आम चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को तीन राज्यों में भाजपा से करारी पराजय मिली है। इससे यह सिद्व हो गया है कि सीधे मुकाबले में वह भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती। हिंदू विरोध, नकारात्मक राजनीति और अहंकार ने कांग्रेस के लिए आम चुनाव भी दुष्कर कर दिए हैं
जिस सतर्कता की आवश्यकता की बात पिछले पृष्ठ पर हुई, कहा जा सकता है कि उसका संकेत स्वयं प्रधानमंत्री ने दे दिया था। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद दिल्ली में पार्टी मुख्यालय पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण को याद करें। उन्होंने कहा था, ‘‘इस चुनाव में देश को जातियों में बांटने की बहुत कोशिशें हुईं। मैं लगातार कह रहा था कि मेरे लिए देश में चार जातियां ही सबसे बड़ी जातियां हैं। ये हैं- हमारी नारी शक्ति, युवा शक्ति, किसान और हमारे गरीब परिवार। इन चार जातियों को सशक्त करने से देश सशक्त होने वाला है। आज भी मेरे मन में यही भाव है। मैं अपनी माताओं-बहनों और बेटियों के सामने अपने युवा साथियों, किसान भाइयों के सामने, गरीब भाइयों के सामने नतमस्तक हूं।’’
यह अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है। कांग्रेस और उसका गठबंधन जाति के विषय को समाज में फूट डालने के उपकरण के तौर पर प्रयोग करता आ रहा है। एक सुनिश्चित वोट बैंक और बिखरे हुए अन्य मतदाता। फूट डालो और राज करो। लेकिन यह षड्यंत्र इतना सतही रहा कि वे लोग भी इसे आसानी से समझ गए, जिनके बारे में कांग्रेस के शीर्ष नेता संभवत: यह सोचते थे कि उन्हें तो जी भरकर ठगा जा सकता है। जातिगत जनगणना के शिगूफे को आखिर और किस रूप में देखा जा सकता है? वास्तव में समाज को जातियों में बांटना ही इसका एकमात्र उद्देश्य नहीं है।
जब कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन का प्रयास किया था, तब उसकी पूरी कोशिश यह थी कि इस विभाजन के नाम पर जनता में वैसा ही खून-खराबा हो, जैसा भारत और पाकिस्तान के विभाजन पर हुआ था। संभवत: वह यह मानती थी कि इससे जो टकराव पैदा होगा, वह समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा एकजुट होकर किसी राजनीतिक प्रश्न पर अपने राजनीतिक प्रत्युत्तर वोट के रूप में देने की संभावना समाप्त कर देगा। यह लोकतंत्र के नाम पर सत्ता का वह लालच है, जो किसी पाप से कम नहीं है।
रोचक बात यह है कि जिस उत्तर भारत को कांग्रेस के कई पीढ़ियों के नेताओं ने जातिवाद और भ्रष्टाचार की प्रयोगशाला बना रखा था और स्थिति यह कर दी थी कि ये दोनों चीजें आपस में जुड़ तक गई थीं, उसी उत्तर भारत ने कांग्रेस का यह हथकंडा ठुकरा दिया। यहां तो अपराध का निर्धारण भी जाति के आधार पर होने लगा था और भ्रष्टाचार का भी। बिहार के भीषण अकल्पनीय भ्रष्टाचार तक को जाति से जोड़कर देखने और दिखाने की कोशिश की गई थी। लेकिन अब इसी हिंदी पट्टी ने जातिवाद फैलाने के नए सिरे से किए गए प्रयासों को पूरी तरह ठुकरा दिया है। जब हिंदी भाषी लोगों ने जातिवाद का झुनझुना थाम कर स्वयं को विभाजित करने से इनकार कर दिया, तो वही हिंदी पट्टी उनके लिए घृणा का विषय हो गई। उसके लिए रोजाना नए से नए अपशब्द गढ़े जा रहे हैं।
