वैदिक युग में अनंत की खोज में सभी लोग लगे थे। महिलाएं भी उसमें सहभागी थीं। विश्वबारा, मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, घोषा आदि उस युग की विदुषी महिलाएं वैदिक ज्ञान विज्ञान में पारंगत थीं।
गत नवंबर को दिल्ली के वसुंधरा एन्कलेव स्थित महाराजा अग्रसेन कॉलेज के परिसर में नारी शक्ति संगम आयोजित हुआ। इसमें अनेक विषयों पर चर्चा हुई। उद्घाटन सत्र का विषय था- ‘भारतीय चिंतन में महिला।’ इसे संबोधित करते हुए अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना समिति की राष्ट्रीय महिला प्रमुख प्रो. सुष्मिता पांडे ने कहा कि वैदिक काल से ही भारतीय महिलाओं को आध्यात्मिक अधिकार एवं शैक्षणिक अधिकार प्राप्त थे। कई महिलाएं विदुषी हुईं तथा वेदों में भी उनकी ऋचाएं हैं।
वैदिक युग में अनंत की खोज में सभी लोग लगे थे। महिलाएं भी उसमें सहभागी थीं। विश्वबारा, मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, घोषा आदि उस युग की विदुषी महिलाएं वैदिक ज्ञान विज्ञान में पारंगत थीं। यही नहीं, वैदिक काल की सामान्य स्त्रियां भी वैदिक ज्ञान से परिचित थीं। इसलिए वैदिक युग को गरिमामयी काल कहा गया है। इसी तरह उस काल में स्त्रियां शास्त्र विद्या के साथ शस्त्र विद्या में भी निपुण होती थीं।
कारगिल युद्ध में महावीर चक्र से सम्मानित योद्धा बलिदानी कैप्टन अनुज नय्यर की माता मीना नय्यर ने कहा कि नारी खुद में ही बहुत शक्तिशाली है। समापन सत्र का विषय ‘भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका’ रहा।
आज जब हम किसी सभ्यता या संस्कृति का आकलन करते हैं तो उसके मूल्य क्या हैं और वे किस प्रकार से कानून में अभिव्यक्त हो रहे हैं, उसे देखना चाहिए। इसलिए सामाजिक मूल्यों और प्रतिमानों से सभ्यता का आकलन करना होता है, सामाजिक तथ्यों से नहीं, क्योंकि प्राचीनतम काल से मानव तो मानव ही है, सभी प्रकार के दोष उसमें भी हैं। वे तथ्य तो रहेंगे ही, लेकिन संविधान क्या है, मूल्य क्या हैं, उन्हें देखना चाहिए।
प्रथम सत्र की मुख्य अतिथि कारगिल युद्ध में महावीर चक्र से सम्मानित योद्धा बलिदानी कैप्टन अनुज नय्यर की माता मीना नय्यर ने कहा कि नारी खुद में ही बहुत शक्तिशाली है। समापन सत्र का विषय ‘भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका’ रहा। मुख्य वक्ता और विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष पद्मश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े ने कहा कि हमें स्वयं को योग्य व सक्षम बनाकर हर परिस्थिति का सामना करने वाली महिला बनना है।
पूर्वी दिल्ली की पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अमृता गुगुलोथ ने कहा कि नाबालिग बच्चियों के घर से भागने की घटनाएं चितिंत करती हैं। चॉकलेट, रोज, टेडी बेयर, बाइक की सवारी के आकर्षण में अबोध बालिकाएं परिणाम के खतरे से अनभिज्ञ अनजान युवकों के हाथों अपना भविष्य समाप्त कर देती हैं। इसलिए माताओं तथा महिला संगठनों को इस आयु वर्ग की बालिकाओं की जागरूकता के लिए विशेष प्रयास करने चाहिए।
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