राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावी नतीजों ने साबित कर दिया है कि इस बार अधिकांश एग्जिट पोल के पूर्वानुमान वास्तविक चुनाव परिणामों के उलट रहे हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा सत्तारूढ़ हुई है। लगभग सभी एग्जिट पोल में छत्तीसगढ़ में पूर्ण बहुमत के साथ कांग्रेस की वापसी का अनुमान लगाया गया था जबकि राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर का अनुमान था। मध्य प्रदेश में किसी एग्जिट पोल में भाजपा की तो किसी में कांग्रेस की एकतरफा जीत का अनुमान था जबकि तीनों ही राज्यों में भाजपा की रिकॉर्ड जीत हुई है। विभिन्न पार्टियों को मिली सीटों का अंतर सभी पोल्स में लगाए गए अनुमानों से काफी ज्यादा रहा।
ऐसे में एग्जिट पोल की विश्वसनीयता पर एक बार फिर सवाल खड़े हुए हैं। राजस्थान में न्यूज 24-टुडेज चाणक्य ने भाजपा को 77-101, कांग्रेस को 89-113 और अन्य को 2-16 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया था। इसी प्रकार भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया ने क्रमशः 80-100, 86-106 तथा 9-18, टीवी9-पोलस्टार ने 100-110, 90-100 तथा 5-15, दैनिक भास्कर ने 95-115, 105-120 तथा 0-15 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की थी। वहीं एबीपी-सी वोटर ने भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को क्रमशः 94-114, 71-91 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। चुनावी नतीजे देखें तो राजस्थान में भाजपा को 115, कांग्रेस को 69 तथा अन्य को 15 सीटें मिली हैं। 2018 के चुनावों में कांग्रेस को 99, भाजपा को 77, बसपा को 6 और अन्य को 21 सीटों पर जीत मिली थी।
मध्य प्रदेश में टाइम्स नाउ-ईटीजी के एग्जिट पोल में भाजपा को 105-117, कांग्रेस को 109-125 जबकि अन्य दलों को 1-5 सीटें मिलने का अनुमान था। एग्जिट पोल में रिपब्लिक-मैट्रिज ने भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को क्रमशः 118-130, 97-107, 0-2, जन की बात ने 100-123, 102-125, 0-5, टीवी9-पोलस्ट्रैट ने 106, 111-121, 0-6, दैनिक भास्कर ने 95-115, 105-120, 15, एबीपी-सी वोटर ने 88-112, 113-137, 2-8 मिलने का अनुमान जताया था।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स के एग्जिट पोल में तो बहुजन समाज पार्टी के भी 15 सीटें जीतने का आकलन था। चुनाव परिणामों में भाजपा को 164, कांग्रेस को 65 और अन्य को 1 सीट मिली हैं। 2018 के चुनावों में कांग्रेस को 114, भाजपा को 109 तथा अन्य को 7 सीटें मिली थी। छत्तीसगढ़ में इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने भाजपा को 30-40, कांग्रेस को 46-56 तथा अन्य को शून्य सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया था। इसी प्रकार भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को न्यूज 24-टुडेज चाणक्य ने भाजपा को 25-41, कांग्रेस को 49-65 और अन्य को 0-3 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया था।
भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया ने क्रमशः 36-46, 40-50 तथा 1-5, एबीपी-सी वोटर ने 36-48, 41-53 तथा 0-4, रिपब्लिक-मैट्रिज ने क्रमशः 34-42, 44-52 तथा 0-2, टाइम्स नाउ ने 32-40, 48-56 तथा 2-4, रिपब्लिक टीवी- जन की बात ने 34-45, 42-53 तथा 3 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की थी जबकि वास्तविक चुनावी परिणामों में भाजपा तमाम एग्जिट पोल के अनुमानों से परे 54 सीटें हासिल कर रिकॉर्ड बहुमत हासिल करने में सफल रही और कांग्रेस महज 35 सीटों पर सिमट गई, अन्य को केवल एक ही सीट मिली। 2018 के चुनावों में कांग्रेस को 68, भाजपा को 15 तथा अन्य को 7 सीटें मिली थी।