‘‘इस चुनाव में देश को जातियों में बांटने की बहुत कोशिशें हुईं। मैं लगातार कह रहा था कि मेरे लिए देश में चार जातियां ही सबसे बड़ी जातियां हैं। ये हैं- हमारी नारी शक्ति, युवा शक्ति, किसान और हमारे गरीब परिवार। इन चार जातियों को सशक्त करने से देश सशक्त होने वाला है। आज भी मेरे मन में यही भाव है। मैं अपनी माताओं-बहनों और बेटियों के सामने अपने युवा साथियों, किसान भाइयों के सामने, गरीब भाइयों के सामने नतमस्तक हूं।’’ -प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जातिवाद क्यों फैलाना है? भारतीय जनता पार्टी और मोदी से दुश्मनी का इससे क्या संबंध है? यह प्रश्न और गंभीर है। जब कोई विकास की बात करेगा, सबका साथ और सबके विकास की बात करेगा, तो स्पष्ट रूप से जाति का प्रश्न गौण होता चला जाएगा। जाति का निर्धारण तो जन्म से पहले ही हो जाता है। जाति शब्द का अर्थ भी यही है- जहां जन्म लिया। लेकिन जन्म लेने के बाद जीवन में जो कुछ करना है, वह कर्म है, जिसका निष्कर्ष विकास है। अब चूंकि सरकार ने लगातार सारा ध्यान विकास, आर्थिक, शैक्षणिक और भौतिक उन्नति पर लगाया है, इसलिए विकास की गति को धीमा करने के लिए जाति का प्रश्न उठाना और उसे लेकर वैमनस्य पैदा करना कांग्रेस के लिए बहुत अनिवार्य हो जाता है। जातिगत जनगणना के नाम पर समाज को बांटने की कोशिशों का रहस्य यही है। एक और वोट पाना, दूसरी ओर समाज को विभाजित बनाए रखना और तीसरी विकास को पटरी से उतारना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन चार जातियों का वर्गीकरण किया, उनका आशय स्पष्ट तौर पर विकास की ओर उन वर्गों को ले जाना है, जिन्हें इसकी आवश्यकता है। अब देखें दूसरा पहलू। भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और यहां तक कि विद्यार्थी परिषद तक को सांप्रदायिक, फासिस्ट, नाजी और न जाने क्या-क्या कहकर थक चुकी कांग्रेस के लिए अब समेकित शत्रु भारत की संस्कृति है। मोदी के प्रति वैमनस्य अब हिन्दुत्व के प्रति वैमनस्य में बदल गया है। और कारण फिर एक बार वही है।
संस्कृति का अध्याय भी अंतत: विकास से ही जुड़ता है। यह भौतिक विकास के साथ-साथ मानसिक, सांस्कृतिक, रचनात्मक और आध्यात्मिक विकास भी करता है और साथ में आर्थिक विकास तो होता ही है। इसी कारण यहां से विरोध का दूसरा अध्याय शुरू होता है। संस्कृति के विरोध को तीव्र होता हम सब इसलिए देख रहे हैं, क्योंकि वह एक तो फूट डालने में अड़चनें पैदा करती है और दूसरे देश के विकास में मददगार होती है। संतोष की बात यह है कि जनता ने इसे भी ठुकरा दिया है।
विशेष तौर पर युवा मतदाताओं ने इन विधानसभा चुनावों में जिस प्रकार अपनी जीत देखी है, वह साफ जताती है कि भविष्य का सपना देखने वाला युवा वर्ग अब जीतना सीख गया है। वास्तव में चुनाव परिणामों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जहां की सरकारों ने युवाओं के विरुद्ध काम किया है, विकास में अड़चनें पैदा कीं, युवा वर्ग के वोटों ने उन सरकारों को सत्ता से बाहर कर दिया है। जब विकास में ही बाधा डाली जाएगी, तो युवाओं के लिए नए अवसरों का निर्माण कैसे हो सकेगा?
