देहरादून: यूपी में बिकने वाली वाली हलाल मार्का वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से देशभर में हलाल आर्थिकी पर बहस शुरू हुई है। यूपी के बाद अब बीजेपी शासित अन्य राज्य भी हलाल मार्का वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। उत्तराखंड में भी धामी सरकार इस विषय पर गहराई से मंथन कर रही है।
जानकारी के अनुसार धामी सरकार ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को लेकर व्यस्त थी। इसलिए उसने हलाल मार्का विषय को अभी तक किनारे रखा हुआ था, लेकिन अब इस पर मंथन शुरू हो गया है। ऐसा माना जा रहा है कि देवभूमि उत्तराखंड में हलाल मार्का वस्तुओं को प्रतिबंध के दायरे में लाया जाएगा।
उत्तराखंड सरकार ने कुछ महीने पहले मांस बेचने और परोसने वाले दुकानदार और रेस्त्रां आदि को निर्देशित भी किया था कि वो अपने कारोबार स्थल पर स्पष्ट रूप से दर्शाएं कि बिकने वाली मांस सामग्री हलाल है या झटका! लेकिन इस आदेश का अनुपालन सही ढंग से नहीं हुआ जबकि इस बारे में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने उत्तराखंड शासन को कड़ा पत्र भी लिखा था और अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने इस बारे में सभी जिला अधिकारियो, सीएमओ और खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को भी निर्देशित किया हुआ है।
अब यूपी में हलाल मार्का वस्तुएं बिक्री से प्रतिबंधित कर दिए जाने और इस बारे में योगी सरकार द्वारा पुलिस में एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद से ये मामला बीजेपी राज्यों में भी गर्मा रहा है। जानकारी के अनुसार हिंदू संगठन हलाल मार्का के विरोध में तो है कि सिख संप्रदाय भी इस पर प्रतिबंध चाहते हैं।
हलाल क्या होता है ?
‘हलाल’ एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है कानून सम्मत या जिसकी इजाज़त शरिया (इस्लामिक कानून) में दी गई हो। ‘हराम’ उसका ठीक उलट होता है, यानि जो चीज़ इस्लाम में वर्जित है। हलाल शब्द विशेष रूप से इस्लामी आहार कानूनों से जुड़ा हुआ है।
मांस के संबंध में इसे देखें तो यह एक ऐसे आपूर्तिकर्ता से आना चाहिए जो हलाल प्रथाओं का उपयोग करता है। ‘दबीहा’ सभी मांस स्रोतों के लिए वध की निर्धारित पद्धति है। मछली और अन्य समुद्री जीवन को छोड़कर इस्लामी कानून के अनुसार- जानवरों को मारने की इस विधि में तेज, गहरा चीरा बनाने के लिए एक अच्छी तरह से धारदार चाकू का उपयोग किया जाता है जो गले के सामने, कैरोटिड धमनी, श्वासनली और गले की नसों को काट देता है। एक जानवर का सिर जिसे हलाल विधियों का उपयोग करके वध किया जाता है, को चीरा लगाने के बाद छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा ‘अनुमति प्राप्त जानवरों को’ अल्लाह के नाम पर इस्लामिक आयत बिस्मिल्लाह के उच्चारण पर वध करना चाहिए।
हलाल का दायरा
हलाल संकल्पना खाने-पीने की चीज़ों, मीट प्रोडक्ट्स, कॉस्मेटिक्स, दवाइयां, खाने में पड़ने वाली चीज़ों- सब पर लागू होता है। लिपस्टिक से लेकर दवाइयों तक सब कुछ ‘हलाल’ और ‘हराम’ की श्रेणी में बांटे जा सकते हैं। हलाल और हराम शब्द क़ुरान में इस्तेमाल की जाने वाली सामान्य शर्तें हैं जो कानूनन या अनुमत और गैरकानूनी या निषिद्ध की श्रेणियों को दर्शाती हैं। अब तो शेयर मार्केट के स्टॉक, प्रॉपर्टी और डेटिंग साइट तक हलाल होने लगे है।
