मैं जब अभाविप में कार्य करता था, तब इसके बारे में विस्तार से बताना पड़ता था। लेकिन इसका ध्यान रखना पड़ता था कि इसमें कहीं अतिश्योक्ति न हो।
अभाविप इतनी प्रगति करेगी, यह मैंने कभी नहीं सोचा था। मैं जब अभाविप में कार्य करता था, तब इसके बारे में विस्तार से बताना पड़ता था। लेकिन इसका ध्यान रखना पड़ता था कि इसमें कहीं अतिश्योक्ति न हो। जो सच है, वही बताया जाए। एक प्रकार से यह बौद्धिक व्यायाम की तरह होता था। 20-30 वर्ष बाद अभाविप का वर्तमान स्वरूप उभर कर सामने आया। दिल्ली में 1971 में आयोजित अधिवेशन के समय मैं अभाविप का राष्ट्रीय महामंत्री था। उस समय अधिवेशन टेंट सिटी में हुआ था। 1985 में भी अधिवेशन का आयोजन टेंट सिटी में किया गया और अब एक बार फिर अधिवेशन का आयोजन टेंट सिटी में किया गया। अभाविप कई कार्य कर रही है, लेकिन अपने कार्यों को बढ़ा-चढ़ा कर बताने की परंपरा नहीं है।
अभाविप का कार्य कॉलेज में होता है। अभाविप के माध्यम से ऐसे विद्यार्थी तैयार होते हैं, जो सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए और देश को आगे ले जाने के लिए तैयार होते हैं। तब देश को पचास-साठ वर्ष के लिए ऐसे नागरिक मिलते हैं, जो देश को ऊंचाई तक ले जाते हैं। दत्ता जी डिडोलकर और प्रो. यशवंत राव केलकर का अभाविप में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
अभाविप में कार्य करते हुए मैंने सबसे ज्यादा प्रो. यशवंत राव केलकर से सीखा। केलकर जी कहते थे कि अगर कार्यक्रम छह बजे होना है, तो इसका अर्थ छह बजे ही होता था। अगर सदस्यता की संख्या 1078 है, तो उसे लगभग 1,100 नहीं बोलना है। उनका सभी कार्यकर्ताओं से यह कहना था कि प्रामाणिकता को किसी तरह छोड़ना नहीं, बढ़ा-चढ़ाकर बोलना नहीं। देश भर में जो सदस्य संख्या है, सिर्फ उतना ही बोलना है। आज अभाविप की सदस्य संख्या लगभग 50,00,000 है। इस पर विश्वास नहीं होता, लेकिन यह सच है।
अभाविप आज अस्थाई जनसंख्या का स्थाई संगठन है, जो विश्व का सबसे बड़ा उदाहरण है। विश्व में ऐसा कोई संगठन है, इसकी जानकारी मुझे नहीं है, लेकिन भारत में है। जनसंख्या के हिसाब से भारत सबसे ऊपर पहुंच गया है। इतना बड़ा देश है, इतना पुराना देश है। वहां इस तरह के संगठन की न केवल गुंजाइश, बल्कि जरूरत है। अभाविप इस आवश्यकता को पूरा कर रही है। अभाविप का कार्य कॉलेज में होता है। अभाविप के माध्यम से ऐसे विद्यार्थी तैयार होते हैं, जो सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए और देश को आगे ले जाने के लिए तैयार होते हैं। तब देश को पचास-साठ वर्ष के लिए ऐसे नागरिक मिलते हैं, जो देश को ऊंचाई तक ले जाते हैं। दत्ता जी डिडोलकर और प्रो. यशवंत राव केलकर का अभाविप में महत्वपूर्ण योगदान रहा।
एक समय ऐसा भी आया जब अभाविप कठिन समय से गुजरने लगी। उस समय दत्ता जी अध्यक्ष बने और नेतृत्व किया। दत्ता जी संघ के प्रचारक थे, लेकिन बड़े भाई के निधन के बाद उन्होंने परिवार के लालन-पालन के लिए प्रचारक जीवन छोड़ दिया, पर वे गृहस्थ नहीं बने। बड़े भाई के परिवार का उन्होंने ध्यान रखा। साथ ही नागपुर में एक कोचिंग संस्थान शुरू किया। वह संस्थान अच्छा चलने लगा। इसके बावजूद वे सामाजिक कार्य से दूर नहीं हुए। उनके सम्मान में इस अधिवेशन में प्रदर्शनी का नामकरण दत्ता जी के नाम पर रखा गया। इसी तरह मदनदास जी के नाम पर सभागार का नाम रखा गया। अभाविप को ऐसे ही अनगिनत श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं ने आगे बढ़ाया है। आशा है कि यह गति और प्रगति चलती रहेगी।
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