‘पाश्चात्य की खंडित दृष्टि है, इसलिए अर्थ और काम प्रभावी हैं। जबकि भारतीय चिंतन में अध्यात्म केंद्र में है। समग्र दृष्टि है। इसलिए भारतीय शिक्षण पद्धति के अंदर पहली चीज कही गई कि मनुष्य का पंचपोषक विकास होना चाहिए।’ विश्व हिन्दू कांग्रेस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं चिंतक श्री सुरेश सोनी ने ‘नैरेटिव एंड प्रेजेंट रियलटीस’ सत्र में अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं उनके उद्बोधन के संपादित अंश:
हिन्दी में कहावत है गागर में सागर भरना। सारे विश्व में माना जाता है कि विकसित होना है। यदि विकसित होना है तो उसके लिए शिक्षित होना है। इसलिए सारी दुनिया में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो रहा है। पिछले 50 वर्षों से हम देख रहे हैं कि हर देश में पहले से कई गुणा अधिक शिक्षा संस्थान हो गए हैं, जिसके कारण शिक्षित लोगों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन मनुष्य पीछे रह गया। मनुष्य के वातावरण में विकास हो रहा है। लेकिन मानव की जो संवेदना, नैतिकता, व्यापकता है, वह सीमित होती जा रही है।
शिक्षा बढ़ रही है, लेकिन जनसंख्या बढ़ रही है। शिक्षित लोग बढ़ रहे हैं, लेकिन परिवार टूट रहे हैं। शिक्षा बढ़ रही है लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। चारित्रिक मूल्य का क्षरण हो रहा है। इसका कारण यही है कि दुनिया में कहीं न कहीं बुनियादी ढांचे में कुछ गड़बड़ी है। 1996 से पहले यूनेस्को ने एक कमेटी बनायी। इसका उद्देश्य था कि 21वीं शताब्दी के बाद कौन—कौन सी समस्याएं आने वाली हैं, उसको हमें ध्यान में रखना पड़ेगा। इसके बीच में कैसे जीना है। इनका कैसे समन्वय करना है। यही सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए उन्होंने 7 बिन्दु चिन्हित किए। पहला, ग्लोबल वर्सेस लोकल। ग्लोबलाइजेशन में लोकल समाप्त हो जाता है। यूनिवर्सेस वर्सेस इंडिविजूयल। ट्रेडिशन वर्सेस मॉडर्निटी, शार्टटर्म वर्सेस लॉगटर्म कंसिडेरेशन, कंपटीशंस वर्सेस कंसर्न इक्वालिटी, नॉलेज एक्सप्लेनेशन वर्सेस कैपेसिटी, स्पीरिचुयल वर्सेस मॉडर्निटी।
शिक्षण स्कूल में नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया है। इसलिए जन्म से पूर्ण शिक्षण प्रारंभ होता है। बच्चा गर्भ में रहता है, तभी से ये पद्धति प्रारंभ होती है। बच्चा जब गर्भ में छह महीना का होता है तभी से विचार और भावना ग्रहण करता है। ये सत्य है और इसको प्रयोग करके देखा गया कि यदि मां आनंदमय संगीत सुनती है तो गर्भ में बच्चा प्रसन्न हो रहा है। उसकी मां ने कहा जब कभी ये बच्चा रोता था तब ये धुन सुना देती थी, फिर वह चुप हो जाता था।
आज हम सब देख रहे हैं कि दुनिया भर के लोग एक दूसरे के विपरीत खड़े हैं। इनका समाधान कैसे करना है? एआई और तकनीक बढ़ने से मनुष्य को अच्छा बनाना है तो उसका माध्यम टूल्स हैं। थ्यूडोर रोजार्क ने एक किताब लिखी थी- व्हेयर द वेस्टलैंड। उसमें उसने कहा कि आज सुपर इंडस्ट्रियल साइंटिफिक कल्चर आदमी को ऐसा बनाना चाहता है, जो सोशियो, टेक्नो, पॉलिटिकल, इकॉनो एक्सपर्ट, मल्टी हेडेड इंजीनियर हो। उसके हाथ में हाइली इलैक्ट्रोनोसाइट, कंप्यूटरइज्ड, आडियो विज्युल, मल्टी इंस्ट्रक्शन एंड सोल हो। पर वे भूल जाते हैं कि मनुष्य एक जीवित प्राणी है। एक जीवित प्राणी को अजीवित विधि से पूरा करना चाहते हैं तो उसका परिणाम अच्छा नहीं हो सकता। इसलिए इसके लिए कहीं न कहीं मूल में जाना पड़ेगा।
इसके संदर्भ में भारत में कहा गया कि संपूर्ण रूप से जीना है तो मनुष्य और मनुष्य का परिवेश दोनों का साथ होना चाहिए। इसलिए विवेकानंद जी ने कहा कि ‘एजुकेशन इज द मेनी प्रिपरेशन आफ द परफेक्शन आफ रिमेनिंग मैन।’ ये अगर करना है तो हमें मौलिक रूप से कुछ बातों के बारे में विचार करना पड़ेगा। लेकिन पाश्चात्य की खंडित दृष्टि है, इसलिए अर्थ और काम प्रभावी हैं। जबकि भारतीय चिंतन में अध्यात्म केंद्र में है। समग्र दृष्टि है। इसलिए भारतीय शिक्षण पद्धति के अंदर पहली चीज कही गई कि मनुष्य का पंचपोषक विकास होना चाहिए। आजकल इक्यू, आईक्यू की चर्चा चलती है। पर हमार यहां पांच क्यू है। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय। जब पंचपोषक विकास होता है तभी संपूर्ण विकास होता है।
शिक्षण स्कूल में नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया है। इसलिए जन्म से पूर्ण शिक्षण प्रारंभ होता है। बच्चा गर्भ में रहता है, तभी से ये पद्धति प्रारंभ होती है। बच्चा जब गर्भ में छह महीना का होता है तभी से विचार और भावना ग्रहण करता है। ये सत्य है और इसको प्रयोग करके देखा गया कि यदि मां आनंदमय संगीत सुनती है तो गर्भ में बच्चा प्रसन्न हो रहा है। उसकी मां ने कहा जब कभी ये बच्चा रोता था तब ये धुन सुना देती थी, फिर वह चुप हो जाता था। शिक्षण केवल स्कूल में जाने के बाद चालू नहीं होता। इसलिए हमारी पद्धति के अंदर घर से शिक्षण प्रारंभ होता है। मैं समझता हूं कि यही भारतीय शिक्षण पद्धति का प्रवाह है। इसको पुनर्जीवित करने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना पड़ेगा। सौभाग्य से परिवर्तन की दिशा चली है। कुछ समय पहले भारत सरकार ने जो शिक्षा पद्धति लागू की है, उसमें पहली बार ये पंचपोषक विकास शामिल किए गए हैं।
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