बेंगलुरु, कर्नाटक में समलैंगिकों एवं ट्रांसजेंडर के कथित अधिकारों को लेकर निकाला जा रहा कथित प्राइड जुलूस या कहें आन्दोलन विवादों में आ गया है। बात हो रही थी समलैंगिकों और ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों को लेकर और नारे लगाए गए “मनुवाद से आजादी, ब्राह्मणवाद से आजादी और हिंदुत्व से आजादी!”
जैसे ही यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, वैसे ही लोगों का गुस्सा इस कथित प्राइड परेड पर फूट पड़ा। लोगों का कहना था कि यह कथित प्राइड मार्च था या फिर राजनीतिक मार्च? यह वामपंथी नारा समलैंगिकों के आन्दोलन में क्या कर रहा था? यह आयोजन नम्मा प्राइड 2023 के नाम से हुआ था और संपर्क करने वालों में आयान सईद, दिल फराज और मलाम्मा का नाम लिखा हुआ था।
#nammapride#nammapride2023#bangalore#bengaluru#lgbt#lgbtpride#lgbtq#queer pic.twitter.com/wG5j1hXxsk
— Manohar Elavarthi/ ಮನೋಹರ್ ಎಲವರ್ತಿ (@manoharban) November 26, 2023
इसमें कई मांगे की गईं थी जैसे कि कर्नाटक सरकार एक ट्रांसजेंडर कॉर्पोरेशन का गठन करे और वायदे के अनुसार 200 करोड़ रुपए का अनुदान दे। उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास और अन्य सुविधाओं में आरक्षण दिया जाए। यौन कर्मियों के साथ पुलिस की हिंसा बंद हो और उनके अधिकारों की रक्षा हो। एचआईवी से पीड़ित ट्रांस लोगों को कर्नाटक सरकार की योजनाओं में लाभ मिले और उन्हें कई योजनाओं के अंतर्गत भी अधिकार मिले जैसे अन्त्योदय अन्न योजना, आईसीडीएस डबल न्यूट्रीशन आदि में।
ऐसे लगभग नौ अधिकारों की मांग इस आन्दोलन के माध्यम से की गई। यहां तक केवल यह बात एलजीबीटीक्यू+ लोगों के अधिकारों की ही बात थी, मगर जब यह जुलूस बंगलुरु की सड़कों पर था, तो इसमें वही नारे लगने लगे जो वर्तमान में कांग्रेस के नेता और उस समय वामपंथी नेता कन्हैया कुमार ने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में लगाए थे। ये नारे थे – हिंदुत्व से आजादी
Pride is political. If you can’t digest this, be at home sweetie 🍬 pic.twitter.com/iOnL2ranQW
— Sri Krishna 🌈 (@srikri_a) November 30, 2023
वही आजादी के नारे, मनुवाद से आजादी, ब्राह्मणवाद से आजादी और अंतत: हिंदुत्व से आजादी! अब प्रश्न यह उठता है कि एलजीबीटीक्यू के आन्दोलन में हिंदुत्व से आजादी की बात क्यों की जा रही है? क्या कभी किसी भी हिंदूवादी नेता ने समाज के इस वर्ग के इन किसी भी अधिकारों का विरोध किया? क्या किसी भी धर्मग्रन्थ का हवाला देकर यह स्थापित करने का प्रयास किया गया कि इसका परिणाम मृत्यु है या फिर क्या भारत में ऐसे किसी भी जोड़े को समाज से कोई दंड दिया गया? इन सभी का उत्तर न में ही मिलेगा, क्योंकि हिन्दू धर्म से अधिक समावेशी धर्म कोई हो ही नहीं सकता जो सर्वे भवन्तु सुखिन: की बात करता है।
वहीं हिंदुत्व से आजादी की बात करने वाले लोग और इस आन्दोलन में आए हुए लोग शायद ही उन उदाहरणों पर दृष्टिपात किए होंगे, जो इस्लामिक देशों में एलजीबीटीक्यू लोगों के साथ हो रहे हैं। जब हिंदुत्व से आजादी के नारे लगाए जा रहे थे, उसी समय रूस जैसे देश में गे बार्स पर पुलिस के छापे मारे जा रहे थे क्योंकि वहां पर सर्वोच्च न्यायालय ने एलजीबीटीक्यू+ आन्दोलन को “चरमपंथ” का नाम दिया था।
