कांग्रेस को राजस्थान में मुस्लिम तुष्टीकरण करना महंगा पड़ा। गहलोत सरकार के ‘मुस्लिम-प्रेम’ से त्रस्त हिंदुओं ने जाति से ऊपर उठकर मतदान किया और भाजपा को एक बार फिर से सत्ता सौंप दी। यह परिणाम उन नेताओं के लिए एक सबक है, जो जाति और मजहब की राजनीति करते हैं
राजस्थान विधानसभा चुनाव के परिणाम जनता की अपेक्षा के अनुरूप ही देखने को मिले। अशोक गहलोत के लाख प्रयासों के उपरांत भी कांग्रेस प्रदेश में हर बार सत्ता बदलने की परंपरा नहीं बदल पाई। एक बार फिर कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा। राजस्थान में 25 नवंबर को प्रदेश की 200 में से 199 सीटों पर चुनाव हुए। भाजपा को 115 सीटें मिली हैं। वहीं कांग्रेस 108 से घटकर 69 सीटों पर ही सिमट गई। प्रदेश के मतदाताओं ने तीसरे मोर्चे के नाम पर नेतागिरी का दंभ भरने वाले नेताओं को भी चुनाव में उनकी जगह दिखा दी है। बहुजन समाज पार्टी को मात्र दो सीटें मिलीं। वहीं सत्ता की चाबी अपने हाथ में होने का दावा करने वाले नागौर के सांसद व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल अपनी खुद की खींवसर विधानसभा सीट पर मात्र 2,059 मतों के अंतर से जीते। उनकी पार्टी के सभी उम्मीदवार हार गए।
संतों की मिली शक्ति
इस बार भाजपा के टिकट पर तिजारा से महंत बालकनाथ, पोकरण से महंत प्रताप पुरी, हवामहल से महंत बालमुकुंद आचार्य और सिरोही से संत ओटाराम देवासी विजयी हुए हैं। पहली बार एक साथ चार संत राजस्थान विधानसभा पहुंचे हैं। संत ओटाराम देवासी के छोड़कर शेष तीनों पहली बार विधायक बने हैं। इससे पता चलता है कि राजस्थान में हिंदू जन-मन क्या चाहता है।
जादूगर का जादू खत्म
राजस्थान में पराजय मिलते ही कांग्रेस में अंतर्कलह शुरू हो गई है। परिणाम आते ही सबसे पहले अशोक गहलोत के खिलाफ उनके ही सलाहकार रहे लोकेश शर्मा ने मोर्चा खोला। लोकेश शर्मा ने ‘एक्स’ पर लिखा ‘‘यह कांग्रेस की नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री गहलोत की हार है।’’ इसके बाद उन्होंने एक अन्य पोस्ट में कथित लाल डायरी का हवाला देकर प्रश्न खड़ा किया, ‘‘यही बात गहलोत के बेटे वैभव गहलोत ने भी कही थी, तब हंगामा क्यों नहीं हुआ।’’ लोकेश शर्मा के बाद पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी आत्मचिंतन की बात कही है। सनातन विरोध को लेकर कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने भी अपनी ही पार्टी के नेताओं को निशाने पर लिया है।
लोकेश शर्मा ने ‘एक्स’ पर पहली पोस्ट में लिखा, ‘‘लोकतंत्र में जनता ही माई-बाप है और जनादेश शिरोधार्य है, विनम्रता से स्वीकार है। मैं नतीजों से आहत जरूर हूं, लेकिन अचंभित नहीं हूं। कांग्रेस पार्टी राजस्थान में निसंदेह रिवाज बदल सकती थी, लेकिन अशोक गहलोत जी कभी कोई बदलाव नहीं चाहते थे। यह कांग्रेस की नहीं, बल्कि अशोक गहलोत जी की हार है। गहलोत के चेहरे पर, उनको फ्री हैंड देकर, उनके नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव लड़ा और उनके अनुसार प्रत्येक सीट पर वे स्वयं चुनाव लड़ रहे थे। न उनका अनुभव चला, न जादू और हर बार की तरह कांग्रेस को उनकी योजनाओं के सहारे जीत नहीं मिली और न ही अथाह पिंक प्रचार काम आया।’’
