समर्पण की कसौटी पर कसे मोहन

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रमेश शर्मा

‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के संकल्प के साथ कार्य आरंभ कर दिया है। मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में उन्होंने कई बड़े निर्णय लिए हैं। इनमें मजहबी-धार्मिक स्थलों पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने और खुले में मांस-मछली और अंडे की बिक्री पर प्रतिबंध शामिल है।

मध्य प्रदेश के 33वें मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव के पदभार ग्रहण करते ही उनकी सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के संकल्प के साथ कार्य आरंभ कर दिया है। मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में उन्होंने कई बड़े निर्णय लिए हैं। इनमें मजहबी-धार्मिक स्थलों पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने और खुले में मांस-मछली और अंडे की बिक्री पर प्रतिबंध शामिल है। साथ ही, उन्होंने तेंदूपत्ता संग्राहकों के बोनस को 1,000 रुपये बढ़ा कर घोषणापत्र का एक वादा भी पूरा कर दिया है। इससे 35 लाख से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहक लाभान्वित होंगे।

इससे पूर्व गरिमामय शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्ढा, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, अन्य वरिष्ठ नेताओं के अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा व भाजपा के लगभग सभी विधायक उपस्थित थे। राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने मोहन यादव को पद दायित्व और गोपनीयता की शपथ दिलाई। उनके साथ राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। समारोह में भारतीय परंपराओं और संवैधानिक प्रावधान, दोनों की झलक दिखी। राज्यपाल के आगमन के साथ राष्ट्रगान हुआ और परंपरानुसार समापन भी राष्ट्रगान से ही हुआ। जब शपथ ग्रहण के लिए डॉ. मोहन यादव के नाम की घोषणा हुई, तो संत जनों ने शंख ध्वनि का उद्घोष किया। इसी प्रकार राष्ट्रगान से औपचारिक समापन के बाद भी संत जनों ने शंख ध्वनि का उद्घोष किया।

संगठन को समर्पित कार्यकर्ताओं की चिंता

शपथ ग्रहण समारोह के दो दिन पहले 11 दिसंबर को भाजपा विधायक दल की बैठक में सर्वसम्मति से मोहन यादव को विधायक दल का नेता चुना गया। हालांकि उनका नाम उन प्रमुख लोगों में शामिल नहीं था, जो विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान और भाजपा की जीत के बाद चर्चा में रहे। किसी ने कल्पना भी नहीं थी कि प्रमुख नामों को छोड़कर पिछली पंक्ति के किसी कार्यकर्ता को अवसर मिलेगा। इस निर्णय में भाजपा संगठन के सिद्धांतों के साथ राजनीतिक रणनीति की भी झलक दिखती है। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति, मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग और राजस्थान में सामान्य वर्ग से भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री चुने।

इन तीनों का चयन विभिन्न वर्गों के बीच वर्ग समन्वय की महत्वपूर्ण शृंखला है। मोहन यादव एक सामान्य कृषक परिवार से आते हैं। वह किशोर वय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और विद्यार्थी परिषद के माध्यम से आगे बढ़े। लगभग 23 वर्ष पहले भाजपा में आए और विभिन्न पदों पर रहे। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी सामान्य कार्यकर्ता के रूप में विद्यार्थी परिषद और युवा मोर्चा से ही संगठन में विभिन्न पदों और मुख्यमंत्री पद पर पहुंचे थे। यह तथ्य संकेत करता है कि भाजपा में आगे बढ़ने के लिए पारिवारिक पृष्ठभूमि या प्रभाव की आवश्यकता नहीं होती। संगठन अपने समर्पित और सक्रिय कार्यकर्ताओं की चिंता करता है, जो अन्य संगठनों में बहुत कम देखने को मिलता है।

कौन हैं मोहन यादव

जन्म : 25 जुलाई, 1965 उज्जैन नगर में
शिक्षा: बीएसी, एलएलबी, एमए, एमबीए और पीएचडी
व्यवसाय : वकालत, व्यापार और कृषि

