उत्तरकाशी-यमुनोत्री मार्ग पर सिलक्यारा के पास बन रही सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सकुशल निकाल लिया गया है, वैसे ही पूरी दुनिया में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी आश्चर्यचकित थे कि श्रमिकोें ने 17 दिन तक कमाल की जिजीविषा दिखाई।
गत 28 नवंबर की रात जैसे ही यह खबर आई कि उत्तरकाशी-यमुनोत्री मार्ग पर सिलक्यारा के पास बन रही सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सकुशल निकाल लिया गया है, वैसे ही पूरी दुनिया में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी आश्चर्यचकित थे कि श्रमिकोें ने 17 दिन तक कमाल की जिजीविषा दिखाई। उसी ने इन श्रमिकों का हौंसला बनाए रखा। इन श्रमिकों के बाहर निकलने की खुशी में कई स्थानों पर उसी रात दीपावली मनाई गई।
उल्लेखनीय है कि 12 नवंबर को जब पूरा देश दीपावली मना रहा था, तभी भूधसान के कारण ये श्रमिक निर्माणाधीन सुरंग में फंस गए थे। इसके बाद से ही इन्हें बाहर निकालने के लिए लगातार अनेक प्रयास किए गए। उन प्रयासों का ही सुपरिणाम है कि इन श्रमिकों को नया जीवन मिला। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय सड़क परिवहन राज्यमंत्री जनरल (से.नि.) वी. के. सिंह ने सुरंग से बाहर आए श्रमिकों का स्वागत किया। इसके बाद इन श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच कराई गई। सभी श्रमिक स्वस्थ हैं। फिर भी इन्हें कुछ दिनों तक चिकित्सकों की देखरेख में रखने के बाद घर भेजा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड सरकार से कहा है कि वह इन श्रमिकों की देखभाल में कोई कसर न रखे।
आस्था और विश्वास
भले ही विज्ञान ने अपूर्व प्रगति कर ली हो, लेकिन उसकी भी अपनी सीमा है। उस सीमा के बाद अध्यात्म ही मनुष्य का बेड़ा पार लगाता है। जब सुरंग बनाने का काम शुरू हुआ था, तब वहां स्थित बौखनाग देवता के मंदिर को तोड़ÞÞÞÞ दिया गया था। उस समय स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था। गांव वालों का कहना था कि देवभूमि में स्थान-स्थान पर ऐसे देवता हैं, जो हर विकट स्थिति से लोगों को बचाते हैं। मंदिर तोड़ने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। उस समय संबंधित अधिकारियों ने गांव वालों को भरोसा दिया था कि मंदिर बना दिया जाएगा, लेकिन तीन वर्ष तक मंदिर फिर से नहीं बनाया गया।
जब अभियान के दौरान बाधाएं आने लगीं, तो स्थानीय लोगों ने एक बार फिर से कहा कि देवता अप्रसन्न हैं, इसलिए उनका मंदिर बनाया जाए। गांव वालों की इस बात से अधिकारी सहमत हुए और उन्होंने सुरंग के बाहर बौखनाग का एक अस्थाई मंदिर बनवाया। इसके बाद बचाव कार्य में लगे अधिकारी और कर्मचारी कार्य शुरू करने से पहले उस मंदिर में प्रार्थना करने लगे। यही नहीं जब आर्नोल्ड डिक्स सुरंग पर पहुंचे तो उन्होंने भी बौखनाग जी की पूजा की।
अपना सिर जमीन पर लगा कर प्रणाम किया। उसके बाद वे बचाव कार्यों की योजना बनाने में जुटे। दरअसल, आर्नोल्ड उत्तरकाशी क्षेत्र में पहले भी टनल कार्य कर चुके हैं। देवभूमि में रहने की वजह से वे भी जानते थे कि इस भूमि पर देवताओं की कितनी मान्यता है। राहत कार्य के दौरान ही बौखनाग देवता के लिए हवन-पूजन भी किया गया। देवों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन राज्यमंत्री वी. के. सिंह भी अपना शीश झुकाने वहां पहुंचे। स्थानीय लोगों को पूरा भरोसा था कि सुरंग में आ रही मुश्किलें दूर होंगी और ऐसा ही हुआ। जबकि एक समय आगार मशीन टूट जाने पर आर्नोल्ड डिक्स ने यहां तक कह दिया था कि अब बचाव के काम के लिए क्रिसमस तक यानी एक माह का और इंतजार करना पड़ सकता है।