तेलंगाना में जन की बात के एग्जिट पोल में कांग्रेस को 48-64, केसीआर की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को 40-45, भाजपा को 7-13 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की गई थी। एग्जिट पोल में इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने कांग्रेस, बीआरएस, भाजपा तथा अन्य को क्रमशः 63-79, 31-47, 2-4, 5-7, न्यूज24-टुडेज चाणक्य ने 62-80, 24-42, 2-12, रिपब्लिक-मैट्रिज ने 58-68, 46-56, 4-9, टीवी9-पोलस्ट्रेट ने 49-59, 48-58, 5-10, 6-8 सीटें मिलने का आकलन किया था। चुनावी नतीजों में कांग्रेस को 64, बीआरएस को 39, भाजपा तथा अन्य को 8-8 सीटें मिली हैं। 2018 के चुनावों में बीआरएस को 88, कांग्रेस को 19, भाजपा को 1 तथा अन्य को 11 सीटें मिली थी। इसी साल मई महीने में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों का सटीक अनुमान लगाने में भी अधिकांश एग्जिट पोल सफल नहीं हुए थे। हालांकि कुछेक एग्जिट पोल चुनावी परिणामों के कुछ करीब अवश्य दिखे थे किन्तु उनमें भी प्लस-माइनस के अंतर का इतना बड़ा खेल शामिल रहता है कि इनकी सटीकता पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं और यही कारण है कि एग्जिट पोल्स के बारे में अब ‘लगे तो तीर, नहीं तो तुक्का’ वाली धारणा बनने लगी है। जहां कर्नाटक में कांग्रेस 136 सीटें जीतने में सफल रही थी, वहीं भाजपा केवल 65 और जेडीएस 19 सीटों पर सिमट गई थी। एग्जिट पोल में न्यूज नेशन-सीजीएस ने भाजपा तथा कांग्रेस को क्रमशः 114 तथा 86, न्यूज 18-राजनीति ने 100 तथा 92, जी न्यूज-मैट्रिज ने 79-94 तथा 103-118, एबीपी न्यूज-सी वोटर ने 83-95 तथा 100-112, टीवी 9-पोलस्ट्रेट ने 88-98 तथा 99-109, टाइम्स नाउ-ईटीजी ने 85 तथा 113 सीटें दी थी। भजपा को अपने पोल में न्यूज 24-टुडेज चाणक्य ने 92, रिपब्लिक पी-मार्क ने 92 और इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने 80-90 सीटें दी थी।
2021 में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद हुए तमाम एग्जिट पोल पर भी नजर डालें तो विभिन्न पार्टियों को मिली सीटों का अंतर सभी पोल्स के अनुमानों से काफी ज्यादा रहा था। उस दौरान पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों पर तो न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया की नजरें केन्द्रित थी और एक टीवी चैनल के एग्जिट पोल में तो तब तृणमूल कांग्रेस को 64-88 सीटों पर समेट दिया गया था जबकि भाजपा को 173-192 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी। हालांकि तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में 213 सीटें जीतकर प्रचण्ड बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार जीत की हैट्रिक बनाने में सफल हुई थी। कोई भी एग्जिट पोल तब तृणमूल की इतनी प्रचण्ड जीत का अनुमान लगाने में सफल नहीं हुआ था। पश्चिम बंगाल को लेकर सभी एग्जिट पोल भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर बता रहे थे लेकिन दोनों के बीच 136 सीटों का बड़ा अंतर रहा था। तमिलनाडु में भी एग्जिट पोल में अन्नाद्रमुक-भाजपा गठबंधन को 38 से 54 के बीच जबकि द्रमुक-कांग्रेस को 175 से 195 के बीच सीटें मिलने का अनुमान लगाया था जबकि अन्नाद्रमुक तथा द्रमुक गठबंधन को क्रमशः 75 तथा 159 सीटें मिली थी। तीन अलग-अलग एग्जिट पोल्स में केरल में एलडीएफ को 70 से 80 के बीच और यूडीएफ को 58 से 59 के बीच सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन एलडीएफ को 95 और यूडीएफ को 43 सीटें हासिल हुई थी। पुडुचेरी जैसे कुल 30 सीटों वाले छोटे से राज्य में सभी एग्जिट पोल्स ने अन्य को कोई सीट नहीं मिलने की भविष्यवाणी की थी जबकि उन्हें 6 सीटें हासिल हुई थी।
