इजरायल की महिलाओं के साथ 7 अक्टूबर 2023 को हमास के आतंकियों द्वारा जो दरिंदगी हुई है, वह किसी से छिपी नहीं है। मगर यह भी किसी से नहीं छिपा है कि अंतरराष्ट्रीय महिला संगठनों ने इन महिलाओं की पीड़ा को नहीं उठाया है। जिन लड़कियों का अपहरण किया गया, बलात्कार किया गया, बलात्कार के बाद हत्या की गयी, उनकी पीड़ा का विमर्श नदारद है। अब इस पर इजरायल की प्रथम महिला का दर्द भी उभर कर आया है।
इजरायल की प्रथम महिला मिशाल हर्जोग ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा कि 7 अक्टूबर 2023 को हमास के आतंकी हमले को लेकर आखिर महिला संगठनों में इतनी चुप्पी क्यों है? उन्होंने कई महिलाओं से बात की, जो उस दिन के हमले में किसी तरह बच गयी थीं। उन महिलाओं की कहानियों में आतंक का सामना करने की कहानियां हैं और साथ ही एक प्रश्न भी कि आखिर इन पीड़ाओं पर चुप्पी क्यों?
On October 7, Israeli women and girls experienced horrific acts of sexual and physical violence by Hamas terrorists.
The silence from some international bodies is a betrayal of all women.
Read this important piece by our First Lady Michal Herzog.https://t.co/kKuV0uKHg2
— Israel ישראל (@Israel) November 22, 2023
उन्होंने लिखा कि 25 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली द्वारा निर्धारित महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष वह उस दिन महिला अधिकारों और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं एवं पीड़ित महिलाओं के लिए कार्यक्रम आयोजित करती हैं। मगर इस वर्ष उनका कहना है कि यह वर्ष एकदम अलग होने वाला है। 7 अक्टूबर 2023 के बाद से ही परिस्थतियाँ एकदम बदल गयी हैं, जब हमास के हजारों आतंकवादियों ने इजरायली परिवारों की हत्या की, बच्चों और बुजुर्गों को जिंदा जलाया और न जाने कितने लोगों का अपहरण किया।
इसने लिंग आधारित यौन हिंसा की क्रूरता के बारे में हमारी गहरी समझ और महिलाओं की देखभाल करने का दावा करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों में हमारे विश्वास को दहलाकर रख दिया है। उन्होंने लिखा कि उन्हें कई दिन तो यही स्वीकार करने में ही लग गए कि आखिर उस हमले की वीभत्सता कितनी थी और महिलाओं को आखिर किस सीमा तक हिंसा का सामना करना पड़ा और लिंग आधारित हिंसा की सीमा कितनी थी? उन्हें हिंसा का वह रूप तब पता चला जब एसोसिएशन ऑफ रेप क्राइसिस सेंटर के कार्यकर्ताओं से वह मिलीं, जिन्होनें उन्हें उस हिंसा से बची हुई महिलाओं के साथ संवाद के बारे में बताया और उनकी बातों से वह दुःख से भर गईं।
वह इजरायली महिलाओं के साथ हुई उस बर्बरता के विषय में बात करते हुए लिखती हैं कि नोवा म्युज़िक फेस्टिवल में जहां पर 350 से अधिक युवाओं को मार डाला गया और कई का अपहरण कर लिया गया, उसमें आतंकवादियों ने सामूहिक बलात्कार किए, और महिलाओं के शरीर को विकृत किया और मारा। किबुत्ज़ से हमास के एक वीडियो में दिखाया है कि कैसे एक गर्भवती महिला को पहले प्रताड़ित किया और उसके गर्भ से बच्चा निकाल दिया गया।
वह लिखती हैं कि हमारे फॉरेंसिक वैज्ञानिकों महिलाओं और लड़कियों के ऐसे शव मिले हैं, जिनके साथ बलात्कार करते समय बर्बरता की हर सीमा पार की गयी है और इस हद तक नृशंसता है कि उनकी पेल्विक हड्डियाँ टूट गई थीं। हम ऐसे अभागे लोग हैं जिन्होनें आतंकवादियों द्वारा प्रसारित वीडियो साक्ष्यों को देखा है जिसमें एक महिला के नग्न शरीर को गाजा में परेड करवा रहे हैं और एक अन्य महिला, जो अभी भी जीवित है, को बंदूक के बल पर बंधक बनाकर उसके बालों से जीप में खींचते हुए, खून से लथपथ पैंट में ले जा रहे हैं। मिशाल हर्जोग कहती हैं कि यह अभी भी चल रहा है क्योंकि गाजा में जो 240 लोग अपहृत किए हुए हैं, उनमें कई महिलाएं और लड़कियां हैं और जब वह वापस आएँगे तब तक उन्हें नहीं पता कि उन्होंने कितना सहा होगा।
वर्ष 1990 में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं एवं कानूनी विशेषज्ञों ने महिलाओं के साथ एक विशेष प्रकार की हिंसा को युद्ध अपराध के रूप में देखना आरम्भ किया। ऐसे अपराधों से महिलाओं की रक्षा के लिए यूएन वीमेन जैसे संगठन हैं, जिनमें इजरायली विशेषज्ञ एवं कार्यकर्ताओं ने भी इन नियमों के लिए योगदान दिया था। और यहीं पर हमें एक बहुत बड़ा झटका लगता है कि जब इजरायली महिलाओं के बलात्कार और हत्याएं हुईं तो इन संगठनों की असहज करने वाली और अक्षम्य चुप्पी कई प्रश्न उठाती है।
वह यह भी लिखती हैं कि ऐसा नहीं है कि हमास ने महिलाओं के साथ जो अत्याचार किए हैं वह कमजोर या अपर्याप्त हैं। वह अपने आप में पर्याप्त हैं। फिर भी यूएन वीमेन, कमिटी ऑन द एलिमिनेशन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट वीमेन ने इन अपराधों की निंदा नहीं की है। उन्हें संकट की इस कठिन घड़ी में हमें विफल किया है। उन्हें गाजा की उन महिलाओं और बच्चों के प्रति पूरी सहानुभूति है जो हमास के द्वारा आरम्भ किए गए युद्ध का शिकार हो रहे हैं, उन्हें सहायता मिलनी चाहिए मगर इससे 7 अक्टूबर 2023 को फिलिस्तीनी आतंकवादियों के कुकृत्य क्षमा नहीं हो जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी और इतने प्रमाणों के बाद भी इजरायली महिलाओं पर विश्वास करने की उनकी अनिच्छा बहुत भयावह है। वह अपने देश की सैकड़ों महिलाओं पर हुए इस भयावह अत्याचर के प्रति विश्व के महिला संगठनों एवं मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी से हैरान और परेशान हैं। परन्तु जो प्रश्न इजरायल की प्रथम महिला उठाती हैं, वही प्रश्न हिन्दुओं को लेकर भारत की महिलाओं के रहे हैं, परन्तु जिस स्पष्टता के साथ इजरायली महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों को लेकर आवाज उठी है, वह मुखरता हिन्दू महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों पर कहीं गुम है, हालांकि पीड़ा वही है।
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