‘हिन्दुओं को अपनी एकजुटता और सामर्थ्य को समझना होगा। जब हम अपनी एकजुट शक्ति प्रदर्शित करेंगे, तब बाकी सब अपने आप रास्ते पर आ जाएंगे। डॉ. अब्दुल कलाम कहते थे कि शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है। हमें उसी शक्ति का प्रदर्शन करना है।’ चिन्मय मिशन के आध्यात्मिक गुरु स्वामी मित्रानंद द्वारा दिए गए वक्तव्य के संपादित अंश इस प्रकार हैं :
हम साथ हैं, तभी हमारा अस्तित्व है। विचारधाराओं में सहमति नहीं होने पर भी सनातन धर्म मूलत: समावेशी है। कोई वेद पर विश्वास करता है, कोई नहीं करता; कोई ईश्वर को मानता है, तो कोई नास्तिक है। लेकिन सनातन धर्म में सबके लिए स्थान है। यही बात हिन्दू संगठनों को समझनी होगी। उन्हें एक-दूसरे की सराहना करनी होगी, एक दूसरे को प्रोत्साहित करते हुए एकजुट होकर एक दिशा में बढ़ना सीखना होगा।
हमें नृसिंह अवतार की कहानी याद करनी चाहिए। हिरण्यकश्यपु का क्या दोष था कि वह मारा गया? वह कहता था कि वही अकेला ईश्वर है और सब उसकी पूजा करें, जो ऐसा नहीं करेंगे, उन्हें वह मार डालेगा। इसीलिए उसका वध करने के लिए नृसिंह भगवान को अवतार लेना पड़ा। तब एक हिरण्यकश्यपु था, आज तो इस तरह का आग्रह करने वाले दो-दो हिरण्यकश्यपु हमारे सामने हैं। ऐसे में, आज फिर हमें नृसिंह का आह्वान करने की आवश्यकता है। प्रश्न है, वह प्रकट कैसे होंगे? ये दोनों हिरण्यकश्यपु तो काफी ताकतवर हैं और उनके सामने बाकी सभी संगठन नन्हे प्रह्लाद जैसे हैं! इसलिए, हमें एकजुट होना होगा। जब हम संगठित होंगे, तभी नृसिंह अवतरित होंगे।
हम हिन्दुओं को अपनी एकजुटता की मजबूती, इसके सामर्थ्य को समझना होगा। जब हम अपनी एकजुट शक्ति को प्रदर्शित करेंगे, तब बाकी सब अपने आप रास्ते पर आ जाएंगे। डॉ. अब्दुल कलाम कहते थे कि शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है। हमें उसी शक्ति का प्रदर्शन करना है।
हमने अपनी एकजुटता को कम करके आंका है। इसीलिए हम अपने आप को कमजोर समझते हैं। हम हिन्दुओं को अपनी एकजुटता की मजबूती, इसके सामर्थ्य को समझना होगा। जब हम अपनी एकजुट शक्ति को प्रदर्शित करेंगे, तब बाकी सब अपने आप रास्ते पर आ जाएंगे। डॉ. अब्दुल कलाम कहते थे कि शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है। हमें उसी शक्ति का प्रदर्शन करना है।
एक बार मैंने कुछ युवाओं से पूछा कि किसी ऐसे व्यक्ति का नाम बताओ जिसने लोगों की बहुत सेवा की हो, तो उनका उत्तर था- मदर टेरेसा। तब मैंने कहा कि आप इतना ही जानते हो? माता अमृतानंदमयी को क्यों नहीं जानते? जबकि अम्मा का सेवा काम तो कई गुणा बड़ा है। ऐसे ही इस्कॉन को क्यों नहीं जानते? यह संस्था 23 लाख बच्चों को हर दिन भोजन कराती है और उसका लक्ष्य अगले वर्ष इस संख्या को बढ़ाकर प्रति दिन 30 लाख करने का है।
यह तो केवल एक संगठन की बात है। न जाने कितने धर्मस्थान, कितने अन्नदान से जुड़े संगठन हैं, जो इस प्रकार के कार्य प्रति दिन कर रहे हैं। अगर हम इन्हें जोड़ लें, तो कल्पना कीजिए कि लोगों को भोजन कराने की हमारी कैसी क्षमता सामने आएगी? विद्या भारती को लीजिए, इस एक संस्था के कई हजार विद्यालय चल रहे हैं। सभी हिन्दू संगठनों को मिलाकर सोचें, शिक्षा के क्षेत्र में उनका कितना बड़ा योगदान है। वैसे ही स्वास्थ्य सेवाओं और अस्पतालों के बारे में सोचें। हम चुपचाप सेवा करते रहे और लोगों का इस ओर ध्यान ही नहीं गया। कारण यह कि हमने प्रचार के बारे में सोचा ही नहीं, जबकि कुछ लोगों ने ढिंढोरा पीट-पीटकर अपने को स्थापित कर दिया।
