मध्य प्रदेश: मुख्यमंत्री ने दिया आदेश, मस्‍जिदों से हटने लगे लाउडस्‍पीकर

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने लाउडस्पीकर की तेज आवाज पर अंकुश लगाने का दिया था निर्देश

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भोपाल । मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्य में लाउडस्पीकर की तेज आवाज पर अंकुश लगाने का आदेश दिया था। आदेश के बाद तत्‍काल अब इस पर प्रदेश भर में अमल होता दिखाई देने लगा है। जहां आवाज तेज थी, वहां निर्धारित सीमा में तय की गई। वहीं कई मस्‍जिदों एवं मंदिरों से लाउड स्‍पीकर उतरने का सिलसिला जारी है।

सीएम मोहन यादव के बुधवार को दिए नए निर्देशों एवं आदेश में साफ कहा गया है कि ‘संज्ञान में आया है कि विभिन्न धर्म स्थलों में निर्धारित डेसिबल का उल्लंघन करते हुए लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जा रहा है। शोर से मनुष्य के काम करने की क्षमता, आराम और नींद में व्यवधान पड़ता है। शोर वाले वातावरण से उच्‍च रक्‍तचाप, बेचैनी, मानसिक तनाव, अनिद्रा जैसे प्रभाव शरीर में पाए जाते हैं। अधिक शोर होने पर कान के आंतरिक भाग की क्षति होने के प्रमाण पाए गए हैं। लाउडस्पीकर और हॉर्न के यहां तक कि निजी आवासों में भी इस्तेमाल पर व्यापक दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपरोक्‍त संदर्भ‍ित निर्णय के अंतर्गत जारी किए गए हैं। इसलिए प्रदेश में अब से सभी जगह न्‍यायालय की तय गाइडलाइन के अनुसार ही लाउड स्पीकर का इस्‍तेमाल किया जाएगा, जो नहीं करेगा उस पर शासन की कार्रवाई होगी ।’

ग्‍वालियर के सिरसौद गांव के लोग खुद ही लाउडस्पीकर उतारते हुए देखे गए। जब एसडीओपी संतोष पटेल ने इस संबंध में यहां के लोगों को समझाया तो स्कूल के पास मस्जिद पर लगे लाउड स्पीकर को खुद यहां के लोगों ने मिलकर हटाया। इसी प्रकार से अन्‍य जगहों पर भी लाउडस्‍पीकर हटवाने के लिए प्रशासन ने समझाया। यदि लोग नहीं मानेंगे तो प्रशासन सख्ती करेगा।

ये है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

उच्‍चतम न्‍यायालय ने 18 जुलाई 2005 को दिए गए निर्णय में कहा, ‘हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती। शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। किंतु कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।’

न्‍यायालय के इस निर्णय में आगे कहा गया, ‘लाउडस्पीकर से जबरदस्ती शोर सुनने को बाध्य करना दूसरों के शांति और आराम से प्रदूषणमुक्त जीवन जीने के अनुच्छेद-21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 19(1)ए में मिला अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है। इसलिए सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रावधान करे।’

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