरिहर आश्रम में 24-26 दिसंबर, 2023 तक ‘दिव्य आध्यात्मिक महोत्सव’ का आयोजन किया गया। ‘श्रीदत्त जयंती’ पर आयोजित महोत्सव के पहले दिन पंचदेव महायज्ञ का शुभारंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने अरणी मंथन के साथ किया। महोत्सव के दूसरे दिन ‘वैदिक सनातन धर्म में समष्टि कल्याण के सूत्र’ विषय पर ‘धर्मसभा’ का आयोजन हुआ। इसमें केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तथा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने धर्मसभा में अपने विचार रखे। इसी दिन सायंकालीन सत्र में विख्यात लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने शानदार प्रस्तुति दी। भाजपा सांसद व भोजपुरी गायक मनोज तिवारी और मैत्रेयी पहाड़ी ने भगवान आद्य शंकराचार्य की कृतियों पर अद्भुत नृत्य प्रस्तुति दी।
स्वामी अवधेशानंद गिरि ने महोत्सव में आए सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा भाष्यकार भगवत्पाद आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित आद्य पीठ है। सनातन धर्म की रक्षा और संवर्धन के लिए इसकी स्थापना की गई थी। अखाड़ा परंपरा में कालगणना एवं संख्या की दृष्टि से श्रीपंचदशनाम जूनाअखाड़ा भारत का प्राचीनतम एवं नगा साधु-संन्यासियों का सबसे बड़ा समूह है। श्री हरिहर आश्रम भारत की आद्य विद्यापीठ है, जहां से भगवान दत्तात्रेय का अनुग्रह प्राप्त कर देश के लगभग 85 प्रतिशत साधु-संन्यासी ‘संन्यास-आश्रम’ में दीक्षित होकर निरंतर विभिन्न लोकोपकारी कार्यों में संलग्न हैं। आचार्यपीठ से देशभर में हजारों आश्रमों, शैक्षणिक संस्थानों, चिकित्सालयों एवं विविध सेवा प्रकल्पों का संचालन किया जाता है।
अनेक वर्षों से आचार्यपीठ पर भगवान आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापति संन्यास परंपरा के उच्चतम प्रतिमानों की अभिरक्षा के अतिरिक्त युवा संन्यासी, ब्रह्मचारी एवं साधकों के लिए नियमित वैदिक शिक्षण, विशेष रूप से प्रस्थानत्रयी (उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र एवं श्रीमद्भगवद्गीता) का अनवरत अध्ययन, अध्यापन किया जा रहा है। साथ ही, सनातन वैदिक हिंदू धर्म के विविध आयामों, जैसे- वैदिक स्वाध्याय, पंचदेव उपासना, अनुष्ठान आदि नियमित संचालित किए जा रहे हैं। मेरे द्वारा सनातन वैदिक हिंदू धर्म एवं संन्यास परंपरा के उच्चतम प्रतिमानों की अभिरक्षा और साधनहीन बंधु-भगिनियों की सेवा होती रहे, यही मेरा जीवन ध्येय है।’’
‘हम अपना जीवन बदल लें, तो दुनिया में बदलाव आएगा’
श्री हरिहर आश्रम के मृत्युंजय मंडपम में ‘वैदिक सनातन धर्म में समष्टि कल्याण के सूत्र’ विषय पर आयोजित धर्मसभा में मुख्य अतिथि के तौर पर अपने उद्बोधन में पूज्य सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि समष्टि कल्याण की आवश्यकता है। उन्होंने समष्टि कल्याण के सूत्रों में पृथ्वी के रक्षण व संवर्द्धन, प्राकृतिक संसाधनों के विवेक पूर्ण उपभोग, सतत विकास की अवधारणा एवं दान-त्याग की प्रवृत्तियों जैसे कई सूत्रों पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया के चिंतक हमसे कल्याण की अपेक्षा कर रहे हैं। हमारे देश में उस कर्तव्य को पूरा करने की योग्यता निर्माण करने का प्रयास चल रहा है। हमारी समष्टि की कल्पना विशिष्ट है, क्योंकि हमारी सभी प्रार्थनाओं में सर्वे भवन्तु सुखिन: का भाव है। हमें भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों सुख के लिए प्रयास करना है। दुनिया पहले समष्टि और कल्याण कल्पना की दृष्टि को ग्रहण करे। देश को चलाने वाले तंत्र के लोग प्रजा के पालन की बुद्धि रखें, न कि प्रजा पर शासन की। