इस्राएल द्वारा 7 अक्तूबर के बाद से ही गाजा में इस्लामी आतंकवादी संगठन हमास की कमर तोड़ने के सैन्य आपरेशन को लेकर दुनिया दो मतों में बंटी दिख रही है तो कुछ ऐसे देश में भी है जो मध्य मार्ग अपनाए हुए हैं। यानी जो इस्राएल की ‘सैन्य कार्रवाई’ और उसके ‘अपनी सुरक्षा के अधिकार’ के पक्ष में तो हैं लेकिन गाजा में ‘मानवाधिकार’ की दुहाई भी देते हैं। इधर शुरू में इस्राएल पर एकजुट हो कर आगबबूला हुए इस्लामी देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन में अब कुछ सुर इस्राएल के पक्ष में भी सुनाई देने लगे हैं। यह नया घटनाक्रम कहीं नए समीकरणों की तरफ इशारा तो नहीं?
युद्धग्रस्त गाजा में ‘बिगड़ रहीं स्थितियों’ की चिंता करते हुए रियाद में इस्लामी देशों का एक शीर्ष सम्मेलन बुलाया गया था। इस सम्मेलन में कुल 57 इस्लामी देश जुटे थे। इस सम्मेलन में इस्राएल को लेकर एक प्रस्ताव रखा गया, लेकिन बजाय एक सुर से उसे पारित करने के, 3 मुस्लिम देशों ने इस्राएल के पाले में झुकाव दर्शाया।
ताजा समाचार बताते हैं कि इस्राएली सेनाओं ने अब उत्तर के बाद दक्षिण गाजा की तरफ भी आतंकवादी संगठन हमास के जिहादियों की खोज शुरू की है। विशेषरूप से अस्पतालों, स्कूलों और शरणार्थी शिविरों में हमास आतंकियों की कथित मौजूदगी अब शायद उन्हें और ज्यादा नहीं बचा पाएगी। इस्राएल के सैनिक ऐसे हर ठिकाने और सुरंग की खोजबीन कर रहे हैं, जहां जिहादी लड़ाकों के आम गाजावासियों को ढाल बनाकर छुपे होने के आसार हैं।
गाजा से आने वाली ऐसी जानकारियों और ‘महिलाओं एवं बच्चों के कष्ट झेलने’ के दृश्यों पर चिंता करने आरे इस्राएल को युद्ध रोकने को बाध्य करने की गरज से हाल में रियाद में जो मुस्लिम देशों ने साथ बैठकर सम्मेलन किया वह बहुत हद तक अपने एजेंडे से इस वजह से हटता दिखा क्योंकि तीन देश वहां लाए गए इस्राएल को दंड की मांग करने के एक प्रस्ताव से सहमत नहीं थे। यूएई और बहरीन सहित तीन देश ‘दंड’ की मांग के विरुद्ध खड़े दिखे। लिहाजा सम्मेलन किसी खास निष्कर्ष तक न पहुंच पाया। क्या इसे इस्लामी जुट में दरार का संकेत माना जाए?