उन्होंने लिखा है, ‘‘तीसरी बार लगातार सीएम रहते हुए गहलोत ने पार्टी को फिर हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया। आज तक पार्टी से सिर्फ लिया ही लिया है, लेकिन कभी अपने रहते पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं करवा पाए गहलोत। आलाकमान के साथ फरेब, ऊपर सही तथ्य न पहुंचने देना, किसी को विकल्प तक न बनने देना, अपरिपक्व और अपने फायदे के लिए जुड़े लोगों से घिरे रहकर आत्ममुग्धता में लगातार गलत निर्णय और आपाधापी में फैसले लेते रहना, तमाम फीडबैक और सर्वे को दरकिनार कर अपनी मनमर्जी और अपने पसंदीदा प्रत्याशियों को उनकी स्पष्ट हार को देखते हुए भी टिकट दिलवाने की जिद। आज के ये नतीजे तय थे। मैं स्वयं मुख्यमंत्री को पहले बता चुका था, कई बार आगाह कर चुका था, लेकिन उन्हें कोई ऐसी सलाह या व्यक्ति अपने साथ नहीं चाहिए था जो सच बताए।’’
उन्होंने आगे लिखा, ‘‘25 सितंबर की घटना भी पूरी तरह से प्रायोजित थी जब आलाकमान के खिलाफ विद्रोह कर अवमानना की गई और उसी दिन से शुरू हो गया था खेल।’’ लोकेश शर्मा के बयान पर पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा, ‘‘मैंने मुख्यमंत्री के सलाहकार का बयान देखा है। उन्होंने जो बोला है, वह आश्चर्यजनक है। वह इसलिए कि बयान मुख्यमंत्री के ओएसडी का है। चिंता का विषय भी है। पूरी उम्मीद है कि पार्टी कहीं न कहीं इस पर ध्यान देगी कि यह क्यों कहा गया? क्या सच है, क्या झूठ है? हम लोग चाहते थे कि सरकार दोबारा बने। इसके लिए हम सब लोगों ने जितना हो सके पूरी ताकत लगाकर काम किया, फिर भी हम कामयाब नहीं हो सके। परंपरा को तोड़ने के लिए हमने बहुत मेहनत की, हर संभव कोशिश करने के बावजूद हम कामयाब नहीं हो सके। यह चिंता का विषय है। हर बार हम सरकार बनाने के बाद उसे वापस नहीं ला पाते हैं। इस बार दोबारा वही हुआ। इस बात का हम सबको खेद है। इस पर हमें आत्मचिंतन करना पड़ेगा।’’
लोकेश शर्मा ने ‘एक्स’ पर एक और पोस्ट में लिखा, ‘‘जो बात मैंने चुनाव परिणाम आने के बाद रखी, उसे अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत तक कह चुके हैं। इस बात का जिक्र कथित लाल डायरी के राजेंद्र गुढ़ा द्वारा चुनाव से पूर्व उजागर वायरल पन्ने में भी किया गया है। मैंने कोई नई बात तो की नहीं है, जिससे इतना ज्यादा हंगामा बरप रहा है।’’ सांगोद से विधायक रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भरत सिंह कुंदनपुर ने लोकेश शर्मा के बयानों पर सहमति जताई। भरत सिंह ने कहा, ‘‘जो सीएम का ओएसडी कह रहा है, वह बात मैंने पहले ही कही थी। जब खरगे जी आए थे, अशोक गहलोत हट जाते और सचिन पायलट सामने आ जाते तो परिस्थितियां अलग होतीं।’’
चुनाव से कुछ माह पहले ही वागड़ अंचल में अस्तित्व में आई भारतीय आदिवासी पार्टी (भाआपा) के तीन प्रत्याशी जीतने में सफल रहे। हालांकि भाआपा पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी के नाम से मैदान में उतरी थी और उसके दो विधायक जीते थे। उन्हीं दोनों विधायकों ने भारतीय आदिवासी पार्टी के नाम से नई पार्टी का गठन किया था। इस बार आठ निर्दलीय भी जीते हैं, इनमें एक कांग्रेस के व सात भाजपा के बागी हैं। इस बार कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत और भाजपा को 41.69 प्रतिशत मत मिले हैं। बहुजन समाज पार्टी को 1.82 प्रतिशत, वहीं राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को 2.39 प्रतिशत मत ही मिल पाए हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रति जनता में इतनी अधिक नाराजगी थी कि सरकार के 17 मंित्रयों सहित विधानसभा अध्यक्ष, सरकार के सचेतक तक चुनाव हार गए। मुख्यमंत्री सहित 26 मंत्री मैदान में थे। यही नहीं, अशोक गहलोत व सचिन पायलट की जीत का अंतर भी काफी कम हुआ है।