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था- ‘मैं प्रधान सेवक हूं।’ अर्थ लोभ के कारण कुरीतियां बढ़ती हैं।
उन्होंने कहा कि व्यवहार और चरित्र में ज्ञान को उतारने पर ही व्यक्ति समाज के लिए आदर्श बन सकेगा। गीता के ज्ञान की विवेचना करते हुए उन्होंने कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन जैसे अन्य सूत्रों का रहस्योद्घाटन किया। आज हम विश्व कल्याण के साथ भय मुक्त विश्व की कामना करते हैं। सृष्टि का कल्याण केवल सनातन में है। हर बार सफलता मिलती है ऐसा नहीं है। धैर्य रखना पड़ेगा। उत्साह दिखाना पड़ेगा, इन दोनों का समन्वय दिखाना पड़ेगा और फल को भगवान पर छोड़ना पड़ेगा। डॉ. हेडगेवार जी के सामने आज का फल नहीं निकला था। यह भगवान की योजना है, ऐसा मानकर जो लगातार कार्य करते हैं, वही सफल होते हैं। गीता के 16वें अध्याय के पहले तीन श्लोकों में जिस संपदा का वर्णन किया गया है, वही संपदा का गुण स्वयं में लाना होगा। आत्म परीक्षण करते हुए यदि सदा उसका स्मरण रखेंगे और दृढ़ निश्चय करेंगे कि मैं अपना जीवन बदलूंगा, तो युग का जीवन बदलेगा।
हमें अपने आचरण से आदर्श स्थापित करना है। भगवान राम इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए, क्योंकि उन्होंने अपनी मर्यादाएं स्थापित कीं। वह इतनी प्रामाणिक है कि आज हजारों वर्ष बाद भी चली आ रही है। हमें ऐसी ही मर्यादा स्थापित करनी है। अकेला सनातन कल्याणकारी सनातन वर्ण का पालन करें, तो हमारा और दुनिया भी भला होगा। सबको अपना मान कर चलें, क्योंकि सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारे मन में यह भाव होना चाहिए कि सबके सुख में हमारा सुख है। इस दुनिया में अनेक भाषाएं बोलने वाले और अनेक मत-मजहब को मानने वाले लोग हैं, लेकिन उनमें दूसरे धर्म को सहन करने की प्रवृत्ति नहीं है। प्रवृत्ति भी है, तो उसका आधार क्या है, यह मालूम नहीं है। दुनिया यदि श्रीमद्भागवत में बताए गए चार धर्मों सत्य, करुणा, शुचिता और तपस को आत्मसात कर ले, तो कलह-भेद नहीं रहेगा। पर्यावरण की हानि नहीं होगी, क्योंकि मनुष्य अपने विचार से विकास करेगा। इस विचारधारा में बहुत सारे सूत्र और पर्वत जैसा असीम ज्ञान है। ज्ञान भाषण से नहीं आता है। अगर एक शब्द को भी आचरण में उतार लिया जाए, तो दुनिया में परिवर्तन आ सकता है। अगर हम अपना जीवन बदल लें, तो दुनिया में बदलाव आएगा और भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा।
