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यह विमर्श नहीं, टूलकिट है

अब जैसे-जैसे चुनाव निकट आते जा रहे हैं, वही लॉबी हमें जाति, भाषा, क्षेत्र और देवता के आधार पर विभाजित करने की कोशिशें तेज करती जा रही है। आगे भी कई टूलकिट आएंगे। आवश्यक यह है कि हम ऐसे किसी टूलकिट के झांसे में न आएं

by हितेश शंकर
Dec 26, 2023, 12:09 pm IST
in भारत, सम्पादकीय
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हिंदू समाज को किसी न किसी बहस में उलझा कर आपस में बांटा जाए। आप इनकी चालाकी देखिए। जातिगत जनगणना, उत्तर-दक्षिण और बलि प्रथा- तीनों विषय इस प्रकार चुने गए हैं 

जो विचारधाराएं वास्तव में केवल घृणा का प्रचार करती हैं, जो हमेशा मानवता को ‘हम लोग’ और ‘वे लोग’ में बांट कर देखती हैं, वे अब फिर नए सिरे से सक्रिय हो गई हैं। जातिगत जनगणना, उत्तर-दक्षिण के बाद अब बलि प्रथा को लेकर बहस शुरू कर दी गई है। यह बहस वे लोग कर रहे हैं, जो स्वयं तो भारतीय ज्ञान परंपरा के सागर की तरफ पीठ कर रेत में खेल रहे हैं, लेकिन भारत को समुद्र की गहराई के बारे में ज्ञान देना चाहते हैं।

मंतव्य यह कि हिंदू समाज को किसी न किसी बहस में उलझा कर आपस में बांटा जाए। आप इनकी चालाकी देखिए। जातिगत जनगणना, उत्तर-दक्षिण और बलि प्रथा- तीनों विषय इस प्रकार चुने गए हैं कि अगर आप कोई भी पक्ष लेते हैं, तो तुरंत उनका ‘हम लोग’ और ‘वे लोग’ वाला मंतव्य पूरा हो जाता है। फिर तीनों के निहितार्थ इस प्रकार निकाल लिए जाते हैं, जिनसे समाज में फूट पड़ती हो। और अंतत: यह सारी प्रक्रिया हिन्दुत्व विरोधियों का रास्ता आसान बना देती है।

जैसे अगर आप बलि प्रथा का समर्थन करते हैं, तो आप उन सारी प्रवृत्तियों को एक तार्किक आधार उपलब्ध करा देते हैं, जिनका अपना लक्ष्य भारत की संस्कृति को उसके मूल आधारों से दूर ले जाकर हिंसा और अपराध की संस्कृति की ओर धकेलना है। और अगर आप बलि प्रथा के विरोध में कोई तर्क देते हैं तो फिर इससे न केवल आप उनके ही बिछाए जाल में फंस जाते हैं, बल्कि अपने ही लोगों के लिए भी भ्रम की स्थितियां पैदा कर देते हैं।

जैसे समुद्रोल्लंघन का उदाहरण लें। कहा जाता है कि भारतीय ग्रंथों में समुद्र उल्लंघन का निषेध है। लेकिन, व्यापार-रोजगार अथवा सैनिक अभियान के लिए समुद्र उल्लंघन की अनुमति हमेशा रही है। यह भी कहा गया है कि समुद्र से वापस लौटे व्यक्ति को कुछ समय तक अलग रखा जाना चाहिए। अब इनमें से अगर किसी भी एक बिंदु को तर्क बनाया जाएगा, तो न केवल बात अपूर्ण रहेगी, बल्कि वह भ्रम पैदा करने वाली भी प्रतीत होगी। यही स्थिति अन्य बातों में भी है।

हम ऐसे किसी टूलकिट के झांसे में न आएं। हम सभी, हर तरह से अलग हैं, या हो सकते हैं, और इसलिए हमें किसी की भी आलोचना करने से पहले यह अवश्य विचार करना चाहिए कि कहीं हम अपने ही शत्रुओं का मंतव्य तो पूरा नहीं कर रहे हैं। हमारी विविधता हमारी शक्ति है, हमें इतिहास के झंझावातों से सुरक्षित बाहर निकालने वाली शक्ति। हमें अपनी विविधता को कमजोरी नहीं बनाने देना है।

भारत इस तरह के हथकंड़ों के प्रति निश्चित रूप से काफी जागृत हुआ है। एक समय तो हमें अपने आक्रमणकारियों की भी प्रशंसा करना सिखाया गया था। जिन विचारधाराओं में घुट्टी में और उनकी पुस्तकों में सिखाया गया है कि कैसे अपने लोगों को नियंत्रित किया जाए और अपने क्षेत्र का विस्तार किया जाए, हमें ऐसी विचारधाराओं के सत्य से अनभिज्ञ रखा गया और इसके विपरीत यह सिखाया गया कि सभी विचारधाराएं शांति और प्रेम का उपदेश देती हैं। भले ही अब वह पहले जैसा आसान नहीं रह गया है, लेकिन हमारे लिए यह ध्यान रखना हमेशा महत्वपूर्ण बना रहेगा कि संगठित और बर्बर विचारधाराएं किस प्रकार काम करती हैं।

इन षड्यंत्रकारी विचारधाराओं के निशाने पर हिंदुत्व है। क्योंकि वास्तव में हिन्दुत्व का अर्थ ही स्वतंत्रता है। यहां प्रत्येक व्यक्ति को अपने इष्ट और आस्था को चुनने और इच्छित रूप में उपासना करने की स्वतंत्रता है। यहां तक कि नास्तिक भी हिन्दू है। यह स्वतंत्रता विविधता में अभिव्यक्त होती है। इन विचारधाराओं को हिन्दू समुदाय की अंतरनिहित विविधता वहां तक तो रास आती है, जहां तक उसमें उन्हें विभाजन करने की संभावना दिखती हो, लेकिन जब उसी हिंदुत्व के मानने वाले बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बजाय किसी देसी कंपनी को चुनने लगते हैं, तो उन्हें उसमें असहिष्णुता नजर आने लगती है।

कन्वर्जन के बाद भी दलितों का आरक्षण खाने वाले जातिगत जनगणना की बात करने लगते हैं। केएफसी की हड्डियां चबाने वाले बलिप्रथा की बात करते हैं। दक्षिण भारत के सांस्कृतिक स्वरूप को नकारने और उत्तर भारत को दुत्कारने वाले भारत जोड़ो यात्रा करने लगते हैं। याद करें कि किस प्रकार यूपीए ने ‘भगवा आतंक’ नामक टूलकिट बनाया था। अब जैसे-जैसे चुनाव निकट आते जा रहे हैं, वही लॉबी हमें जाति, भाषा, क्षेत्र और देवता के आधार पर विभाजित करने की कोशिशें तेज करती जा रही है। आगे भी कई टूलकिट आएंगे।

आवश्यक यह है कि हम ऐसे किसी टूलकिट के झांसे में न आएं। हम सभी, हर तरह से अलग हैं, या हो सकते हैं, और इसलिए हमें किसी की भी आलोचना करने से पहले यह अवश्य विचार करना चाहिए कि कहीं हम अपने ही शत्रुओं का मंतव्य तो पूरा नहीं कर रहे हैं। हमारी विविधता हमारी शक्ति है, हमें इतिहास के झंझावातों से सुरक्षित बाहर निकालने वाली शक्ति। हमें अपनी विविधता को कमजोरी नहीं बनाने देना है।
@hiteshshankar

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