चीनी नागरिक सरकारी बंदिशों को तोड़कर वहां जाना चाहे तो क्या करेगा? वह ऐसे तरीके खोजेगा, जिसमें वह आईपी एड्रेस की व्यवस्था से मुक्त होकर बाहरी इंटरनेट पर विचरण कर सके।
डार्क वेब ऐसे लोगों का अभयारण्य बन गया है, जो किसी वजह से छिपकर काम करना चाहते हैं, अपनी पहचान, गतिविधियों और डेटा को एक्सपोज नहीं करना चाहते। किंतु आप जानते हैं कि सामान्यत: इंटरनेट से जुड़े हर व्यक्ति की पहचान करना संभव है, क्योंकि हम जैसे ही इंटरनेट या वेब से जुड़ते हैं, हमें स्वत: ही एक आईपी एड्रेस आवंटित हो जाता है, जिसकी गतिविधियों की पड़ताल संभव है।
किंतु वेब पर ऐसे भी लोग हैं, जो इस प्रक्रिया से मुक्त रहना चाहेंगे। उदाहरण के लिए, चीन में ट्विटर, गूगल, फेसबुक आदि पर पाबंदी है। अगर कोई चीनी नागरिक सरकारी बंदिशों को तोड़कर वहां जाना चाहे तो क्या करेगा? वह ऐसे तरीके खोजेगा, जिसमें वह आईपी एड्रेस की व्यवस्था से मुक्त होकर बाहरी इंटरनेट पर विचरण कर सके। तब वह डार्क वेब का सहारा ले सकता है, जिसमें ‘अनियन राउटिंग’ नामक तकनीक का प्रयोग होता है।
इससे जुड़े लोगों को ऐसा भ्रमपूर्ण और अस्थायी आईपी एड्रेस दिया जाता है, जिसकी सही जांच संभव नहीं है। जैसे- ‘चीन में बैठे व्यक्ति को भारत का एड्रेस। इतना ही नहीं, यह आईपी एड्रेस थोड़ी देर में बदलकर मैक्सिको का हो जाएगा और फिर लिथुआनिया का। यह प्रक्रिया बड़ी संख्या में दोहराई जाती है। जिन सर्वरों से यह काम हो रहा है, वे भी एनक्रिप्टेड हैं। सो डार्क वेब पर सक्रिय लोग साइबर निगरानी या जांच के दायरे से काफी हद तक बाहर हैं।
सलमान रुश्दी या तस्लीमा नसरीन को अगर अपनी पहचान छिपाकर इंटरनेट का प्रयोग करना हो तो कहां जाएंगे? ऐसे पत्रकार, जो अपने स्रोतों की पहचान को सुरक्षित रखना चाहते हैं, वे भी यहां हैं। सेना-पुलिस आदि के कुछ घटक, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संस्थान, संवेदनशील मुद्दों पर शोध करने वाले लोग भी होंगे।
अपराधियों, आतंकवादियों, जासूसों, हैकरों आदि के लिए इसकी कितनी उपयोगिता होगी, आप अनुमान लगा सकते हैं। किंतु यहां सक्रिय सभी लोग अवैध काम करते हों, यह आवश्यक नहीं है। हां, सरकारों की नजर में वे खतरनाक हो सकते हैं। जैसे- व्हिसिल ब्लोअर्स, जो किसी गलत गतिविधि के खिलाफ आवाज उठाते हैं (उदाहरण-एडवर्ड स्नोडेन और जुलियन असांजे, जिन्होंने गोपनीय सरकारी राज उजागर किए थे)।
दमनकारी सरकारों के विरोधी या असंतुष्ट भी यहां सक्रिय हैं और तमाम तरह के एक्टिविस्ट भी। सलमान रुश्दी या तस्लीमा नसरीन को अगर अपनी पहचान छिपाकर इंटरनेट का प्रयोग करना हो तो कहां जाएंगे? ऐसे पत्रकार, जो अपने स्रोतों की पहचान को सुरक्षित रखना चाहते हैं, वे भी यहां हैं। सेना-पुलिस आदि के कुछ घटक, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संस्थान, संवेदनशील मुद्दों पर शोध करने वाले लोग भी होंगे।
इसी वजह से शायद अब आप यह सवाल न पूछें कि जब डार्क वेब के भीतर छिपकर काम करने वाले तमाम तरह के तत्व, समूह, गिरोह आदि सक्रिय (बहुत सारे आपराधिक) हैं, तो इसे खत्म क्यों नहीं कर दिया जाता? अवैध गतिविधियां चलाने वाले अनगिनत लोग पुलिस और इंटरपोल आदि की पहुंच से दूर बने हुए हैं, लेकिन फिर भी यह ढांचा सुरक्षित है और शायद बना रहेगा। सरकारें चाहकर भी इसे नष्ट नहीं कर सकतीं।
इसकी प्रकृति विकेंद्रीकृत है, जिसका अर्थ यह है कि कोई केंद्रीय संस्था इसका नियंत्रण नहीं करती। डार्क वेब किसी एक देश या स्थान पर नहीं है, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पूरी दुनिया से संचालित होता है। इसमें एनक्रिप्शन और राउटिंग प्रणालियों का प्रयोग होता है, जिनकी थाह लगाना मुश्किल है। फिर इसका लगातार विकास हो रहा है और इसके लिए उभरने वाली नई चुनौतियों का जवाब ढूंढ लिया जाता है। यह भी विचारणीय है कि इसका वैधानिक इस्तेमाल भी होता है, जो कानून के दायरे में है। जब यहां सक्रिय लोगों की पहचान करना ही मुश्किल है, तो उन पर हाथ डालना कैसे संभव होगा?
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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