बिहार में तो 2005 से 2020 के बीच चारों विधानसभा चुनावों में भी एग्जिट पोल जमीनी हकीकत से कोसों दूर साबित हुए थे। अपवादस्वरूप कुछ चुनाव परिणामों को छोड़ दें तो एग्जिट पोल का इतिहास कम से कम भारत में तो ज्यादा सटीक नहीं रहा है। अतीत में अनेक बार एग्जिट पोल्स द्वारा लगाए गए अनुमान गलत साबित हुए हैं। लोकसभा चुनावों में देखें तो 1998 से 2014 के बीच एग्जिट पोल और चुनावी नतीजों के बीच हर बार काफी अंतर रहा। 1998 के आम चुनाव में लगभग सभी एग्जिट पोल ने एनडीए को सर्वाधिक सीटें देते हुए कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों को लगभग नकार दिया था। हालांकि एनडीए को 252 सीटों पर जीत तो मिली थी लेकिन यूपीए 166 और अन्य 199 सीटें जीतने में सफल रहे थे। 1999 के चुनाव में एग्जिट पोल्स ने एनडीए को 350 के आसपास सीटें मिलने का अनुमान लगाया था जबकि कुछ ने तो अन्य पार्टियों को मात्र 39 सीटें ही दी थी। उस चुनाव में एनडीए को 292 जबकि अन्य पार्टियों को 113 सीटें मिली थी। 2004 में तो कांग्रेस की जीत ने सभी एजेंसियों के एग्जिट पोल आंकड़ों को गलत साबित कर दिया था। 2009 में भी वास्तविक परिणामों और एग्जिट पोल के आंकड़ों में 50 सीटों से भी ज्यादा का अंतर था। 2014 के आम चुनाव में दो एजेंसियों को छोड़कर बाकी सभी ने अपने एग्जिट पोल में एनडीए को 270-290 के बीच और कांग्रेस को 150 के आसपास सीटें मिलने का अनुमान लगाया था लेकिन एनडीए के खाते में 336 सीटें आई थी जबकि यूपीए 60 सीटों पर ही सिमट गया था।
महत्वपूर्ण सवाल यही है कि एग्जिट पोल अपने दावों में अधिकांशतः गलत साबित क्यों होते रहे हैं? दरअसल एग्जिट पोल वास्तव में कुछ और नहीं बल्कि वोटर का केवल रूझान होता है, जिसके जरिये अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस ओर हो सकता है। एग्जिट पोल के दावों का ज्यादा वैज्ञानिक आधार इसलिए भी नहीं माना जाता क्योंकि ये कुछ हजार लोगों से बातचीत करके उसी के आधार पर तैयार किए जाते हैं और प्रायः इसीलिए इन्हें कम विश्वसनीय माना जाता है। मतदाता जब अपना मत देकर मतदान केन्द्र से बाहर निकलता है तो एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां उससे उसका रूझान पूछ लेती हैं। अधिकांश एग्जिट पोल परिणामों को प्रायः समझ लिया जाता है कि ये पूरी तरह सही ही होंगे किन्तु वास्तव में ये सिर्फ अनुमानित आंकड़े होते हैं और कोई जरूरी नहीं कि मतदाता ने सर्वेकर्ताओं को अपने मन की सही बात ही बताई हो। दरअसल सर्वे के दौरान मतदाता बहुत बार इस बात का सही जवाब नहीं देते कि उन्होंने अपना वोट किस पार्टी या प्रत्याशी को दिया है। देश में चुनाव प्रायः विकास अथवा जाति-धर्म के आधार पर लड़े जाते रहे हैं और विधानसभा चुनावों में तो स्थानीय मुद्दे भी हावी रहते हैं, ऐसे में यह पता लगा पाना इतना आसान नहीं होता कि मतदाता ने अपना वोट किसे दिया है। दुनियाभर में अधिकांश लोग अब एग्जिट पोल को ज्यादा विश्वसनीय नहीं मानते और यही कारण है कि कई देशों में इन पर रोक लगाने की मांग होती रही है।
(लेखक 33 वर्षों से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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