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होम भारत छत्तीसगढ़

पराजय के बाद उत्तर-दक्षिण भेद की रणनीति?

मतदाता कांग्रेस को ठुकरा दें, तो कांग्रेस जनता को ही भला बुरा कहने लगती है। वोटर के लिए 'राक्षस', हिंदी पट्टी को 'गोमूत्र प्रदेश' और 'अनपढ़' कहने वाले अब उत्तर दक्षिण भेद पर उतारू

by जगन्निवास अय्यर
Dec 10, 2023, 10:45 am IST
in छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान
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कुछ माह पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ सदस्य और गांधी-नेहरू खानदान के भरोसेमंद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने लोकतांत्रिक राजनीति का एक प्रमुख यद्यपि प्राय: अव्यक्त-नियम तोड़ा। वह यह कि मतदाता को कभी गाली न दें।
लेकिन सुरजेवाला ने यही किया।

हार के बाद का विलाप शुरू हो गया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की दनदनाती विजय तथा तेलंगाना व मिजोरम में इसके बढ़ने से कांग्रेस, उसका पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) और ‘उदारवादी’ ढोंगी देश के मतदाताओं के तिरस्कार पर उतारू हो गए हैं। राहुल गांधी के एक करीबी सहयोगी और कांग्रेस पार्टी के प्रमुख सदस्य ने भारत के उत्तरी भाग में रहने वाले मतदाताओं के खिलाफ अनाप-शनाप बोलकर चिंगारी भड़काने का प्रयास किया है। इस व्यक्ति के एक ट्वीट का तात्पर्य यह है कि देश के दक्षिणी भाग के मतदाता अपने कथित रूप से असभ्य उत्तरी समकक्षों की तुलना में अधिक ‘परिष्कृत’ हैं। संकेत मिलते ही इकोसिस्टम तुरन्त हरकत में आ गया।

एक बानगी देखिए। ‘‘मुझे पता है कि सहसंबंध कार्य-कारण नहीं है, बल्कि वे राज्य हैं जहां साक्षरता कम है, महिला साक्षरता कम है, महिला श्रम शक्ति में भागीदारी कम है, हिंदी का अधिक उपयोग है, जनसंख्या अधिक है, उच्च प्रजनन क्षमता और मांस खाने को लेकर कम सहनशीलता के कारण लोग भाजपा को वोट देना पसंद करते हैं।’ विश्लेषण की शक्ल में यह झूठ एक लेखक और पत्रकार के मुंह से निकला है, जिनकी पत्रिका घोर मोदी विरोधी है। पत्रकारिता के पतन का एक और सदस्य, जिस पर चीनी संरक्षण स्वीकार करने का आरोप है, ‘काउ-बेल्ट के हिंदुत्व के नशे में धुत मतदाताओं’ के प्रति अपनी अवमानना व्यक्त करने में भी पीछे नहीं था।

उत्तर-दक्षिण विभाजकता को इस समय हवा देने का कारण क्या हो सकता है? इसका आह्वान करने वाली कांग्रेस नई बोतल में पुरानी आर्य-द्रविड़ शराब पुन: परोसना चाहती है, जिसे वह येन केन प्रकारेण सत्ता में वापसी की कुंजी मान बैठी हो, किन्तु जो केवल उसके विनाश की ही पटकथा लिखेगी।

पिछले कुछ दिनों में ‘उत्तर भारतीयों’ पर लगाए गए सैकड़ों अप्रिय लेबलों में से ये निश्चित रूप से गिने-चुने दो उदाहरण हैं। क्षोभ की बात यह है कि भारत के उन प्रदेशों, जहां हिंदी बोली जाती है, के मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए पहली बार खलनायक निरूपित नहीं किया गया है। कुछ माह पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ सदस्य और गांधी-नेहरू खानदान के भरोसेमंद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने लोकतांत्रिक राजनीति का एक प्रमुख यद्यपि प्राय: अव्यक्त-नियम तोड़ा। वह यह कि मतदाता को कभी गाली न दें। लेकिन सुरजेवाला ने यही किया।