कई विमानन सेवाएं, स्विगी-जोमैटो और फूड चेन्स तक इसके बिना काम नहीं करती हैं। बैन से पूर्व अकेले यूपी में हलाल सर्टिफिकेट लेने वाले होटलों व रेस्तरां की संख्या लगभग 1,400 है। यहां हलाल सर्टिफाइड उत्पादों का बाजार 30 हजार करोड़ रुपये का था। ऐसे में इससे कहीं अधिक कमाई का लालच कंपनियों को है। इसका प्रभाव ऐसे समझा जा सकता है कि वर्ष 2020 में योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि को भी OIC देशों में निर्यात के लिए हलाल सर्टिफिकेट लेना पड़ा था। आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन के तहत आने वाले 57 देशों में उत्पाद बेचने के लिए यह सर्टिफिकेट जरूरी है।
आचार्य बालकृष्ण को सफाई देनी पड़ी थी कि आयुर्वेदिक दवाओं के लिए हलाल सर्टिफिकेट लिया गया है, जिनकी अरब देशों में काफी मांग है। मलेशिया में दिसंबर 2010 में मलेशियाई जैव प्रौद्योगिकी सूचना केंद्र (MABIC) और इंटरनेशनल हलाल इंटीग्रिटी एलायंस (IHIA) द्वारा आयोजित “एग्री-बायोटेक्नोलॉजी: शरिया कम्प्लायंस” नामक एक सम्मेलन में, प्रतिभागियों ने GM फसलों और उत्पादों को भी हलाल मानने का संकल्प लिया है।
इतना ही नहीं अब तो हलाल हॉलिडेज़ तक प्रचलित हो रहे हैं । हलाल हॉलिडेज़ का संबंध ऐसी जगहों से हैं, जहां मुसलमान अपनी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं से समझौता किए बगैर जा सकते हैं। 2023 ग्लोबल मुस्लिम ट्रैवल इंडेक्स में अधिकांश मुस्लिम देशों का दबदबा है। शीर्ष स्थान पर इंडोनेशिया और मलेशिया काबिज़ है। लिस्ट में केवल दो गैर-मुस्लिम देश सिंगापुर (11वां स्थान) और ब्रिटेन (20वां स्थान) ने जगह बनाई है। ग्लोबल मुस्लिम ट्रैवल इंडेक्स के मुताबिक 2022 में हलाल ट्रैवल व्यवसाय 220 बिलियन डॉलर का हो चुका है।
हलाल अर्थव्यवस्था का आकार
दुबई चैंबर ऑफ कॉमर्स ने अनुमान लगाया है कि हलाल खाद्य उपभोक्ता खरीद के वैश्विक उद्योग मूल्य में 2013 में 1.1 खरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो वैश्विक खाद्य और पेय बाजार के 16.6 प्रतिशत के लिए 6.9 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि के साथ है।
हलाल काउंसिल ऑफ इंडियाके मुताबिक दुनियाभर में रह रहे 1.6 अरब मुस्लिम दुनिया की जनसंख्या का 23 फीसद हैं, यही नहीं, रॉयटर्सके मुताबिक, पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों के बिजनेस में 12 फीसद हिस्सा हलाल फूड का है। ऐसे में कंपनियों को ये लगता है कि हलाल की बढ़ती हुई मांग को नजरंदाज करना एक बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान होगा । हलाल सर्टिफिकेशन के नाम पर अरबों की कमाई हो रही है। अकेले भारत में लगभग 400 एफएमसीजी कंपनियों ने हलाल सर्टिफिकेट लिया है। लगभग 3200 उत्पादों का यहां सर्टिफिकेशन हुआ है। यह सर्टिफिकेट लेने की कतार में देशभर के फाइव स्टार होटल से लेकर रेस्टोरेंट तक शामिल हैं।
हलाल सर्टिफिकेट के एवज में कंपनियों को बड़ी रकम का भुगतान करना पड़ता है। पहली बार की फीस 26 हजार से 60 हजार रुपये तक है। प्रत्येक उत्पाद के लिए 1,500 रुपये तक अलग से देने पड़ते हैं। सालाना नवीनीकरण फीस 40 हजार रुपये तक है। इसके अलावा कन्साइनमेंट सर्टिफिकेशन व ऑडिट फीस अलग से है। इसमें जीएसटी अलग से शामिल है। यानी एक कंपनी को एक बार में लगभग दो लाख रुपये देने पड़ते हैं। इसके बाद सालाना नवीनीकरण अनिवार्य है।
हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया के मुताबिक हलाल उत्पादों की ग्लोबल स्तर पर हिस्सेदारी 19% की है। ये बाजार करीब सात खरब डॉलर यानी 7.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का है। भारतीय कंपनियों और होटलों की हिस्सेदारी करीब 80 हजार करोड़ रुपये है। हलाल उत्पादों के कारोबार में केवल मांस ही नहीं, खाने की सारी चीजें, पेय पदार्थ और दवाएं भी शामिल हैं। ऐसे में कंपनियों को लगता है कि हलाल की बढ़ती मांग को नजरअंदाज करने से बड़ा नुकसान होगा।
भारत में हलाल सर्टिफिकेट कौन देता है ?