हारा मुस्लिम तुष्टीकरण
राजस्थान में कांग्रेस की हार मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों का भी परिणाम है। कांग्रेस सरकार ने सनातन की घोर उपेक्षा की। पिछली बार गहलोत सरकार बनते ही मुस्लिम तुष्टीकरण का क्रम शुरू हो गया था, जो पांच साल तक चलता रहा। गोकशी, मुस्लिम आक्रामकता, पलायन, लव जिहाद, मंदिरों पर हमले और जमीन जिहाद के एक के बाद एक कई मामले सामने आए। हनुमान जयंती, रामनवमी की शोभायात्राओं और कांवड़ यात्राओं पर पथराव हुआ, धार्मिक कार्यक्रमों में रुकावट पैदा की गई। हिंदुओं पर झूठे मुकदमे दर्ज किए गए। कांग्रेस के संरक्षण के चलते ही उदयपुर में जिहादियों ने कन्हैया लाल की नृशंस हत्या की। पांच साल में जिहादी तत्वों ने कई हिंदू युवकों की हत्या की, लेकिन सरकार ने इनके परिजनों को उचित मुआवजा नहीं दिया। कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के तीन बड़े शहरों में नगर निगमों को भी मुस्लिम तुष्टीकरण के आधार पर बांट दिया। परिणाम यह हुआ कि पहली बार मुस्लिम समुदाय के पार्षद बड़ी संख्या में चुनकर निकायों में पहुंचे। कांग्रेस की हिंदू-विरोधी नीतियों के चलते बहुसंख्यक हिंदू समाज में असुरक्षा का भाव और गहरा होता गया। इसकी परिणति इस बार विधानसभा चुनाव में हिंदू ध्रुवीकरण के रूप में हुई। यह चुनावी मुद्दा बना। इसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा।
भाजपा ने इस बार चार संतों को चुनाव मैदान में उतारा था। अलवर जिले की तिजारा सीट से महंत बालक नाथ, जैसलमेर जिले की पोकरण सीट से प्रताप पुरी, जयपुर के हवामहल से महंत बालमुकुंद आचार्य और सिरोही विधानसभा सीट से ओटाराम देवासी को उम्मीदवार बनाया। ये चारों ही चुनाव जीते। भाजपा ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया, इसके विपरीत कांग्रेस ने 15 मुस्लिम चेहरों पर दांव खेला था। इनमें से पांच जीते और 10 की पराजय हुई। वहीं भाजपा के एक बागी यूनुस खान निर्दलीय चुनाव जीते।
भाजपा महिला अत्याचार, भ्रष्टाचार, किसान कर्जमाफी, बेरोजगारी और मुस्लिम तुष्टीकरण जैसे मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत तमाम भाजपा नेताओं ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। इसके विपरीत कांग्रेस के किसी भी नेता के पास इनका जवाब नजर नहीं आया, उल्टे खुद अशोक गहलोत लाल डायरी विवाद में बुरी तरह फंस गए। अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले लोगों को सात गारंटी देकर वादा किया था कि फिर से सरकार बनने पर जनता को इन सात योजनाओं के तहत लाभ पहुंचाया जाएगा।
कांग्रेस की आत्मघाती नीतियां