यह बात बहुत बार कही जा रही है कि महिलाओं की राजनीतिक जागरुकता ने इन विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इसे किसी तरह का राजनीतिक प्रबंधन मानना गलत होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम से देश की बेटियों-बहनों के मन में एक नया विश्वास जागा है। उन्हें अपनी सुरक्षा, सम्मान और गरिमा की गारंटी महसूस होती है। और यह सिर्फ एक कदम नहीं है। वास्तव में पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार ने, और जहां डबल इंजन हो, वहां राज्य सरकारों ने भी शौचालय, बिजली, रसोई गैस, नल से जल और बैंक में खाते जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाकर महिलाओं के सशक्तिकरण, सम्मान और सुरक्षा की दिशा में वह कार्य कर दिया है, जो अब उनके जीवन का एक स्थायी हिस्सा बन गया है। सिर्फ रसोई गैस की उपलब्धता के बूते, एक अनुमान के अनुसार, देश भर में कम से कम 25 लाख महिलाओं को फेफड़ों की बीमारियों से बचाया जा सका है।
‘मैं हिंदू हूं। मैं गर्व से कहता हूं कि मैं हिंदू हूं। पर मैं मूर्ख नहीं हूं।’ – कमलनाथ
मध्य प्रदेश में दो दशक से भाजपा की सरकार है, लेकिन इतने वर्षों बाद भी भाजपा पर इतना मजबूत भरोसा जताना किसी चमत्कार से कम नहीं है। भाजपा की जीत का अतिसरलीकरण करने का प्रयास करने वाले यह भी उल्लेख नहीं करते कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के वनवासी अंचलों में अधिकांश सीटों से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। वह भी ठीक उसी तरह, जैसे गुजरात में हुआ था।
हिंदुत्व से बैर
कांग्रेस को ले डूबने वाला एक बड़ा पहलू उसकी हिंदू विरोधी मानसिकता है। हालांकि चुनाव आने पर वह हिंदू होने का स्वांग करने में कोई कसर नहीं छोड़ती। मध्य प्रदेश को देखें। वहां मुख्यमंत्री पद के दावेदार बनाए गए कमलनाथ एक परिपूर्ण चुनावी हिंदू बनकर उभरने की कोशिश कर रहे थे। कमलनाथ ने कई बार कहा, ‘मैं हिंदू हूं। मैं गर्व से कहता हूं कि मैं हिंदू हूं। पर मैं मूर्ख नहीं हूं।’ यहां तक कि उन्होंने आई.एन.डी.आई गठबंधन की बैठक भी भोपाल में नहीं होने दी, क्योंकि अगर बैठक होती और उसमें कांग्रेस के नेता अपनी ‘धर्मनिरपेक्षता’ की दुहाइयां देते, तो कमलनाथ के चुनावी हिंदुत्व की हवा वहीं निकल जाती।
इतना ही नहीं, कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया कि वे कथावाचन आयोजित कराएं, रामनवमी और हनुमान जयंती पर कार्यक्रम करें। लेकिन उन्हीं कमलनाथ का 2018 का वह वीडियो भी लोगों के पास उपलब्ध था, जिसमें वह इस तरह की सारी बातों के ढोंग होने की बात कह रहे थे और चुनाव बाद ‘देख लेने’ का वादा मुस्लिम समुदाय से कर रहे थे।
राजस्थान में कांग्रेस के पास ढोंग रचने की भी अवसर नहीं रह गया था। गहलोत सरकार की तमाम नीतियों और रीतियों के बाद राज्य में बहुसंख्यकों के मन में अपनी सुरक्षा को लेकर आशंका तक पैदा हो गई थी। फिर कांग्रेस ने राजस्थान में अपने घोषणापत्र में मुस्लिम समुदाय को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण देने का वादा करके अपने इरादे भी स्पष्ट कर दिए थे। कांग्रेस घोषणापत्र में ‘अल्पसंख्यक कल्याण’ शीर्षक के तहत कहा गया है, ‘‘जाति जनगणना के बाद हम उनकी आबादी के अनुसार आरक्षण प्रदान करने का कार्य करेंगे।’’ यह कांग्रेस के ताबूत में अंतिम कील साबित हुआ। परकोटा जयपुर में कांग्रेस सरकार द्वारा हिंदू मंदिर विध्वंस के खिलाफ आवाज उठाने वाले पूज्य बालमुकुंदाचार्य जी महाराज को भाजपा ने टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए।
‘‘कुछ लोग कह रहे हैं कि आज की इस हैट्रिक ने चौबीस की
हैट्रिक की गारंटी दे दी है।’’– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस नेताओं को हिंदू आराध्यों के लिए अपशब्द कहने से ही फुर्सत नहीं थी। यहां एक बड़ा पहलू ईसाई मिशनरियों का भी था, जो वनवासियों के कन्वर्जन के काम में लगी हुई हैं। कांग्रेस राज में उन्हें मिले प्रश्रय से वनवासी समाज आशंकित हो चुका था। अप्रैल में ही छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के साजा विधानसभा क्षेत्र के बिरनपुर गांव में दोपहर में स्कूली छात्रों में सड़क पर साइकिल चलाते हुए विवाद हुआ। इस पर मुस्लिम समुदाय के लोग वहां पहुंच गए।