मुख्यमंत्री धामी भी बौखनाग देवता की पूजा करते दिखे। श्रमिकों के बाहर निकलने पर उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड देवभूमि है। यहां के स्थानीय देवी-देवताओं का सम्मान किया जाना जरूरी है। वैसे हादसों के कई कारण होते हैं। हमें इस घटना से यह सबक लेना चाहिए कि हम किसी भी कार्य को करने से पहले स्थानीय देवी-देवता की अनुमति जरूर लें। उन्होंने यह भी कहा कि बौखनाग देवता की कृपा से ही श्रमिक बाहर निकल पाए।
सहायता में आगे आया समाज
सुरंग से निकाले गए श्रमिकों की सहायता के लिए अनेक लोग और संगठन आगे आए हैं। सुप्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू ने प्रत्येक श्रमिक के खाते में 15,000 रु. जमा कराए हैं। नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी ने सभी श्रमिकों को 2,00,000 रु. देने की घोषणा की है। उत्तराखंड सरकार ने श्रमिकों को 1,00,000 रु. का चेक दिया है। वहीं बचाव कार्य में लगे ह्यरेट माइनिंगह्ण श्रमिकों को उत्तराखंड सरकार 50,000 रु. देगी।
यह हादसा तब हुआ जब भागीरथी घाटी और यमुना घाटी को जोड़ने वाली ह्यआल वेदर रोडह्ण पर बन रही सुरंग के अंदर काम चल रहा था। अचानक सुरंग के बीच में करीब 60 मीटर का हिस्सा गिर गया। सुरंग में मलबा भर जाने से रास्ता अवरुद्ध हो गया। इस कारण सुरंग में 41 श्रमिक फंस गए। उन्हें निकालने के लिए कई देशों के सुरंग विशेषज्ञों को घटनास्थल पर बुलाना पड़ा। दरअसल, गिरे हुए मलबे को जैसे ही हटाने के प्रयास होते ऊपर से और मलबा गिरने लगता। इससे परियोजना से जुड़े अभियंताओं को इस बात का एहसास हो गया कि जहां से मलबा गिर रहा है वह भुरभुरा पहाड़ है, जबकि पहले यहां पथरीला पहाड़ होने का अनुमान लगाया गया था।
हालांकि फंसे हुए श्रमिकों के पास बिजली, संचार और करीब दो किमी की जगह भी थी। इसके साथ ही उन्हें पहले से मौजूद चार इंच की पाइप लाइन के जरिए भोजन के रूप में मेवे आदि पहुंचाए जा रहे थे। बाद में श्रमिकों तक पका हुआ खाना भी पहुंचने लगा। इस कारण इन श्रमिकों को भरोसा हो गया कि वे सुरक्षित हैं। इस बात को सुरंग से बाहर निकले एक श्रमिक ने भी बताया। इन श्रमिकों को निकालने के लिए जहां आधुनिक तकनीक का सहारा लिया गया, वहीं लगभग 1,000 बचावकर्मियों ने दिन-रात कड़ी मेहनत की। इसके साथ ही इन श्रमिकों की सुरक्षा के लिए करोड़ों लोगों ने भगवान से प्रार्थनाएं कीं। स्थानीय लोगों ने तो इन श्रमिकों के लिए पूजा-अनुष्ठान
भी किया।
गई मौत जब हार
आया खुशियां लेकर, मंगल का यह वार।
मजदूरों के धैर्य से, गई मौत जब हार।।
गई मौत जब हार, खुले जीवन के द्वारे।
सत्रह दिन के बाद, सुरक्षित निकले प्यारे।।
मिला सभी का साथ, काम संभव हो पाया।
जीत गए फिर जंग, आज शुभ दिन यह आया।।
-डॉ. राजेन्द्र कुमार अवस्थी
इस बीच इन श्रमिकों को सकुशल निकालने के लिए कई दिशाओं से प्रयास किए गए। विशेषज्ञों की राय पर अनेक बार दिशा भी बदली गई। इसी दौरान आस्ट्रेलिया, नार्वे, अमेरिका और अन्य देशों के सुरंग विशेषज्ञ भी यहां पहुंचे। सेटेलाइट के जरिए पर्याप्त जानकारी हासिल करने के बाद सुरंग का रास्ता खोलने के लिए पांच विकल्प सामने आए। सबसे बेहतर विकल्प आस्ट्रेलिया के सुरंग विशेषज्ञ आर्नोल्ड डिक्स ने सुझाया। इसके तहत पहले से अधूरे डाले गए 900 मिमी के पाइप के बीच में एक और 800 मिमी के लोहे के पाइप को डाल कर दोनों को वेल्डिंग से जोड़ दिया गया। जमीन में सुराख कर इसी पाइप को अंदर डाला गया। दिन-रात के अथक प्रयासों के बाद 25 नवंबर को सुराख करने वाली आगर मशीन के ब्लेड भी टूट गए।
हताशा और निराशा के बीच सेना के इंजीनियरिंग कोर के अधिकारियों और जवानों को बुलाया गया। इसके साथ ही पुरानी भारतीय चूहा तकनीक, जिसे कोयले की खदानों में इस्तेमाल किया जाता है, को आजमाया गया। इसके अंतर्गत बचावकर्मियों ने पाइप के अंदर जाकर छोटे औजारों से मिट्टी को हटाया। एक साथ दो बचावकर्मी पाइप के अंदर काम करते थे। वे लोग जो मिट्टी खुरचते, उसे बाहर मौजूद बचावकर्मी ट्रॉली के जरिए बाहर खींच लेते। जैसे-जैसे मिट्टी छीजती गई, वैसे-वैसे पाइप को अंदर धकेला जाता रहा। इन बचावकर्मियों ने लगातार कई घंटों तक यह कार्य किया और अंत में 28 नवंबर को वह कार्य कर दिखाया, जिसकी मिसाल और कहीं नहीं मिलती। उन्होंने उस पाइप को श्रमिकों तक पहुंचा दिया। एनडीआरएफ के जवान इसी पाइप के जरिए श्रमिकों तक पहुंचे और उसके बाद कुछ ही समय में सभी श्रमिकों को सुरंग से बाहर निकाल लिया गया।