राजस्थान में कांग्रेस की आत्मघाती नीतियां भी उसकी पराजय का कारण बनी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे पांच साल तक अपनी सरकार बचाने की जद्दोजहद में लगे रहे। सचिन पायलट से उनकी टकराहट चलती रही। 2020 में तो यह लड़ाई तब और बढ़ गई जब पायलट ने बगावती तेवर अपना लिए। पायलट कई विधायकों को अपने साथ लेकर मानेसर चले गए। उस दौरान कयास लगने लगे थे कि मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य की तरह ही पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
एक वक्त ऐसा भी आया जब अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को नाकारा और निकम्मा तक कह दिया। हालांकि गांधी परिवार के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत तो हो गया, लेकिन पायलट को उपमुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद से तो समय-समय पर दोनों ही नेताओं के बीच तल्खी चलती रही। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सचिन पायलट ने ही एक बार फिर अपनी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला और ‘पेपर लीक’ विवाद को लेकर राज्य में आंदोलन छेड़ दिया। यानी गहलोत और पायलट के बीच लगातार चली तकरार से जनता त्रस्त हो चुकी थी। कांग्रेस के अंदर भी इन दोनों नेताओं की वजह से बड़े स्तर पर गुटबाजी देखने को मिली। पूरी पार्टी दो गुटों में बंटी रही- गहलोत गुट और पायलट गुट। चुनावी नतीजों में उस तल्खी का असर साफ दिखाई दिया है।
कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार
पूरे चुनाव में भाजपा महिला अत्याचार, भ्रष्टाचार, किसान कर्जमाफी, बेरोजगारी और मुस्लिम तुष्टीकरण जैसे मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत तमाम भाजपा नेताओं ने इन मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। इसके विपरीत कांग्रेस के किसी भी नेता के पास इनका जवाब नजर नहीं आया, उल्टे खुद अशोक गहलोत लाल डायरी विवाद में बुरी तरह फंस गए। अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले लोगों को सात गारंटी देकर वादा किया था कि फिर से सरकार बनने पर जनता को इन सात योजनाओं के तहत लाभ पहुंचाया जाएगा। मगर प्रदेश की जनता ने उनके वादों पर ध्यान ही नहीं दिया।
मतदाताओं का कहना था कि पांच साल सत्ता में रहने के दौरान जो करना था कर दिया, अब सब चुनावी वादे हैं। गहलोत का घमंड, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बड़बोले बयान व उनके रिश्तेदारों का प्रशासनिक अधिकारी पदों पर चयन होना, मंत्री सुभाष गर्ग का भर्ती परीक्षाओं के ‘पेपर लीक’ करवाने में नाम आना, मंत्री शांति धारीवाल का विधानसभा में महिलाओं के प्रति अशोभनीय वक्तव्य, खान मंत्री प्रमोद जैन भाया के खुलेआम भ्रष्टाचार के कारनामे, राजेंद्र गुढ़ा का लाल डायरी प्रकरण, महेश जोशी, धर्मेंद्र राठौर द्वारा आलाकमान के निर्देशों की अवहेलना करने जैसे मुद्दों ने कांग्रेस की छवि धूमिल कर दी थी।
मोदी का प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सवा साल में विभिन्न कार्यक्रमों और सभाओं के माध्यम से 140 विधानसभा क्षेत्रों के लोगों से संवाद स्थापित किया। इनमें से भाजपा को 98 सीटों पर जीत मिली। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने 19 सीटों पर रोड शो किया, जिनमें से 11 में भाजपा को सफलता मिली।
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