आतंकी संगठन हमास द्वारा इस्राएल वासियों पर की गई बर्बरता पर जो लोग रेत में सिर धंसाए बैठे हैं या कहें कि मूक बनकर आतंकियों से हमदर्दी जता रहे हैं, ऐसे चेहरों को हमें पहचानना होगा। ऐसे लोग न केवल समाज, अपितु संपूर्ण मानवता के लिए खतरा हैं। फिलिस्तीन-इस्राएल संघर्ष के विविध पक्षों, भारत पर उसके प्रभाव एवं विश्व शांति के मार्ग पर आचार्य महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने विस्तृत बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के संपादित अंश-
भारत एक धर्म परायण देश रहा है, कर्तव्य की भूमि रही है। इस्राएल में जारी इस संकट के दौर में भारत का कर्तव्य क्या है? हमारी दृष्टि क्या होनी चाहिए?
चिर काल से ही भारत वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए अग्रणी भूमिका निभाता रहा है, आध्यात्मिक विचारों, सामरिक नीतियों, कूटनीति व अपनी बौद्धिक क्षमताओं के द्वारा। बड़े शिखर सम्मेलनों में प्रभावी, जब-जब वैश्विक संघर्ष हुए हैं उसमें सक्रिय नेतृत्व प्रदान करने में भारत कभी भी पीछे नहीं रहा है। रही बात इस्राएल की, तो वहां जो द्वंद्व है, विशेषकर आतंकवाद का दंश झेल रहे यहूदी समुदाय के सामने वही समस्याएं हैं, जो लंबे समय से भारत के सामने भी रही हैं। इस्राएल पर हमास के आतंकी हमले के बाद भारत के प्रधानमंत्री ने खुलेमन से कहा कि हम एस्राएल के साथ खड़े हैं। इसका अर्थ यह भी हुआ कि जहां-जहां आतंकवाद होगा, उन्माद होगा, मानवीय मूल्य ध्वस्त होंगे अथवा जहां भी दुष्प्रवृत्तियां होंगी अथवा दस्युयों का आक्रमण होगा, वहां-वहां अब भारत चुप नहीं बैठेगा। इस युद्ध में भारत ने यह भी बताया है कि आज वह नेतृत्व करने के लिए सक्षम है। भारत के पास वह सामर्थ्य, शक्ति और बल है कि किसी देश में आततायियों के आक्रमण पर चुप नहीं बैठेगा, भले ही वह उसे मित्र देश कहता हो।
भारत और इस्राएल की पीड़ा और समस्याएं एक जैसी हैं। इस साझी पीड़ा को आप कैसे देखते हैं?
भारत बीते कई सौ वर्षों से आक्रमणकारियों, आततायियों, आतंकियों और विशेषकर उनको, जो भारत की मान-मर्यादा, परंपरा, मूल्य, यहां की जीवनशैली को ध्वस्त करते चले आए हैं, उनका सामना कर रहा है। यहां के मठ-मंदिर लूटे गए। भारत की धरती पर पता नहीं कितने उपद्रव होते रहे हैं। इस्राएल के साथ भी यही हुआ। लेकिन इस्राएल ने अपनी धरती फिर से वापस ली। उन्होंने छल-बल से नहीं, बल्कि अपनी ही जमीन खरीदी है। इस्राएल की धरती पर आततायियों के आक्रमण को देख कर भारत को लगा कि हमारी परिस्थितियां तो एक जैसी हैं। आज पूरे संसार में प्रौद्योगिकी, सूचना तकनीक, संचार संसाधनों विशेषकर