‘मैं एक सिपाही हूं। मैं लड़ता हूं, जहां मुझे कहा जाता है और मैं जीतता हूं जहां मैं लड़ता हूं’
भारत के पहले चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन लक्ष्मण सिंह रावत ने पूरी जिंदगी इस उक्ति को जिया, लेकिन वे मौत के मुकाबले 8 दिसंबर 2021 को अपनी बाजी हार गए। हालांकि यह उनकी पहली हवाई दुर्घटना नहीं थी। कुछ साल पहले पूर्वोत्तर में भी उनका हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था, और तब उन्होंने मौत को मात दी थी।
तमिलनाडु में 8 दिसम्बर 2021 को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में भारत के पहले चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत तथा उनके साथ सफर कर रहे ब्रिगेडियर एलएस लिद्दर, लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, विंग कमांडर पीएस चौहान, स्क्वॉड्रन लीडर के. सिंह, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांसनायक विवेक कुमार, लांसनायक बी. साई तेजा, जूनियर वारंट आफिसर दास, जूनियर वारंट आफिसर ए. प्रदीप और हवलदार सतपाल की दुखद मृत्यु हुई थी। इस खबर से पूरा देश गहन शोक में डूब गया। जनरल रावत ऐसे जांबाज सेनानी थे, जिन्होंने देश के स्वाभिमान के साथ समझौता न करते हुए दुश्मन को आंख में आंख डालकर देखा था। उन्होंने चुनौतियों को टक्कर देकर देश का गौरव बढ़ाने वाले अनेक ऑपरेशन की रचना की थी। 16 मार्च, 1958 को पौड़ी गढ़वाल में एक सैन्य परिवार में जन्मे जनरल रावत सैनिकों के लिए एक आदर्श सेनानी थे तो आम देशवासियों के प्रति सहृदयता का भाव रखने वाले भारतीय। थल सेनाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद देश के पहले सीडीएस नियुक्त किए गए थे।
भारतीयों के मनो-मस्तिष्क पर जनरल रावत का नाम 2015 में उस वक्त से छाया, जब भारतीय फौज ने म्यांमार में घुसकर आतंकवादियों को मारा था। पूरा देश इससे आत्मसंतुष्टि के भाव से भर गया था। फिर 2016 में पाकिस्तान को पीओके में घुसकर उसे चोट पहुंचाने के नीतिकार के नाते वे आतंकी हमलों से आहत राष्ट्र के आत्मसम्मान का चेहरा बने, जिसने जबरदस्त दहाड़ मारी थी, कि ‘यह वह भारत नहीं है जो बस हमलों की निंदा करे, यह नया भारत है, जो हर भाषा जानता है, सम्मान की भी और बंदूक की भी’। आज भी याद आता है उनका वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि हम एक दोस्ताना फौज हैं, लेकिन जब हमें कानून और व्यवस्था बनाने के लिए बुलाया जाता है तो लोगों को हम से डरना चाहिए। और चंद सालों में ही डर पैदा हुआ। इसकी बानगी पाकिस्तान के टीवी चैनलों की बहसों में जनरल रावत और अजित डोवाल को लेकर की गई टिप्पणियों में देखी जा सकती है। खीझते कट्टरपंथियों और पूर्व पाकिस्तानी सैनिकों की हताशा हर सच्चे भारतीय को दिली सुकून देती रही है।
कश्मीर में पत्थरबाजों पर जनरल रावत का वह बयान आज भी लोगों को याद है कि, ‘काश! ये लोग हम पर पत्थर की जगह गोलीबारी कर रहे होते तो मैं ज्यादा खुश होता। तब मैं वह कर पाता जो मैं करना चाहता हूं।’ उनके उस बयान ने कमाल कर दिया था। धीरे-धीरे ही सही, पर पत्थरबाज पत्थर चलाना भूल गए। यह उनका आत्मबल था, जिसके आगे वे किसी की नहीं सुनते थे। ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना लेकर जनरल रावत जो करना चाहते थे उन्होंने किया, जो कहना चाहते थे वह कहा।
चीन की चालाकियों को जवाब
चीन की चालाकियों और धमकी के विरुद्ध एक सशक्त भारतीय चेहरा जनरल रावत एक ऐसे फौजी थे, जिसने तमगे अपने सीने पर पहने, लेकिन अपने दिमाग को हमेशा ठंडा और जमीन पर रखा। वे हमेशा जमीनी सचाई से वाकिफ रहे। एक सोचने विचारने वाला जनरल, जो दुश्मन की सोच को समझने और उससे एक कदम आगे जाकर उसे सख्त सबक सिखाने का माद्दा रखता था। जिसने सचाई को कभी शाब्दिक आडंबर से ढकने की कोशिश नहीं की। जो सही है, जो सत्य है, वे उस पर अडिग और अविचल रहे।