भारत में सरकारी संस्था ऐसा कोई सर्टिफिकेट जारी नहीं करती है। हलाल सर्टिफिकेट प्रमुख रूप से हलाल इंडिया प्रा. लि., हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्रा. लि., जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र (जमीयत उलमा-ए-हिंद की एक राज्य इकाई) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट देते हैं। इस्लामिक देशों में निर्यात के लिए उत्पाद का हलाल सर्टिफाइड होना जरूरी है। इसकी देखादेखी देश में भी हलाल सर्टिफाइड उत्पादों की मांग बढ़ गई। इसका फायदा सर्टिफाई करने वाली कंपनियां उठा रही हैं।
हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियों के लिए पंजीकरण अनिवार्य
हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियों के लिए पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इसी साल 6 अप्रैल को आदेश जारी किया था कि मौजूदा हलाल सर्टिफिकेशन कंपनियों को छह महीने के भीतर आई-सीएएस (भारतीय अनुरूपता मूल्यांकन योजना) हलाल के लिए राष्ट्रीय प्रमाणन निकाय प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीसीबी) से मान्यता लेना अनिवार्य है। डीजीएफटी के निर्देशों के अनुसार मीट को हलाल सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही उसके उत्पादकों को निर्यात करने की अनुमति दी जाती है।
हलाल कहां कहां है बैन ?
विश्व के कई देशों में हलाल पर बैन है । इनमें स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, आइसलैंड, स्लोवेनिया, बेल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैंड शामिल हैं। विगत माह उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी हलाल सर्टिफिकेशन वाले उत्पादों पर बैन लगा दिया है हांलाकि इस बैन से निर्यात होने वाले उत्पादों को बाहर रखा गया है ।
हलाल मार्का के पीछे का असली मकसद आर्थिकी दबदबा और आतंकी फंडिंग ?
हलाल सर्टिफिकेट का असली मकसद वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इस्लामी दबदबा कायम करने का है। पुरजोर कोशिश इस बात की है कि इस्लाम को विशिष्ट, शुद्ध और दूसरों से अलग दिखाया जाये। इस तरह से मुसलमानों को किसी भी देश की गैर मुस्लिम आबादी के साथ समरस होकर जीवन जीने में बाधा पैदा की जाती है। हलाल सर्टिफिकेट के जारी करने में गैर मुस्लिमों की कोई भूमिका ही नहीं है। सर्टिफिकेट से मिली धनराशि से सिर्फ उनके मजहबी कार्य ही होते है। भारत में तो अक्सर देखा गया है कि हलाल सर्टिफिकेट से मिली धनराशि को आतंकवादियों के मुकदमों को लड़ने के लिए प्रयोग में लाया गया है। हलाल सर्टिफिकेट के जरिए इस्लामी धार्मिक मान्यताओं को गैर मुस्लिमों पर जबरन थोपने की निकिृष्ट कोशिश विश्वभर में जोरों पर है। निजी कंपनियों को तो अपने आर्थिक लाभ के आगे कुछ दिखता ही नहीं है। भले ही उस कार्य से देश और समाज को कितना ही नुकसान क्यों न हो रहा हो। ऐसे में सरकारों को या तो हलाल सर्टिफिकेट को तुरंत बैन करना चाहिए या यह कार्य अपने हाथ में ले लेना चाहिए। केंद्र सरकार से अपील है कि OIC के सभी 57 देशों से वार्ता करके उत्पादों पर हलाल सर्टिफिकेट होने की अनिवार्यता को खत्म करवाना चाहिए जो कि इन देशों ने अपने यहां निर्यात करने के लिए अनिवार्य शर्त बना रखी है ।
लेखक, आशुतोष शुक्ला, पत्रकार
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