आप सभी ने 100 रुपए के नोट पर छपी इमारत तो देखी ही होगी, उसे देखने के बाद आपके मन में यह सवाल भी आया होगा कि आखिर यह कौन सी इमारत है? गहरे बैंगनी रंग के 100 वाली नए नोट पर प्रिंट ऐतिहासिक स्थल रानी की वाव है। इसे रानी की बावड़ी नाम से भी जाना जाता है। अहमदाबाद से लगभग 140 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में पाटन शहर के पास स्थित है, जो सोलंकी वंशज की प्राचीन राजधानी हुआ करती थी। पहली सहस्राब्दी के बदलते युग के दौरान सोलंकी वंशजों ने इस क्षेत्र पर शासन किया। राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस वाव का निर्माण कराया था।
यूनेस्को ने इस बावड़ी को 2014 में विश्व धरोहर में शामिल किया और इसे बावड़ियों की रानी की उपाधि भी दी है। 2016 में रानी की वाव को सबसे स्वच्छ आइकॉनिक प्लेस का खिताब भी दिया गया था।
इस बावड़ी का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी के एक राजा की याद में करवाया गया था। इसका उपयोग इसकी स्थापत्य शैली और जल संग्रह प्रणाली के उत्कृष्ट उदाहरण को दर्शाने के लिए किया गया है।
इस बावड़ी के निर्माण के पीछे मुख्य कारण जल प्रबंधन था, क्योंकि इस क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती थी। पुरानी कहानियों के अनुसार इसके पीछे एक और कारण यह भी हो सकता है कि रानी उदयमती जरूरतमंद लोगों को पानी पिलाकर पुण्य कमाना चाहती थीं। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि यहां की शिल्पकारी को देखकर इस वाव के मंदिर होने का भ्रम हो जाता है।
रानी की वाव भूमिगत जल संसाधनों और जल भंडारण प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो भारतीय महाद्वीप में बहुत लोकप्रिय रही है। ऐसी बावड़ियों का निर्माण वहां तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से होता आ रहा है।
सात मंजिला वाव मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का खूबसूरती से उपयोग किया गया है, जो जल संचयन तकनीकों की जटिलता और उत्कृष्ट कला का प्रदर्शन करता है। रानी की बावड़ी में कई मूर्तियों और कलाकृतियां की नक्काशी की गई है जो भगवान विष्णु से संबंधित हैं। यहां भगवान विष्णु के दशावतार रूप में मूर्तियां बनी हुई हैं। हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु के दस अवतारों जिनमें राम, कृष्ण, वाराही, कल्कि, नरसिम्हा, वामन और अन्य प्रमुख अवतारों की कलाकृतियां बनाई गई हैं। इसके अलावा दुर्गा, लक्ष्मी, पार्वती, गणेश, ब्रह्मा, कुबेर, भैरव, सूर्य समेत कई देवी-देवताओं की कलाकृतियां भी देखी जा सकती हैं।
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