अस्त्र-शस्त्र और आर्थिक नीतियों में इस्राएल का वर्चस्व है। इस्राएल के साथ खड़े होकर भारत ने पूरे संसार को अपने सामर्थ्य का परिचय दिया है। भारत ने बताया है कि हम किसी की स्वायत्ता, स्वतंत्रता या उनकी निजता में दखल नहीं देंगे, पर यदि कोई पीड़ित है तो हम चुप भी नहीं बैठेंगे। पूरे संसार को युद्ध में धकेला जा रहा है। उसमें भारत की पहल से यह दिखाई देता है कि यह वह देश है, जो दूसरों की आंखों में आंखें डाल कर देख सकता है, तो यूक्रेन-रूस में तटस्थ भी रह सकता है। यूक्रेन-रूस युद्ध में अमेरिका और चीन कूदे, पर भारत की तटस्थता सिद्ध करती है कि वह समर्थ देश है, उसे बाध्य नहीं किया जा सकता है। आज भारत कुछ वर्ष पहले जैसा नहीं है, जो मूक रहता था, अब वह हर प्रकार से समर्थ है।
आने वाले वर्ष भारत की दशा और दिशा तय करेंगे। 2024-25 में ही बहुत कुछ तय होने वाला है। पूरी दुनिया में जनसांख्यिकी परिवर्तन हो रहे हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की बात होती है, तो वैश्विक, बौद्धिक और तथाकथित उदारवादी एक साथ नाजी को कोसने आ जाते हैं। लेकिन जब इसी तरह के नस्लीय सफाये का संकल्प लेकर ललकारते हुए हमास जैसे आतंकी संगठन आते हैं, तो उनके मुंह में दही जम जाता है। यह बौद्धिक विसंगति समाज को कहां ले जाएगी?
हाल ही में कनाडा की संसद के स्पीकर को त्यागपत्र देना पड़ा, क्योंकि वह नाजी का समर्थन कर रहा था। यह दोहरा मानदंड है। ईरान में शिया मुसलमान हैं और वह उन्हीं हक में नहीं है। वैचारिक दृष्टि से ईरान जिस हमास का समर्थन कर रहा है, वह संवेदनाओं के धरातल पर नहीं है। ईरान की ऐसी क्या विवशता है? अन्य देशों में जहां शिया रहते हैं, उनके साथ ईरान खड़ा नहीं होता है। इस चीज को समझना पड़ेगा मुसलमानों के भी दोहरे मानदंड हैं। ईरान का खुलकर शियाओं के समर्थन में आना या शियाओं का सुन्नियों के समर्थन में आने का मतलब है आतंकियों का समर्थन। यह बात पूरे संसार को चौंकाती है। इस्राएल की सेना में यदि कोई सबसे अधिक विश्वसीय है, तो वह ड्रूज मुस्लिम हैं। ये आंकड़े इस्राएल के रक्षा मंत्रालय के हैं। इसका अर्थ यह है कि यहूदियों को यह पता है कि कौन सी प्रतिभा, योग्यता, बौद्धिक, वैचारिक बल हमारे साथ खड़ा हो सकता है। अब समय आ गया है कि हमें तय करना होगा कि हम आतंकियों के साथ हैं या मानवता के पक्ष में हैं।
आज विश्व में हिंदू फोबिया, हिंदुओं के प्रति घृणा जैसे मामले लगातार बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं और इसको कुछ लोग एक बौद्धिक ढाल देने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए हमें क्या करना होगा?