वहीं कुछ दिन पहले ही तुर्किये में इस्तांबुल में इस्तांबुल प्राइड को पुलिस ने रोक दिया था। जिस फिलिस्तीन के अधिकारों के लिए कथित रूप से यह एलजीबीटीक्यू लोग खड़े होते हैं, उसी फिलिस्तीन में वेस्ट बैंक में और गाजा में एलजीबीटीक्यू वाले लोग अपनी जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते हैं। क्योंकि अधिकतर फिलिस्तीन और उनके राजनीतिक आका समलैंगिकों से घृणा करते हैं एवं उनकी मौत चाहते हैं। अभी बहुत पहले की बात नहीं है जब एक समलैंगिक फिलिस्तीन युवक अहमद अबू मार्हिया को वेस्ट बैंक में गला काटकर मौत के घाट उतार दिया गया था। वह अपनी जान बचाने के लिए इजरायल में था और कभी कभी छुपकर अपने अभिभावकों से मिलने आया करता था।
यमन में होमोसेक्सुअल संबंधों को लेकर विवाहित पुरुष को पत्थरों से मारने की सजा है तो अविवाहित पुरुष को एक वर्ष की जेल और महिलाओं के लिए 7 वर्ष की सजा है। ईरान में भी होमोसेक्सुअल संबंधों को लेकर पुरुषों को मृत्युदंड तक दिया जा सकता है और साथ ही महिलाओं को कोड़ों की सजा दी जा सकती है। वर्ष 2022 में अक्टूबर माह में तालिबान सरकार द्वारा एक समलैंगिक युवक की तड़पा-तड़पा कर हत्या कर दी गयी थी, जो उस समय मेडिकल की तैयारी कर रहा था। हामिद सबूरी के परिवार और साथी के अनुसार उसे काबुल में अगस्त में एक चेक पॉइंट पर पकड़ा गया और फिर मरने से पहले तक उसे बहुत तड़पाया गया और फिर उसे मार डाला गया। उसकी हत्या का वीडियो उसके परिवार तक पहुंचा दिया गया था, जो अपनी सुरक्षा के चलते अफगानिस्तान से निकल गए थे।
मुस्लिम देशों में ऐसे कई उदाहरण सामने आते हैं, मगर इन मरते हुए एलजीबीटीक्यू पहचान के लोगों के लिए न्याय मांगने का कोई भी कदम इन कथित प्राइड परेडों में नहीं उठाया जाता? क्यों वर्ष 2021 में ईरान में मारे गए अली फ़ाज़ली मोंफरेड की हत्या पर बात नहीं होती, जिसे उसके घर के ही कुछ पुरुष सदस्यों ने मार डाला था क्योंकि उन्हें यह पता चल गया था कि वह समलैंगिक है। जितने भी प्राइड आन्दोलन होते हैं और जिनमें भी तमाम एलजीबीटीक्यू के अधिकारों की माग की जाती है, उन जुलूसों में कितने वक्ता ऐसी हत्याओं में मारे गए उन लोगों के बारे में बात करते हैं जिन्हें ईरान, अफगानिस्तान, फिलिस्तीन जैसे देशों में मात्र उनकी लैंगिक पहचान के चयन के अधिकार को लेकर मार डाला जाता है?
हिंदुत्व से आजादी की बात करने वाले कितने लोग अहमद अबू मार्हिया का नाम भी जानते होंगे, जिन्हें अक्टूबर 2022 में फिलिस्तीन में वेस्ट बैंक में गला काट कर मार डाला गया था। यह भी कहा जाता है कि फिलिस्तीन के समलैंगिक एवं ट्रांस लोग इजरायल में शरण लेते हैं जिससे उनकी जान बच सके। हिंदुत्व से आजादी की मांग करने वाले लोग एक भी ऐसे उदाहरण को देने में अक्षम रहते हैं, जिसके आधार पर हिन्दू धर्म को कोसा जा सके, मगर फिर भी देश एवं समाज तोड़ने वाली शक्तियाँ ऐसे हर आन्दोलन का प्रयोग अपनी विकृत सोच का प्रदर्शन करने के लिए करती हैं और नारे लगवाती हैं कि हिंदुत्व से आजादी, जबकि उन्हें भी यह बात सबसे अच्छी तरह से पता है कि जब तक हिंदुत्व है तभी तक उन्हें अपनी बात रखने की आजादी भी है।
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