सुरजेवाला ने बीते 9 वर्षों में मोदी जी के नेतृत्व वाले भाजपा के मतदाताओं को कोसते हुए कहा, ‘‘भाजपा और जननायक जनता पार्टी (जजपा) के लोग ‘राक्षस’ हैं। जो लोग इस पार्टी को वोट देते हैं और उनका समर्थन करते हैं, वे भी ‘राक्षस’हैं।’’ एक बच्चा भी जानता है कि हिंदू पौराणिक कथाओं में राक्षसों को घृणित प्राणियों के रूप में रखा गया है, जो धार्मिक, नैतिक और सभ्य व्यवहार के नियमों के अनुरूप नहीं चलते हैं। लेकिन तनिक भी सामान्य सोच वाला व्यक्ति क्या भाजपा के मतदाताओं के बारे में ऐसा कह सकता है? सभी योग्य 65 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 45 प्रतिशत ने 2019 में नरेंद्र मोदी को फिर से चुना। इनमें रिकॉर्ड संख्या में हाशिए पर रहने वाले जनजातीय बंधु, महादलित और गरीब लोग सम्मिलित हैं। इससे भी अधिक वे केवल तथाकथित काऊ-बेल्ट प्रदेश तक ही सीमित नहीं थे। तेलंगाना में, जो एक दक्षिणी प्रदेश है, भाजपा के आठ विधायक जीतकर आए हैं।

आंध्र प्रदेश में भाजपा के लगभग कांग्रेस के बराबर ही वोट हैं, जहां से भाजपा के 25 सांसद और बीसियों विधायक हैं और वहां भाजपा ने पूरे पांच वर्ष तक शासन भी किया है। सबसे अधिक ‘दक्षिणी और द्रविड़’ पहचान का भोंपू बजाने वाले तमिलनाडु में भी भाजपा के 4 विधायक हैं और कांग्रेस के समान वोट शेयर हैं। पुदुच्चेरी में लगभग 14 प्रतिशत वोट के साथ भाजपा ने अपना आधार बनाया है। पूर्वोत्तर में भाजपा अब एक शक्ति है। असम और त्रिपुरा में इसकी सरकारें हैं और अन्य राज्यों में इसके सहयोगी दल हैं, जिनके साथ यह सत्ता साझा करती है। इस समय उत्तर-दक्षिण विभाजकता को हवा देने का कारण क्या हो सकता है? इसका आह्वान करने वाली कांग्रेस नई बोतल में पुरानी आर्य-द्रविड़ शराब पुन: परोसना चाहती है। जिसे वह येन केन प्रकारेण सत्ता में वापसी की कुंजी मान बैठी है, वही उसके विनाश की पटकथा लिखेगी।

कांग्रेस के ‘नेताओं’ और पिछलग्गुओं ने उत्तर के मतदाताओं पर ‘साम्प्रदायिक’,‘अशिक्षित’ व ‘पिछड़े’ होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है, लेकिन क्या इस बूढ़ी और जर्जर हो चुकी पार्टी को अहसास भी है कि यह ‘उत्तरी हवा’ धीरे-धीरे दक्षिण की ओर भी बढ़ रही है? भाजपा ने तीन हिंदी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को अपमानजनक ढंग से परास्त कर दिया है। सांत्वना के लिए कांग्रेस को तेलंगाना में एक बड़ी जीत हासिल हुई है। इस इकलौते राज्य में जीत का स्वाद चखते समय कांग्रेस को उन कारणों का विश्लेषण करना चाहिए था कि वह उत्तर में क्यों हार रही है, खासकर मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में, जहां वह सत्ता हासिल करने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रही थी। इसके बजाय पार्टी व उसके दरबारी वफादार ‘प्रगतिशील दक्षिण बनाम साम्प्रदायिक उत्तर’ बहस में शामिल हो गए।

इतना ही काफी नहीं था, तो तमिलनाडु के द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम के सांसद सेंथिल कुमार ने संसद में उत्तरी प्रदेशों का ‘गोमूत्र’ प्रदेशों के रूप में कुत्सित वर्णन किया। तीव्र प्रतिक्रिया के बाद अपने अपशब्दों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी तो पड़ी ही, द्रमुक और इंडी गठबंधन के लोग बगले झांकते हुए, खुद को द्रमुक सांसद की अभद्र गाली से ‘असहमत’, ‘अलग करते हुए’ इधर-उधर भागते नजर आ रहे हैं। कारण समझना कठिन नहीं है। ‘गोमूत्र प्रदेश’ केवल एक दक्षिणी सांसद की अविचारित उक्ति मात्र नहीं है- यह गर्हित टिप्पणी न केवल 2024 के लोकसभा चुनावों में इंडी गठबंधन का सूपड़ा साफ करने, बल्कि समूचे उत्तर भारत से कांग्रेस की बची-खुची चादर को तार-तार करने की संभावना से भरा हुआ है।