हजार-डेढ़ हजार वर्षों से हम सनातनी जिस प्रकार से प्रहार झेल रहे हैं, उसमें साम्यवादियों का एक नया आक्रमण भी है। ये नए-नए विमर्श खड़े करते हैं। वे कहते हैं कि हिंदू धर्म हिंसा वाला धर्म है। मार्क्सवादी बौद्धों के पक्ष में खड़े होकर हमारे बौद्ध भाइयों को भड़काएंगे, तो कभी जैनियों के पक्ष में खड़े होकर कहते हैं कि जैन तो अहिंसा का धर्म है। यह संघर्ष का समय है। विशेषकर आने वाले वर्ष भारत की दशा और दिशा तय करेंगे। 2024-25 में ही बहुत कुछ तय होने वाला है। पूरी दुनिया में जनसांख्यिकी परिवर्तन हो रहे हैं। आज से 30 साल पहले जिस देश में मुसलमान खुलकर जी रहे थे, वे सभी आज हिजाब में हैं। उनकी आंख भी बंद कर दी गई हैं। आज यहां बरगलाने वाली चीजों पर जेएनयू में प्रदर्शन होने लगते हैं। यहां की राजनीतिक पार्टियों की ऐसी क्या विवशता है, जो देशद्रोहियों को सम्मानित करती है? देश में कौन-कौन से कसाब बैठे हैं, उन्हें ढूंढना होगा।
मुस्लिम जगत की लामबंदी से इतर जिन देशों ने मुसलमानों को शरणार्थी के तौर पर आश्रय दिया, उन्हीं पर शक्ति प्रदर्शन की शैली में दबाव बनाने और इससे भी बढ़कर उनके हितों व अस्तित्व पर चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मनोवृत्ति को कैसे देखते हैं?
देखिए, इनकी नीतियां ही ऐसी हैं। आज इंग्लैंड में ईसाई 44 प्रतिशत रह गए हैं, बाकी अन्य हैं। इस तरह के लोग पहले शरण लेने जाते हैं, जीवन निर्वाह के लिए जाते हैं, फिर अपना विस्तार करते हैं। इसी विस्तार में समूचा इंडोनेशिया, मंगोलिया, कंबोडिया चला गया। हमारे यहां से पर्शिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मलेशिया चला गया। थाईलैंड का उत्तरी भाग, जहां पर श्याम धरती थी, वह भी चला गया। अब हम भारतीयों को भी समझना होगा कि कोई एक समुदाय जैसे-उत्तराखंड या बंगाल से लेकर अमृतसर की बात करूं तो वहां पर ग्रीन कॉरिडोर बन रहा है। हमें यह समझना होगा कि शरणार्थी के वेश में कोई हमारी भूमि, हमारे संपूर्ण अस्तित्व पर अतिक्रमण करने के लिए आया है। इसलिए सजगता की अपेक्षा है। एक बौद्धिक आंदोलन चले। सरकारों को भी यह समझना पड़ेगा। भारत में तत्काल समान नागरिक संहित कानून लागू नहीं किया गया तो मैं बड़े संकट की आहट देख रहा हूं।
जब मानवीय मूल्यों की बात आती है, तो इस तरह की तथाकथित नागरिक समाज के लोग चुप रहते हैं। हमने कई बार मोमबत्ती गैंग देखे हैं। इसी गैंग को भारत ने नागरिक समाज मान लिया। इन लोगों को संस्कार, आध्यात्मिक विचार, परंपराएं, मूल्य और यहां की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक ऐसी सोसायटी है, जो भारत विरोध में खड़ी है। आज आवश्यकता है कि यहां के युवा, प्रबुद्ध वर्ग, बुद्धिजीवी आगे आएं और इस प्रकार के प्रहार, जिसमें छोटे छोटे बच्चों को बंधक बना लिया गया हो, उनका कत्लेआम किया गया हो, उसके लिए प्रदर्शन होने चाहिए। लेकिन देखने में आया है कि इस्राएल के पक्ष में अभी तक कोई प्रदर्शन नहीं हुए, मोमबत्तियां नहीं दिखीं, कहीं कोई मानव शृंखला नहीं बनी।
जो शरण के नाम पर आया है, लेकिन व्यवहार शत्रु जैसा है। ऐसे में धर्म क्या कहता है?