मोर्चे पर डटे रहे धामी
सुरंग में श्रमिकों के फंसने की खबर आने के कुछ देर बाद ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी घटनास्थाल पर पहुंच गए थे। इसके बाद भी वे अनेक बार वहां गए और बचाव कार्य का निरीक्षण किया। अंत में उन्होंने सुरंग के पास स्थित एक गेस्ट हाउस में अपना कैंप कार्यालय बनाया। इससे बचाव कार्य में तेजी बनी रही। बाहर निकलाने पर सभी श्रमिकों को उत्तराखंड सरकार ने एक-एक लाख रु. का चेक दिया है।
निरंतर चिंतित रहे प्रधानमंत्री मोदी
इस बचाव कार्य को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निरंतर चिंतित रहे। वे मुख्यमंत्री धामी से लगभग रोज फोन पर बात कर कार्य की प्रगति की जानकारी लेते थे। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और राज्यमंत्री जनरल वी. के. सिंह को भी वहां भेजा। इतना ही नहीं, तेलंगाना में एक चुनावी सभा के दौरान उन्होंने लोगों से निवेदन किया कि वे सुरंग में फंसे श्रमिकों के लिए प्रार्थना करें। जब श्रमिक बाहर आए तो प्रधानमंत्री ने श्रमिकों से फोन पर बात भी की। इससे पहले उन्होंने अपने प्रधान सचिव डॉ.पी.के. मिश्र को घटनास्थल पर भेजा।प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव मंगेश घिल्डियाल ने तीन बार मौके पर जाकर हालात की जानकारी ली और वहां जरूरी उपकरण पहुंचाने में सहयोग किया। इस अभियान में पीएमओ में अधिकारी रहे भास्कर खुल्बे की भी बड़ी भूमिका रही।
संगठनों में दिखा समन्वय
इस बचाव कार्य को सफल बनाने के लिए 20 से अधिक सरकारी संगठनों को लगाया गया। इन संगठनों के आपसी समन्वय का ही परिणाम है कि सभी श्रमिक बाहर निकल पाए। पीएमओ, सड़क परिवहन मंत्रालय और अन्य केंद्रीय एजेंसियों की उच्चस्तरीय बैठक में तकनीकी सलाह पर ही विकल्प तय किए गए। राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम लि. (एनएचआईडीसीएल), तेल व प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), सतलुज जल विद्युत निगम लि. (एसजेवीएनएल), टिहरी जल विकास निगम (टीएचडीसी) और रेल विकास निगम लि. (आरवीएनएल) को एक-एक विकल्प सौंपा गया। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ), बीएसएनएल आदि को भी इस काम में लगाया गया।
आखिरी प्रयासों में सेना की इंजीनियरिंग कोर की टीम के अधिकारियों और जवानों ने अपने हाथों से मलबा हटाने का काम किया। एनएचआईडीसीएल के प्रबंध निदेशक महमूद अहमद को सभी एजेंसियों के बीच समन्वय के लिए प्रभारी बनाया गया था। इसके अलावा एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, डीआरडीओ और स्थानीय पुलिस प्रशासन ने भी सहयोग किया। इसके बाद ही यह अभियान सफलता की मंजिल तक पहुंचा। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने अभियान की निगरानी के साथ ही विशेषज्ञों को बुलाया और आवश्यक सामग्री और उपकरणों की तत्काल व्यवस्था की। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के निर्देशन में अमेरिकी आगर मशीन का संचालन ट्रेंचलेस इंजीनियारिंग सर्विस की 24 सदस्यीय टीम ने किया। देखा जाए तो श्रमिकों को बाहर निकालना इतना आसान नहीं था, लेकिन इस मामले में राजनीतिक नेतृत्व ने जबदस्त इच्छाशक्ति दिखाई। बाहर निकले श्रमिकों ने भी माना कि केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार के कारण उनकी जान बची। इसलिए श्रमिक जब बाहर निकले तब सुरंग के बाहर लोगों ने भारत माता की जय, मोदी है, तो मुमकिन है जैसे नारे भी लगाए।
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