कर्नाटक में भाजपा एक शक्तिशाली पार्टी बनी हुई है। कांग्रेसी भूल गए हैं कि भगवा पार्टी ने 2019 में 28 लोकसभा सीटों में से 25 सीटें जीती थीं। इस साल की शुरुआत में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद भाजपा के अगले आम चुनावों में वापसी करने की संभावना है। अगर उसे 25 सीटें न मिलें, तो भी अगले वर्ष चुनावी चार्ट में उसके शीर्ष पर रहने में आश्चर्य नहीं होगा। तमिलनाडु में भी प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई की सक्रिय राजनीति की बदौलत पार्टी को काफी सराहना मिल रही है।

कांग्रेस ही नहीं, उसके चहेते इकोसिस्टम की हरकतों पर भी ध्यान दें। उसके पिछलग्गू पत्रकारों-बुद्धिजीवियों ने उत्तर-दक्षिण विभेद को तीव्र करने की ठान रखी है। कुछ प्रचारित कर रहे हैं कि ‘दक्षिण जागरूक है’ और उत्तर बहुत पीछे है’। कुछ लोग बताने में लगे हैं कि ‘दक्षिण-उत्तर सीमा रेखा मोटी व स्पष्ट होती जा रही है।‘ यहां यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि उत्तर बनाम दक्षिण की मिथ्या धारणा काफी पहले कुख्यात और अवास्तविक प्रमाणित हो चुके ‘आर्य आक्रमण/ प्रवासन’ विचारधारा को फिर खड़ा करने का वामपंथी-मिशनरी प्रयास है, जिसका दावा है कि ‘गोरी चमड़ी वाले‘ आर्यों ने ‘काली चमड़ी वाले’ द्रविड़ों को दक्षिण की ओर धकेल दिया और भारतवर्ष नामक भूमि पर सांस्कृतिक रूप से उपनिवेश स्थापित किया। मुखर रूप से भले कांग्रेस का कोई नेता यह कहने का साहस न करे, पर पार्टी ने कभी इस विचारधारा को त्यागा नहीं है।

कांग्रेस की कहानी राजनीतिक और वैचारिक, दोनों मोर्चों पर समस्याग्रस्त है। राजनीतिक रूप से, यह कांग्रेस द्वारा एक और आत्मघाती कदम बढ़ाने का एक उत्कृष्ट मामला है, जहां एक राजनीतिक दल मतदाता के उद्देश्य, विचारधारा, अभिविन्यास और यहां तक कि उसकी शैक्षिक योग्यता पर ही सवाल खड़ा कर देता है। उत्तर बनाम दक्षिण की बहस इस तथ्य को देखते हुए भी लड़खड़ाती है कि भाजपा दक्षिण में एक उभरती हुई शक्ति है। इस विधानसभा चुनाव में उसने तेलंगाना में अपना वोट का भाग दोगुना कर लिया है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों में अधिक सीटें पाने की स्थिति में होगी।

इसी तरह कर्नाटक में भाजपा एक शक्तिशाली पार्टी बनी हुई है। कांग्रेसी भूल गए हैं कि भगवा पार्टी ने 2019 में 28 लोकसभा सीटों में से 25 सीटें जीती थीं। इस साल की शुरुआत में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद भाजपा के अगले आम चुनावों में वापसी करने की संभावना है। अगर उसे 25 सीटें न मिलें, तो भी अगले वर्ष चुनावी चार्ट में उसके शीर्ष पर रहने में आश्चर्य नहीं होगा। तमिलनाडु में भी प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई की सक्रिय राजनीति की बदौलत पार्टी को काफी सराहना मिल रही है।

विधानसभा चुनाव नतीजों के तुरंत बाद शुरू हुई उत्तर बनाम दक्षिण की बहस इस तथ्य को भी नजरअंदाज करती है कि 2014 के बाद इस तरह की घटना नहीं घटी है। 1977 के लोकसभा चुनाव में उत्तर में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का भले ही सफाया हो गया था, पर दक्षिण में उसने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था। जहां तक उत्तर बनाम दक्षिण के वैचारिक पहलू का सवाल है, राजनीति और इतिहास से अनभिज्ञ लोगों को कांग्रेस द्वारा इस नकली विभाजन को तूल देकर भारत पर ही प्रश्न चिह्न लगाते देखना दुर्भाग्यपूर्ण लग सकता है। लेकिन स्वयं को ‘आधुनिक’ भारत का निर्माता मानने वाली इस पार्टी के राष्ट्र विभाजक बनने तक की यह यात्रा एक दिन में नहीं हुई।

Topics: Chhattisgarhcow urine stateमहिला श्रम शक्तिमहिला साक्षरतागोमूत्र प्रदेशWomen Labor ForcerajasthanWomen LiteracyMadhya Pradeshराजस्थानमध्य प्रदेशछत्तीसगढ़
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