इस तीन दिवसीय महोत्सव में देश भर के सभी संप्रदायों के शीर्षस्थ आचार्य, संत, लेखक, विचारक, नेता, अधिकारी और विदेश से बड़ी संख्या में आए साधक उपस्थित थे। इस अवसर पर प्रभात प्रकाशन ने स्वामी अवधेशानंद गिरि द्वारा लिखित चार पुस्तकों स्तुति प्रकाश, स्तुति प्रवाह, पाथ आॅफ डिविनिटी और टू वर्ल्ड्स परफेक्शन का लोकार्पण किया। साथ ही, देश को स्वच्छ बनाने में अद्वितीय प्रयास के लिए सुलभ इंटरनेशनल के प्रमुख दिलीप पाठक को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि सतातन धर्म में सभी मत-पंथों का निचोड़ निहित है। आने वाले कुछ वर्षों में भारत आर्थिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामरिक शक्ति का केंद्र बन जाएगा। परमार्थ निकेतन आश्रम के संस्थापक स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि हम भारतीयों के चरित्र में भौतिक बल के साथ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक बल भी हो। स्व. अशोक सिंघल का स्मरण करते हुए केंद्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने राम मंदिर निर्माण को इस दशक की सबसे बड़ी उपलब्धि बताया।
‘चक्रव्यूह’ का अद्भुत नाट्य मंचन
तीन दिवसीय महोत्सव के पहले दिन शाम को महाभारत में उत्तरा और अभिमन्यु के प्रसंग पर आधारित ‘चक्रव्यूह’ नाटक का मंचन किया गया। अतुल सत्य कौशिक द्वारा लिखित और निर्देशित इस नाटक में 28 कलाकारों अद्भुत प्रस्तुति दी। नाटक में श्रीकृष्ण की भूमिका में अभिनेता नीतीश भारद्वाज थे। टीवी धारावाहिक महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका निभाने वाले नीतीश भारद्वाज भाजपा के सांसद भी रह चुके हैं। योगीश्वर भगवान के रूप में उन्होंने कहा कि घटनाओं को भूल जाओ, शिक्षाओं को याद रखो। यह ज्ञान हर पिता अपने हर योग्य पुत्र को धरोहर में दे देता, तो आज ये रण हुआ ही न होता। इस नाट्य मंचन में सभी कलाकारों ने अपने प्रभावशाली अभिनय और मार्मिक संवादों से दर्शकों का मन मोह लिया। नाटक में विभिन्न मार्मिक प्रसंगों सहित सभी नौ रसों का मंचन किया गया। अभिमन्यु की भूमिका में साहिल छाबड़ा का अभिनय भी प्रभावशाली रहा।
राष्ट्र के उत्थान में संन्यासियों का योगदान
श्री हरिहर आश्रम के मृत्युंजय मंडपम में धर्मसभा को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘‘यह दिव्य आध्यात्मिक महोत्सव है। परिसर में प्रवेश करते ही मुझे इसकी दिव्यता का अनुभव हो रहा था। आध्यात्मिक व्यक्ति वही है, जिसका मन बड़ा होता है। छोटे मन का व्यक्ति परिवार से अलग होकर लोकहित के लिए संन्यास धारण नहीं कर सकता है। जब व्यक्ति परमानंद को अनुभूत कर लेता है, तो मन का विस्तार होता है। मन की परिधि परमानंद के समानुपाती होती है। पूज्य स्वामी जी के प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा है, जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। राष्ट्र के उत्थान में संन्यासियों का योगदान अभूतपूर्व है। जब भी आवश्यकता पड़ी, संन्यासियों ने समाज का उत्थान किया। विदेशी आक्रांताओं को लगता था कि संन्यासियों और आध्यात्मिक परंपरा को नष्ट कर वे भारत की सांस्कृतिक चेतना को नष्ट कर देंगे, लेकिन यह पूज्य स्वामी जी जैसे संन्यासियों की जिजीविषा ही थी कि भारत आज भी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इतना समृद्ध है। आज भी स्वामी जी की प्रेरणा से आचार्य पीठ द्वारा जल, पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए जा रहे हैं।’’
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