सक्रियता

  • 1982 माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के सह-सचिव बने।
  • 1982 माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के सह-सचिव बने।
  • 1984 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, उज्जैन के नगर मंत्री बने।
  • 1986 में विभाग प्रमुख बने।
  • 1988 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, मध्य प्रदेश के सहमंत्री एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने।
  • 1989-90 में विद्यार्थी परिषद प्रदेश मंत्री रहे।
  • 1991-92 में विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय मंत्री बने।
  • 1993-95 तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उज्जैन नगर के सह खंड कार्यवाह रहे।
  • 1996 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खंड कार्यवाह और उज्जैन नगर कार्यवाह बने
  • 1997 में भा.ज.यु.मो. की प्रदेश कार्य समिति के सदस्य नियुक्त हुए।
  • 1998 में पश्चिम रेलवे बोर्ड की सलाहकार समिति के सदस्य बने।
  • 1999 में भा.ज.यु.मो. के उज्जैन संभाग प्रभारी नियुक्त हुए।
  • 2000-2003 तक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की कार्यपरिषद के सदस्य रहे।
  • 2000-2003 में भाजपा जिला महामंत्री रहे।
  • 2004 में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रहे।
  • 2004 में सिंहस्थ की केंद्रीय समिति के सदस्य रहे।
  • 2004-2010 तक उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष (राज्य मंत्री दर्जा) रहे।
  • 2008 से भारत स्काउट एंड गाइड के जिलाध्यक्ष रहे।
  • 2011-2013 तक मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष (कैबिनेट मंत्री दर्जा) और भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य रहे।
  • 2013-2016 तक भाजपा अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के सह-संयोजक रहे।
  • 2013 और 2018 में क्रमश: पहली और दूसरी बार विधायक बने।
  • 2023 में तीसरी बार विधायक बने और अब मुख्यमंत्री हैं।

जब मोहन यादव को विधायक दल का नेता चुना गया, तो अपना नाम सुनकर वह चौंक पड़े थे। तीन केंद्रीय पर्यवेक्षकों मनोहर लाल (मुख्यमंत्री हरियाणा), के. लक्ष्मण (ओबीसी मोर्चा अध्यक्ष) और आशा लकड़ा (राष्ट्रीय सचिव) की उपस्थिति में जब यह सर्वसम्मत निर्णय हुआ, तब मोहन यादव दूसरी पंक्ति में बैठे हुए थे। उन्हें कल्पना भी नहीं थी कि उनका चयन होने वाला है। बैठक में शिवराज सिंह चौहान ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका समर्थन पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया। फिर मोहन यादव को अग्रिम पंक्ति में बैठाया गया। बाहर सैकड़ों कार्यकर्ता एकत्र थे, जो विभिन्न नेताओं के समर्थक थे। उनमें से कुछ तो अपने नेताओं के समर्थन में नारे भी लगा रहे थे। कार्यकर्ताओं के समूह में मोहन यादव का कोई समर्थक नहीं था।

मोहन यादव संगठन और उसके सिद्धांतों के प्रति समर्पित एक सहज-सरल कार्यकर्ता होने के साथ उच्च शिक्षित भी हैं। सबको साथ लेकर और सबको विश्वास में लेकर कार्य करना उनकी विशेषता है। वह जहां और जिस दायित्व में रहे, अपनी अलग पहचान बनाई। इसे पर्यटन निगम के अध्यक्ष के रूप में भी देखा गया और उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में भी। इसी शैली ने उन्हें इस पद तक पहुंचाया। वहीं, उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा अनुसूचित जाति से हैं।

नीमच जिले की मल्हारगढ़ सुरक्षित विधानसभा सीट से निर्वाचित देवड़ा भी सामान्य ग्रामीण परिवार से हैं। वह 1998 में पहली बार विधायक बने और 2003 में उमा भारती मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। शिवराज सिंह सरकार में देवड़ा वित्तमंत्री थे। दूसरे उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल विंध्य क्षेत्र के रीवा से आते हैं। उन्होने भी छात्र राजनीति से सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। पहला चुनाव 1998 में लड़े, पर सफलता नहीं मिली। 2003 का चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीते और तब से विधायक हैं। उनका पूरे विंध्य में प्रभाव है। माना जाता है कि 2018 की सत्ता विरोधी लहर के बीच भी यदि विंध्य क्षेत्र में भाजपा को सफलता मिली थी, तो इसमें राजेंद्र शुक्ल की भूमिका महत्वपूर्ण थी।

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