हमें ‘विश्व गुरु’ की अपनी स्थिति को वापस पाना है। मैं पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर को वापस पाने की बात नहीं कर रहा, क्योंकि जानता हूं कि ये तो हमारे जीवन काल में ही हो जाएगा। मैं उससे कहीं आगे की बात कर रहा हूं। मैं जिस खोए स्थान को पाने की बात कर रहा हूं, उसे पूरा होने में लंबे कालखंड की आवश्यकता है। लेकिन सभी हिन्दू संगठनों को अपनी अगली पीढ़ी की आंखों में इस सपने को संजोते जाना होगा। हम जो कर सकते हैं करें, फिर यह मशाल युवाओं को सौंप दें।
हमारे पास कहने को बहुत कुछ है, लेकिन हमने कहा नहीं। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने हिन्दू आध्यात्मिक सेवा मेले का आयोजन शुरू किया। इसमें विभिन्न हिन्दू संगठनों को भाग लेने और यह समाज को यह बताने को अवसर मिला कि वे क्या करते हैं। जब हमने 2009 में यह मेला शुरू किया, तो केवल 35 संगठनों ने इसमें भाग लिया था। आज इसमें सैकड़ों संगठनों की भागीदारी होती है। जब लोग मेले को देखकर निकलते हैं तो उनके पास एक मोटा-मोटा आंकड़ा होता है और वे हैरान रह जाते हैं कि ये संगठन कितने बड़े पैमाने पर सेवा के काम कर रहे हैं।
बहुत आवश्यक है कि जो हो रहा है, वह दिखे। जब दिखेगा तो लोग सराहना करेंगे और तब सामूहिक शक्ति का भान होगा। इसके लिए हिन्दू संगठनों को सामूहिक रूप से एक दिशा में बढ़ना होगा। हमें शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना सामर्थ्य दिखाना है। इस दिशा में एक छोटी सी पहल हुई है- ‘वाहा’ अर्थात विश्व हिन्दू शिक्षाविद संघ। अभी इसमें कुछ सौ हिन्दू शिक्षाविद हैं, हमें इनकी संख्या को हजारों में ले जाना है। यदि कोई हिन्दुत्व को अवैज्ञानिक कहे तो हमारे पास उनका उत्तर देने के लिए शिक्षाविद होने चाहिए। ‘वाहा’ की ही तर्ज पर हमारे पास हिन्दू वकीलों का समूह होना चाहिए जिससे कि जब भी कोई कुछ आपत्तिजनक बोले तो उसका कानूनी तरीके से मुकाबला करने को तत्पर एक समूह हो। अपनी शक्ति को दिखाने के लिए हमें इस तरह के छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे।
याद रखें, हमने जो भी खोया है, उसे पाना है। हमें ‘विश्व गुरु’ की अपनी स्थिति को वापस पाना है। मैं पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर को वापस पाने की बात नहीं कर रहा, क्योंकि जानता हूं कि ये तो हमारे जीवन काल में ही हो जाएगा। मैं उससे कहीं आगे की बात कर रहा हूं। मैं जिस खोए स्थान को पाने की बात कर रहा हूं, उसे पूरा होने में लंबे कालखंड की आवश्यकता है। लेकिन सभी हिन्दू संगठनों को अपनी अगली पीढ़ी की आंखों में इस सपने को संजोते जाना होगा। हम जो कर सकते हैं करें, फिर यह मशाल युवाओं को सौंप दें। जो खोया, उसे पाने की यह लौ जलती रहनी चाहिए। यही भावना सभी हिन्दू संगठनों की होनी चाहिए। यदि खोए को पाने की यह अलख जलती रही, तो इतना तय है कि जो है, हम उसे कभी नहीं खोएंगे। और फिर, कभी न कभी हमारी कोई न कोई पीढ़ी हमारा वह खोया हुआ कल पा लेगी।
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