एक युवक ने हिंदू छात्र के हाथ पर बोतल फोड़कर उसके हाथ की हड्डी तोड़ दी। इसी बीच कुछ मुस्लिम युवक एक हिंदू युवक भुवनेश्वर साहू के घर में घुस गए और तलवार से उसकी हत्या कर दी। मामले को शांत कराने के लिए गांव पहुंची पुलिस फोर्स पर भी मुस्लिमों ने पथराव किया। पथराव में पुलिस वाले गंभीर रूप से घायल भी हुए। भुवनेश्वर साहू के नितांत गरीब पिता ईश्वर साहू को भाजपा ने साजा सीट से टिकट दिया। ईश्वर साहू ने 19,600 मतों से 40 साल से कांग्रेस से विधायक मंत्री रविंद्र चौबे को हराया है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कांग्रेस की साम्प्रदायिक नीतियों से जनता कितनी आजिज आ चुकी थी।
कांग्रेस ने लिए दूसरा झटका यह भी है कि इन परिणामों से खुद आई.एन.डी.आई गठबंधन के भीतर उसकी स्थिति बहुत कमजोर हो गई है। 6 दिसंबर को दिल्ली में कांग्रेस की बुलाई बैठक में इस गठबंधन के लगभग सभी प्रस्तावित या अपेक्षित दलों ने आने से मना कर दिया। अगर यह गठबंधन बनना और चलना है, तो हो सकता है कि उसे यह तय करना पड़े कि उसका नेता कौन होगा?
भविष्य के संकेत
कांग्रेस के समर्थक, उनका ‘अपना मीडिया’, कांग्रेस अथवा उसकी धारा से वित्तपोषित कथित थिंक टैंक- सारे दबे सुर में यही कहते जा रहे थे कि यह विधानसभा चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनावों का सेमीफाइनल हैं। उम्मीद यह थी कि इससे उन्हें 2024 के चुनाव के लिए एक वातावरण बनाने का अवसर मिल सकता था। लेकिन यह दांव उल्टा कांग्रेस पर ही भारी पड़ गया। इन चुनावों ने भाजपा के कुल प्रभुत्व को स्थापित कर दिया है।
भाजपा ने मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर का सामना किया और राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। हालांकि एग्जिट पोल ने राजस्थान में कांटे की टक्कर की भविष्यवाणी की थी, और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सत्ता से बाहर होना एग्जिट पोल के लिए भी एक बड़ा आश्चर्य था। मध्य प्रदेश में भाजपा ने 163 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने 66 सीटें जीतीं। कांग्रेस और उसका ‘अपना मीडिया’ राजस्थान में मिली हार को भले ही हर पांच वर्ष में सरकार बदलते रहने की परंपरा कह कर अनदेखा करने की कोशिश करे, चार-पांच महीनों में जनता का मूड या वोट बदलने का अब कोई उचित कारण ही नहीं है। भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपने वोट शेयर में सात प्रतिशत से अधिक, राजस्थान में लगभग तीन प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 13 प्रतिशत से अधिक का सुधार किया है। निश्चित रूप से इसका असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
इसके ठीक विपरीत दृष्टिकोण से, यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी सेमीफाइनल ही थे। वास्तव में ये चुनाव कांग्रेस के लिए अस्तित्व का प्रश्न थे। कांग्रेस ने साबित कर दिया है कि हिंदी क्षेत्र में भाजपा से सीधी टक्कर लेने की ताकत उसके पास नहीं है और कर्नाटक में उसे जो जीत मिली थी, वह तीर कम और तुक्का ज्यादा थी।
कांग्रेस के लिए दूसरा झटका यह भी है कि इन परिणामों से खुद आई.एन.डी.आई गठबंधन के भीतर उसकी स्थिति बहुत कमजोर हो गई है। 6 दिसंबर को दिल्ली में कांग्रेस की बुलाई बैठक में इस गठबंधन के लगभग सभी प्रस्तावित या अपेक्षित दलों ने आने से मना कर दिया। अगर यह गठबंधन बनना और चलना है, तो हो सकता है कि उसे यह तय करना पड़े कि उसका नेता कौन होगा? निश्चित रूप से इसका उत्तर इस प्रस्तावित गठबंधन में किसी के पास नहीं है। यही कारण है कि दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘कुछ लोग कह रहे हैं कि आज की इस हैट्रिक ने चौबीस की हैट्रिक की गारंटी दे दी है।’’ यह भी मोदी की गारंटी है।
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