ज्ञानवापी के तहखाने पर न्यायालय के समक्ष वर्ष 1991 का प्राचीन मुकदमा है। इस मुकदमे के मुख्य पक्षकार सोमनाथ व्यास थे। इस प्राचीन मुकदमें में ज्ञानवापी के रकबा नंबर 9130 के सम्पूर्ण परिसर को स्वयंभू भगवान आदि विशेश्वर, काशी विश्वनाथ की संपदा बताया गया है। उक्त वाद में आज वाद मित्र, अधिवक्ता के माध्यम से उनका पक्ष रखा जाना था। सोमनाथ व्यास जी के नाती उत्तराधिकार पत्र (वसीयतनामा) के माध्यम से शैलेंद्र पाठक द्वारा मांग की गई है कि तहखाने को जिलाधिकारी वाराणसी को सौंपा जाए। इसके साथ ही नवम्बर 1993 से तहखाने में पूजा – पाठ प्रशासन द्वारा बैरिकेडिंग कर के रोक दी गई थी।
न्यायालय से यह भी मांग की गई है कि तहखाने में पुनः पूजा – पाठ आरंभ कराई जाए। हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता मदन मोहन यादव ने बताया कि इस मामले में आज न्यायालय के समक्ष सुनवाई होनी थी मगर कंडोलेन्स होने के कारण आज सुनवाई नहीं हो सकी। अब कल 21 नवंबर को सुनवाई होगी।
उल्लेखनीय है कि हिन्दुओं की तरफ से वर्ष 1991 में वाराणसी के जनपद न्यायालय में वाद दायर किया गया। वादकारियों की मृत्यु के बाद वर्ष 2019 के दिसंबर माह में इस मुकदमे के वाद मित्र ने न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी कि “15 अगस्त 1947 के पहले ज्ञानवापी परिक्षेत्र क्या था, इसका पता लगाने के लिए उत्तर प्रदेश के पुरातत्व विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे कराया जाए।” उक्त अर्जी वाराणसी जनपद न्यायालय में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी की तरफ से दायर की गई थी। उन्होंने यह अर्जी प्राचीन मूर्ती स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर नाथ की ओर से वाद मित्र के तौर पर दाखिल की थी। इस मुकदमे को वर्ष 1991 में सोमनाथ व्यास और डॉ.राम रंग शर्मा ने दायर किया था। इन दोनों वादकारियों की मृत्यु हो जाने के बाद अदालत ने पूर्व शासकीय अधिवक्ता (सिविल ) विजय शंकर रस्तोगी को मुकदमे का वाद मित्र नियुक्त किया था। शैलेन्द्र पाठक इस मुकदमे के वादी सोमनाथ व्यास के नाती हैं।
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