वेब का प्रयोग करते हैं उसके विस्तार और आकार की कोई थाह नहीं है। किसी एक कीवर्ड पर सर्च करने के बाद आपको जितने परिणाम मिलते हैं, वे इस बात का अनुमान लगाने के लिए काफी हैं।
हम डिजिटल मीडिया में जिस वेब का प्रयोग करते हैं उसके विस्तार और आकार की कोई थाह नहीं है। किसी एक कीवर्ड पर सर्च करने के बाद आपको जितने परिणाम मिलते हैं, वे इस बात का अनुमान लगाने के लिए काफी हैं। कारण यह कि जब एक शब्द के बारे में सर्च करने पर हमें हजारों-लाखों परिणाम मिल सकते हैं तो अनगिनत शब्दों को सर्च करने पर कितने मिलेंगे? और एक से अधिक शब्दों के युग्म को सर्च करने पर कितने परिणाम मिलेंगे? इससे पहले कि आप कौतूहल में पड़ जाएं, यह भी जान लीजिए कि गूगल समूचे इंटरनेट की खोज नहीं करता। वह उसके एक बहुत छोटे हिस्से को ही सर्च कर पाता है।
गूगल और दूसरे सर्च इंजनों की पहुंच से बाहर जितनी वेबसाइटें और वेब सेवाएं हैं उनसे भी कई गुना अधिक बड़ा इंटरनेट का एक अंधियारा इलाका है जिस तक सर्च इंजनों, वेब निर्देशिकाओं आदि की पहुंच नहीं है। असल में कॉम, नेट और आर्ग जैसे डोमेन नामों से जुड़ी वेबसाइटों की कुल संख्या पूरे वेब पर मौजूद सामग्री के 5 प्रतिशत हिस्से का ही प्रतिनिधित्व करती है। बाकी 95 प्रतिशत वह है जिसे तकनीकी दुनिया में ‘डार्क वेब’ और ‘डीप वेब’ कहा जाता है। जितनी वेबसाइटों तक हमारी पहुंच है वह तो महज ‘सतही’ (ऊपर-ऊपर का) इलाका है जिसे ‘सरफेस वेब’ कहा जाता है।
‘डार्क वेब’ और ‘डीप वेब’? ये क्यों हैं और किसके लिए हैं? अगर यह बुरी चीज है तो फिर इसे खत्म क्यों नहीं किया जाता और अगर इसमें कुछ अच्छा है तो वह हमसे छिपा क्यों है? कौन हैं जो उसे हमसे छिपा रहे हैं या सचमुच कोई उसे हमसे छिपा रहा है क्या? अगर हम इसके भीतर झांकना चाहें तो वह संभव है क्या और ऐसा करने के बाद हम अपनी सुरक्षित दुनिया में आगे भी सुरक्षित बने रह सकते हैं या नहीं? ‘डार्क वेब’ और ‘डीप वेब’ की चर्चा के बाद ऐसे सवालों का सिलसिला मस्तिष्क में उठना स्वाभाविक है।
‘डार्क वेब’ और ‘डीप वेब’ के नाम ऐसा संकेत देते हैं कि ये इंटरनेट आपराधिक इलाके होंगे। यह बात कुछ हद तक सही है लेकिन पूर्णत: नहीं क्योंकि इनमें सरकारें भी सक्रिय हैं तो कंपनियां भी और गैर-सरकारी संगठन भी। हां, साइबर अपराधी, हैकर, और हमारी भौतिक दुनिया के बहुत सारे अपराधी, माफिया और आतंकवादी भी इनकी अंधेरी गलियों में छिपे रहते हैं, यह सच है।
जिस तरह समूचे आसमान में धरती हमारे लिए सब कुछ होकर भी वास्तव में इस ब्रह्माण्ड का बहुत छोटा हिस्सा है उसी तरह से जिस इंटरनेट या विश्वव्यापी वेब का प्रयोग हम करते हैं उसकी कोई औकात समूचे इंटरनेट के समक्ष कुछ नहीं है। वह जो बाकी 95 प्रतिशत इंटरनेट है, वह आपके हमारे द्वारा प्रयोग किए बिना भी लगातार बना हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि उसकी कुछ न कुछ महत्ता जरूर होगी और उसमें कुछ ऐसा होगा जिसे सुरक्षित रखने के पीछे बहुत सारी शक्तियां लगी होंगी। हम नहीं तो कोई और उसका इस्तेमाल भी कर रहे होंगे और ये दूसरे लोग किसी अन्य ग्रह के प्राणी नहीं होंगे क्योंकि उनके पास हमारे जैसे इंटरनेट की पहुंच है या नहीं-कहना मुश्किल है।
विश्व व्यापी वेब का बहुत सारा हिस्सा रहस्यों के दायरे में घिरा है, जैसे समुद्र्र में बर्फ का कोई बहुत विशाल पिंड (आइसबर्ग) हो। उसका छोटा सा हिस्सा ही सतह के ऊपर दिखाई दे रहा होता है जबकि बहुत बड़ा हिस्सा पानी में छिपा होता है। लेकिन आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए सबसे पहले इतना जरूर बता देते हैं कि ‘डार्क वेब’ तथा ‘डीप वेब’ को एक्सेस करना वैध है, अपराध नहीं।
तो क्या है ‘डार्क वेब’ और ‘डीप वेब’? ये क्यों हैं और किसके लिए हैं? अगर यह बुरी चीज है तो फिर इसे खत्म क्यों नहीं किया जाता और अगर इसमें कुछ अच्छा है तो वह हमसे छिपा क्यों है? कौन हैं जो उसे हमसे छिपा रहे हैं या सचमुच कोई उसे हमसे छिपा रहा है क्या? अगर हम इसके भीतर झांकना चाहें तो वह संभव है क्या और ऐसा करने के बाद हम अपनी सुरक्षित दुनिया में आगे भी सुरक्षित बने रह सकते हैं या नहीं? ‘डार्क वेब’ और ‘डीप वेब’ की चर्चा के बाद ऐसे सवालों का सिलसिला मस्तिष्क में उठना स्वाभाविक है।
विश्व व्यापी वेब का बहुत सारा हिस्सा रहस्यों के दायरे में घिरा है, जैसे समुद्र्र में बर्फ का कोई बहुत विशाल पिंड (आइसबर्ग) हो। उसका छोटा सा हिस्सा ही सतह के ऊपर दिखाई दे रहा होता है जबकि बहुत बड़ा हिस्सा पानी में छिपा होता है। लेकिन आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए सबसे पहले इतना जरूर बता देते हैं कि ‘डार्क वेब’ तथा ‘डीप वेब’ को एक्सेस करना वैध है, अपराध नहीं।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं)
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