राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि 1,000 वर्ष की पराधीनता काल में हमारी संस्कृति का क्षरण होता रहा। संस्कार भी खोने लगे। ऐसे में राष्ट्र की अखंडता के मूल को जीवित रखने की आवश्यकता पड़ने लगी।
गत दिनों लखनऊ में ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका के ‘राष्ट्रोन्मुख विकास’ विशेषांक का विमोचन हुआ। विमोचनकर्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल। उन्होंने कहा कि 1,000 वर्ष की पराधीनता काल में हमारी संस्कृति का क्षरण होता रहा। संस्कार भी खोने लगे। ऐसे में राष्ट्र की अखंडता के मूल को जीवित रखने की आवश्यकता पड़ने लगी। इसे देखते हुए ही 76 वर्ष पूर्व राष्ट्रधर्म का प्रकाशन शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि इस पत्रिका में योग्य और विद्वान लोगों के विचार प्रकाशित किए जाते रहे हैं। यह पत्रिका पाठकों को वैचारिक सामग्री देने का दायित्व निभा रही है।
इस पत्रिका के माध्यम से विचारों का संयोजन लगातार किया जा रहा है। आवश्यकता है कि हर घर में हिंदी या स्थानीय भाषा के साहित्य का एक कोना होना चाहिए। ऐसा न होने पर पठनीयता की आदत खत्म होते ही देश की संस्कृति भी प्रभावित हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि इस पत्रिका के प्रकाशन में भी कई तरह की परेशानियां आईं। आरंभ में ही गांधीजी की हत्या और उसके बाद आपातकाल में प्रकाशन करना काफी दुरूह था। इसके बाद भी प्रकाशन का कार्य कुशलता से किया गया। आज देश में जब पठनीयता की समस्या दिख रही है। लोगों की पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है, तब भी इस पत्रिका के माध्यम से विचारों का संयोजन लगातार किया जा रहा है। आवश्यकता है कि हर घर में हिंदी या स्थानीय भाषा के साहित्य का एक कोना होना चाहिए। ऐसा न होने पर पठनीयता की आदत खत्म होते ही देश की संस्कृति भी प्रभावित हो जाएगी।
राष्ट्रधर्म प्रकाशन के निदेशक मनोज कांत ने बताया कि इस अंक को राज्यों में हो रहे विकास कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रकाशित किया गया है। राष्ट्रधर्म के संपादक प्रो. ओमप्रकाश पांडेय ने कहा कि जिस प्रकार सिंह अवलोकन करके यह देखता है कि अब कितना लक्ष्य शेष है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र का अब तक कितना विकास हुआ है और कितना शेष बचा है, उसका निर्धारण करने के लिए इस विशेषांक का प्रकाशन किया गया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने की।
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