भारत के पड़ोसी इस्लामी देश पाकिस्तान की सरकार भारत के जम्मू—कश्मीर के अधिक्रांत हिस्से गिलगित बाल्टिस्तान में जिस तरह का दमनकारी बर्ताव कर रही है उसके प्रति लोगों में आक्रोश उबलता रहा है। इधर कुछ दिन से वहां रोजाना प्रदर्शन किए जा रहे हैं और इलाके के विकास और लोगों की स्थिति में सुधार की तरफ ध्यान देने की मांग की जा रही है।
गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग इस्लामाबाद में बैठी सरकार से इतने नाराज हैं कि अब खुद के साथ किए जा रहे दोगले बर्ताव को और बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। स्थानीय लोग आएदिन तरह तरह की मुश्किलों का सामना करने को मजबूर बना दिए गए हैं। यहां रहने वालों को जिस प्रकार के हक दिए जाने चाहिए थे वे उन्हें कभी दिए ही नहीं गए। यही वजह है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों के पास न रोजगार हैं, न सड़कें हैं, न बिजली है और न पीने को पर्याप्त पानी ही मिल रहा है। सरकार यहां से भारी मात्रा में कर तो वसूलती है लेकिन उसमें से यहां के विकास के लिए कुछ नहीं देती।
गिलगित बाल्टिस्तान के मुद्दे उठाती आ रही अवामी एक्शन कमेटी का मानना है कि पाकिस्तन की सरकार इस क्षेत्र के पहाड़ों, घूमने फिरने के स्थलों तथा यहां आने वाले पर्यटकों से भारी कर वसूलती है। लेकिन इस कर संग्रह से इस इलाके पर उतना खर्च नहीं करती जो यहां बुनियादी जरूरतों के लिए चाहिए। इस इलाके का हक मारा जा रहा है। पर्यटन के मद में जो पैसा करों से वसूला जा रहा है वह पूरा केन्द्र सरकार के पल्ले में चला जाता है।
पाकिस्तान का गिलगित-बाल्टिस्तान पर कब्जा इन लोगों को इतना चुभने लगा है कि वे विभिन्न माध्यमों से अपनी आवाज इस्लामाबाद में बैठे नीतिकारों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इस क्षेत्र में अनेक राजनीतिक सामाजिक संगठन हैं जिनके माध्यम से स्थानीय निवासी अपनी शिकायतें मुखर कर रहे हैं। अवामी एक्शन कमेटी यहां काफी सक्रिय है। इस तंजीम की ओर से गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में सरकार द्वारा करों में उस स्थान के जायज हक को दिए जाने की बात उठाई गई है। अधिक्रांत जम्मू कश्मीर में इस कमेटी की ओर से कितनी ही विरोध सभाएं, रैलियां और प्रदर्शन किए जा चुके हैं। हाल ही में ऐसी अनेक विरोधी रैलियां आयोजित की गई हैं।
गिलगित बाल्टिस्तान के मुद्दे उठाती आ रही अवामी एक्शन कमेटी का मानना है कि पाकिस्तन की सरकार इस क्षेत्र के पहाड़ों, घूमने फिरने के स्थलों तथा यहां आने वाले पर्यटकों से भारी कर वसूलती है। लेकिन इस कर संग्रह से इस इलाके पर उतना खर्च नहीं करती जो यहां बुनियादी जरूरतों के लिए चाहिए। फैजान मीर इसी कमेटी के एक सक्रिय सदस्य हैं, जो कहते हैं कि इस इलाके से इसका हक मारा जा रहा है। पर्यटन के मद में जो पैसा करों से वसूला जा रहा है वह पूरा केन्द्र सरकार के पल्ले में चला जाता है।
मीर को इस बात का दर्द है कि यहां की सड़कों पर टोल के माध्यम से वसूले जा रहे करोड़ों रुपये भी इस्लामाबाद के खाते में जा रहे हैं। उसका कुछ हिस्सा भी गिलगित बाल्टिस्तान के विकास पर खर्च नहीं किया जाता। यहां के लोगों के पास रोजगार की कमी है, बुनियादी सुविधाओं की कमी है। लेकिन इस ओर ध्यान देने की फुर्सत इस्लामाबाद में बैठे हुक्मरानों को कभी मिली ही नहीं।
टिप्पणियाँ