शठे शाठ्यं समाचरेत्, धर्म में इसका सीधा उत्तर यही है। हम फिलीस्तिनियों को भोजन तो भेज रहे हैं, पर आतंकवाद के विरुद्ध भी खड़े हैं। व्यक्ति भूखा है, तो भोजन दे देंगे। यदि कोई शत्रु हमारे भूमि पर अतिक्रमण करता है और हमें ही बेदखल कर देता है तो? कहां गया हमारा तक्षशिला? कहां गया हमारा पाटलिपुत्र? गजवा-ए-हिंद की मनोवृत्ति को समझना होगा। छद्म वेश में बहुत तरह के लोग घूम रहे हैं। इस पर तत्काल नीति नहीं बदली, तो सच मानिए भगवा धरती हरी चादर ओढ़ने की ओर बढ़ रही है। यह विस्तारवाद नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद है। इस पर हमें चौकन्ना रहना होगा।
बहुत लोग मानते हैं कि भारत अपने नेतृत्व के साथ स्वतंत्र दृष्टि व चिंतन के साथ खड़ा है। पराधीनता काल में बहुत सारी सोच की जकड़न या साम्राज्यवादियों का जो शासन था, उसमें औपनिवेशिक चश्मे से देखने की आदत पड़ गई है। उससे विकृतियां पैदा हुई हैं। इन्हें आप कैसे देखते हैं?
कई देश हैं, जहां से अंग्रेज वापस गए। वहां अब उनके पदचिह्न नहीं हैं, लेकिन हमारे यहां अभी भी शिक्षा एवं व्यावहारिक जीवन में दासता दिखाई देती है। मैकाले हमें बहुत गहराई से प्रभावित करता है। कानून-व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था का भी वही हाल है। अब हाल की सरकार कुछ चीजें बदल रही है। भारतीय आचार संहिता को बदलने की बात कर रही है। पहले यहां दंड व्यवस्था थी। अब न्याय व्यवस्था है। नई शिक्षा नीति आई है। विशेषकर, भारतीयों में स्वतंत्र सोच, खोजी प्रवृत्तियां अधिक रही हैं। लोग आयुर्वेद आदि की ओर लौट रहे हैं। जब व्यक्ति अपने संस्कार अधिष्ठान से विमुख होता है, तब वह अपने मूल प्रवृत्ति से भी विमुख होता है। तभी लोग दासता की ओर जाते है।। जीवन के बहुत से आयाम हैं, जिनमें पूरी गुलामी दिखती है। जब आप भारत के विचार की ओर लौटेंगे जैसे-कोरोना काल में आयुर्वेद, काढ़ा, योग ने पूरे संसार को संबल दिया। लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमसे ही लोगों ने जीवन जीना सीखा है। प्रतिशत का प्रबोध, दशमलव का ज्ञान, शून्य का बोध, अंक अक्षर, औषधियों को बताया किसने है? जिस दिन हम अपने स्वरूप, सत्ता, अस्तित्व की ओर झांककर देखेंगे, उसी समय हमारे परतीय प्रभाव दूर हो जाएंगे। पर दिक्कत यह है कि हम अपने स्वरूप में लौटना ही नहीं चाहते।
इस्राएल पर हुई बर्बरता के बाद उसने पूरी ताकत से जबाव दिया है। ऐसे में शांति की स्थापना के लिए क्या करना चाहिए? विश्व के प्रति और इस्राएल के प्रति भारत की दृष्टि क्या होनी चाहिए?
देखिए, हमारे यहां प्रथा अच्छी नहीं रही है। बकरे की बलि दी गई, शेर की किसी ने नहीं दी है। शेर की बलि देने के लिए कोई भी आज तक आगे नहीं बढ़ा है। इस्राएल शेर है और आर्थिक दृष्टिकोण से उनके सामने सभी बौने हैं। हमें उनसे सीखना चाहिए कि किस प्रकार से युद्ध किया जा सकता है। कौटिल्य कहते हंै कि पहले अर्थ है, है धर्म बाद में है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चार पुरुषार्थों में शास्त्र ने कहा कि धर्म पहले है। पर कौटिल्य अलग मत रखते है। भारत को इस्राएल के साथ खड़ा रहना चाहिए, क्योंकि ऐसा कभी भारत में भी हो सकता है। हमें शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह की नीतियों के अनुसार फिर से सैनिक बनना होगा। जैसे- इस्राएल में हर व्यक्ति सैनिक है, क्योंकि उनके लिए पहले राष्ट्र, फिर धर्म है। कौटिल्य कहते है कि राष्ट्र ही धर्म है और अर्थ ही धर्म है। आपके पास यदि शरीरिक सामर्थ्य नहीं है तो आप कभी युद्ध नहीं जीत पाएंगे। यदि राष्ट्र सुरक्षित नहीं है तो आप दुर्बल हैं। जो अपनी भूमि को संभालकर नहीं रख पाया, वह अपनी मर्यादा, जीवन मूल्यों को कैसे सुरक्षित कर सकता है?