जनरल रावत ने भारतीय सेना का वह रसूख पैदा किया, जिसकी सख्त जरूरत थी। जिस चीन से पूरे एशिया में टक्कर लेने के लिए अमेरिका भारत के नाम का जाप कर रहा है, इस नई बदली कहानी के एक लेखक जनरल रावत भी रहे। उनके कार्यकाल में भारत-अमेरिकी संबंधों में काफी प्रगाढ़ता आई। उन्होंने हर बाधा पार की, ससम्मान पार की। कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने के बाद तमाम शंकाओं को निर्मूल साबित किया भारतीय फौज ने।
कायर की तरह जीने से मृत्यु बेहतर
‘कायर हुनु भन्दा मर्नु राम्रो’ यानी कायर की तरह जीने से मृत्यु बेहतर है। गोरखा रेजिमेंट के इस ध्येय वाक्य को जनरल रावत ने पूरी जिंदगी शान से जिया। वे न डरे और न ही विचलित हुए, जो ठान लिया, वह करके ही माने। फिर वह चाहे पाकिस्तान हो, कश्मीर के पत्थरबाज, चीन, देश के भीतर सीएए को लेकर लोगों को बरगलाने वाले या फिर सेना के वे लोग, जो विकलांगता का अनुचित लाभ उठा रहे थे। देश के पहले सीडीएस जनरल रावत ने कम समय में अपनी पहचान एक ऐसे जांबाज लड़ाकू जनरल की बनाई, जिसके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था, जिसने उस राष्ट्र की बेहतरी के लिए बिना लाग-लपेट अपनी बात रखी।
जैसे को तैसा जवाब
‘एक जनरल जरा हटके’ की उनकी छवि को देखते हुए ही देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी खूबियों को पहचाना। देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 2015 में जब आतंकी संगठन एनएससीएन ने 18 सैनिकों पर हमला कर उन्हें मार दिया था, तो यह एक तगड़ा झटका था। आमतौर पर देशवासी ऐसे वक्त में राजनेताओं के रटे-रटाये बयान सुनने के आदी रहे थे, कि यह आतंकियों की कायराना हरकत है, वे अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे। फिर सब कुछ शांत हो जाता था। लेकिन संभवत: भारतीय सेना ने पहली बार जवाबी कार्रवाई की। जनरल रावत के नेतृत्व में भारतीय फौज की 21 पैरा के कमांडो ने सीमा पार जाकर म्यांमार में एनएससीएन के कई आतंकियों को ठिकाने लगाया था। उन्होंने अपनी योजना इतनी बारीकी से तैयार की थी कि हमला करने के महज 6 दिनों के भीतर 10 जून को सेना की पैरा कमांडो ने म्यांमार की सीमा में दाखिल होकर करीब 40 मिनट चली इस सर्जिकल स्ट्राइक को सफलता से अंजाम दिया। रिपोर्ट के मुताबिक इस ऑपरेशन में करीब 38 उग्रवादी ढेर हुए। देश ने सर्जिकल स्ट्राइक को पहली बार जाना। फिर 2016 में उरी हमले के बाद पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया, जिसके नीतिकार जनरल बिपिन रावत ही रहे। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक की योजना का ब्लू प्रिंट बनाने में जनरल रावत की सलाह निर्णायक साबित हुई। हालांकि तब वे लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर थे।
इस तरह के और ऑपरेशन भी हो सकते हैं
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जनरल रावत ने कहा था, ‘‘यह पाकिस्तान के लिए एक संदेश है, हम बताना चाहते हैं कि इस तरह के और ऑपरेशन भी हो सकते हैं।’’जब 2018 में वे भारतीय सेना के मुखिया बने तब उन्होंने कहा था, ‘‘भारत को एक और सर्जिकल स्ट्राइक करने की जरूरत है।’’ वे 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक की रणनीति में भी शामिल रहे। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की जो दमदार छवि बनी है, उसमें जनरल बिपिन रावत एक सशक्त हस्ताक्षर रहे।
(सौजन्य पाञ्चजन्य आर्काइव)
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