प्रस्ताव में इस्राएली सेना की कार्रवाई की भर्त्सना करने का बिन्दु था जिस पर अरब लीग और इस्लामी सहयोग संगठन के नेता एकमत थे। लेकिन दूसरा बिन्दु था इस्राएल के इस कदम के विरुद्ध किसी प्रकार के दंड और राजनीतिक रूप से उसके विरुद्ध सख्ती करने की मांग करना। इस दूसरे बिन्दु पर संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने आपत्ति जताई और इसे स्वीकार नहीं किया।
दरअसल प्रस्ताव इस्राएल की हमास के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई के विरुद्ध था। रियाद में इस्लामिक सहयोग संगठन के इस सम्मेलन में अरब लीग के देशों को भी न्योता गया था। प्रस्ताव में इस्राएली सेना की कार्रवाई की भर्त्सना करने का बिन्दु था जिस पर अरब लीग और इस्लामी सहयोग संगठन के नेता एकमत थे। लेकिन दूसरा बिन्दु था इस्राएल के इस कदम के विरुद्ध किसी प्रकार के दंड और राजनीतिक रूप से उसके विरुद्ध सख्ती करने की मांग करना। इस दूसरे बिन्दु पर संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने आपत्ति जताई और इसे स्वीकार नहीं किया।
इस प्रस्ताव में प्रमुख भूमिका अल्जीरिया तथा लेबनान की रही और अन्य कुछ देश भी उसके शामिल रहे। कहा गया इस्राएल और उसे सहयोग दे रहे देशों की तेल आपूर्ति बंद कर दी जाए, इन देशों के साथ आर्थिक तथा राजनयिक संबंध तोड़ लिए जाएं। बस, इस बिन्दु ने इस्लामी जुट में दरार पैदा कर दी। इस पर न संयुक्त अरब अमीरात या यूएई राजी था और न ही बहरीन इसे पारित करने को तैयार था।
शीर्ष सम्मेलन में इस दरार की वजह से क्षेत्रीय मतभिन्नताएं सामने आ गईं। शिखर सम्मेलन के निष्कर्ष में यह उल्लेख किया गया था कि इस्राएल का वह दावा बेबुनियाद है कि ‘अपनी रक्षा में यह आपरेशन कर रहा है’। साथ ही प्रस्ताव में अपील की गई कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद इस्राएल की इस सैन्य कार्रवाई पर लगाम लगाने के लिए एक ऐसा प्रस्ताव लाए जिसे मानना इस्राएल के लिए बाध्यकारी हो।
रियाद सम्मेलन में इसे ‘घोषणापत्र’ बताया गया था। इसमें यह भी था कि इस्राएल को आगे से हथियार बेचने बंद किये जाएं। साथ ही, आगे ऐसा कोई राजनीतिक प्रस्ताव न स्वीकारा जाए जो गाजा को इस्राएल के ‘कब्जे’ वाले वेस्ट बैंक से अलग रखे।
दिलचस्प बात यह कि सम्मेलन में जो इस्लामी ब्लॉक के 57 देश शामिल थे उसमें वह ईरान भी है जो शुरू से ही इस्राएल को लेकर उग्र रवैया अपनाता आ रहा है और जो हमास के साथ नजदीकी संबंध रखता है। लेकिन इसी सम्मेलन में अरब लीग के देश भी शामिल थे, जैसे यूएई और बहरीन। दोनों मजहबी जुट प्रस्ताव पर एक राय न हो पाए इसलिए सम्मेलन बेनतीजा ही खत्म करने की घोषणा कर दी गई।
यहां ध्यान दें कि प्रस्ताव में इस्राएल को दंड देने के बिन्दु पर अलग मत रखने वाले संयुक्त अरब अमीरात तथा बहरीन ने तो अभी तीन साल पहले 2020 में ही इस्राएल के साथ कूटनीतिक रिश्ते बहाल किए थे।
इस सम्मेलन को लेकर गाजा ने एक बयान भी जारी किया था जिसमें बताया गया था कि हमास ने रियाद के शिखर सम्मेलन में शामिल सभी देशों से अपील की थी वे सभी देश अपने यहां से इस्राएल के राजदूतों को बाहर कर दें। इतना ही नहीं, आतंकवादी संगठन हमास ने यह अपील की थी कि इस्राएल के जितने युद्ध अपराधी हैं, सब पर मुकदमा चलाया जाए जिसके लिए एक कानूनी आयोग बनाया जाए।
इधर सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का कहना है कि जब तक किइस्राएल के स्थायी तौर पर संघर्षविराम करने तक मध्य पूर्व का कोई भी देश इस्राएल के साथ कैसा भी राजनीतिक संबंध न रखे। इस्राएल से तमाम आर्थिक संबंध भी तोड़ लेने चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस्लामी देशों में दरार के पीछे वजह से अरब देशों के अमेरिका के प्रभाव की जवह से अरब देशों के साथ ईरान के नजदीकी देशों के मनमुटाव आसानी से दूर नहीं हो सकते।
हमास पर इस्राएल की कार्रवाई को लेकर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने शुरू से ही यह जारी रखे हैं कि इस युद्ध के पीछे पश्चिम है। उन्होंने कहा है कि सदा मानवाधिकारों तथा स्वतंत्रता की बात करने वाले पश्चिमी देश ‘फिलिस्तीन में रचे जा रहे नरसंहार’ को लेकर चुप हैं। यह कितने शर्म की बात है।
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