पाञ्चजन्य के सागर मंथन सुशासन संवाद 2.0 में उपस्थित दीन दयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट के महासचिव अतुल जैन ने राष्ट्रधर्म को लेकर बात की। उन्होंने कहा कि इस दशक में (मोदी सरकार का कार्यकाल) सबसे अच्छी चीज ये हुई है कि अब हम धर्म शब्द से परहेज नहीं कर रहे हैं। धर्म हमारे एथिक्स है। ये भारत की दृष्टि से सर्वमान्य है। ये देश के लिए अनुकूल होने के साथ ही तकनीक के लिए अनुकूल है।
हम पूरी दुनिया के साथ कदम ताल करके आगे बढ़ रहे हैं, जिसकी प्रेरणा राष्ट्रधर्म से मिलती है। हमारे मंदिरों में धर्म का समागम होता है और राष्ट्रधर्म किस तरह से उसमें निहित होता है, उसे हम सब जानते हैं, लेकिन कभी हम लोगों ने कभी उस तरीके से समझने का प्रयास नहीं किया। अपनी स्पीच के दौरान अतुल जैन ने मंदिरों में सकारात्मक ऊर्जा को लेकर कहा कि दीन दयाल शोध संस्थान के जरिए एक सर्वे किया गया, जिसमें 65 चीजें पता चलीं।
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हम लोगों ने ये महसूस किया कि मंदिर में जाकर बैठे तो वहां एक समरसता का भाव पैदा होता है। शांति होती है। मंदिरों में हमें समृद्धि का अहसास होता है। मंदिरों से हमें पता चला कि आर्किटेक्ट का पता चला है, कि मंदिरों की संरचना बहुत ही आधुनिक है। इसमें बहुत ही प्राचीन स्थापत्य कला का पता चलता है। भारत की कलाओं को वापस लाने में मंदिरों का बड़ा योगदान रहा है।
इसके अलावा मंदिरों से फूड सिक्योरिटी, पोषण और बायो डायवर्सिटी का अच्छा मैनेजमेंट मिलता है। गोवा मुक्ति संग्राम के दौरान मंदिरों की बड़ी भूमिका रही। उस दौरान जो क्रांतिकारी थे वो भजन कीर्तन के माध्यम से मंदिरों में आश्रय लेते थे। आधुनिक समय में जब भी देश में कोई प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो मंदिरों के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। मंदिरों का राष्ट्रधर्म से बड़ा गहरा नाता रहा है।
अतुल जैन ने कहा कि अटल जी इस संगठन के प्रथम अध्यक्ष थे। अटल बिहारी ने 1947 में राष्ट्रधर्म नाम की पत्रिका को शुरू किया था। राष्ट्रधर्म चतुष्पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की संकल्पना है। दीन दयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ता देशभर में जानकारियों को बांटा जाता है। 2002 में अटल जी ने गोवा के तट से अपनी म्यूजिंग्स ली थी, जिसमें राष्ट्रधर्म का जिक्र था। 9.5 वर्षों में हमने देखा है कि भारत राष्ट्र धर्म के कारण दुनियाभर में काफी आगे निकला है।
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