भारतीय आचार संहिता को बदलने की बात कर रही है। पहले यहां दंड व्यवस्था थी। अब न्याय व्यवस्था है। नई शिक्षा नीति आई है। विशेषकर, भारतीयों में स्वतंत्र सोच, खोजी प्रवृत्तियां अधिक रही हैं। लोग आयुर्वेद आदि की ओर लौट रहे हैं। जब व्यक्ति अपने संस्कार अधिष्ठान से विमुख होता है, तब वह अपने मूल प्रवृत्ति से भी विमुख होता है। तभी लोग दासता की ओर जाते हंै। जीवन के बहुत से आयाम हैं, जिनमें पूरी गुलामी दिखती है। जब आप भारत के विचार की ओर लौटेंगे जैसे-कोरोना काल में आयुर्वेद, काढ़ा, योग ने पूरे संसार को संबल दिया।
भारत में संत शक्ति सज्जन शक्ति का प्रतीक है। समाज में सज्जन शक्ति के लिए नागरिक समाज का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? एक ऐसी ताकत जो छिपकर वार करती है, नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल करती है, उन्हें बंधक बना लेती है और अपने ही लोगों पर हमला करके सहानुभूति बटोरने की कोशिश करती है। इस छल को सज्जन शक्ति को कैसे देखना चाहिए?
हमारे यहां बहुत सी घटनाएं होती रही हैं। जब मानवीय मूल्यों की बात आती है, तो इस तरह की तथाकथित नागरिक समाज के लोग चुप रहते हैं। हमने कई बार मोमबत्ती गैंग देखे हैं। इसी गैंग को भारत ने नागरिक समाज मान लिया। इन लोगों को संस्कार, आध्यात्मिक विचार, परंपराएं, मूल्य और यहां की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है। यह एक ऐसी सोसायटी है, जो भारत विरोध में खड़ी है। आज आवश्यकता है कि यहां के युवा, प्रबुद्ध वर्ग, बुद्धिजीवी आगे आएं और इस प्रकार के प्रहार, जिसमें छोटे छोटे बच्चों को बंधक बना लिया गया हो, उनका कत्लेआम किया गया हो, उसके लिए प्रदर्शन होने चाहिए। लेकिन देखने में आया है कि इस्राएल के पक्ष में अभी तक कोई प्रदर्शन नहीं हुए, मोमबत्तियां नहीं दिखीं, कहीं कोई मानव शृंखला नहीं बनी। इसका अर्थ यही है कि ये लोग अपने हित के लिए ही खर-पतवार उगाते है।
क्या आपको लागता है कि इस तरह की विचारधारा वाले लोग हर समाज के शत्रु है?
इस प्रश्न पर ध्यान दने की जरूरत है, क्योंकि हमें यही नहीं पता कि हमारा शत्रु कौन है? हम अभी तक शत्रु से परिचित नहीं हैं। हमारे अंतर्मयी शत्रु बैठे हैं, जो हमारी मान्यताओं पर प्रहार करते हैं। वे अचानक जनहित याचिका दाखिल कर खड़े हो जाएंगे कि धुआं मत करिए। दीपावली पर पटाखे नहीं फोड़िए। त्योहारों पर मिठाइयां बंद कराएंगे, कांवड़ से इन्हें आपत्ति होगी। असल में ये कुछ अलग प्रकार के लोग हैं, जो ठीक समय पर उगते हैं। इसको समझना होगा।
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